Nepali-Hindi Conference: रोसड़ा : हिंदी के प्रख्यात विद्वान,सुप्रसिद्ध समीक्षक एवं हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग के उपसभापति सह कार्यकारी अध्यक्ष डॉ विपिन बिहारी ठाकुर का महाप्रयाण 14 सितंबर को हुआ था. इनकी पुण्यतिथि भी 14 सितंबर को है. इनके पुत्र साहित्यकार, लेखक एवं पत्रकार प्रफुल्लचंद ठाकुर ने प्रति वर्ष एक संस्था के माध्यम से पिता की पुण्यतिथि मनाते रहे हैं. हिंदी दिवस के दिन महाप्रयाण करना किसी सच्चे हिंदी सेवक और हिंदी साधक के लिए एक विलक्षण संयोग है. रोसड़ा निवासी डॉ ठाकुर ने अपने व्यक्तित्व और कृतित्व के द्वारा देश-विदेश में काफी ख्याति पाई. विगत 27 अक्टूबर 1999 को प्रभात खबर अखबार में छपी ””””””””भट्टराई ने नेपाली-हिंदी सम्मेलन में शिरकत की”””””””” शीर्षक एवं खबर में डॉ ठाकुर ने सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए अपने संबोधन में कहा था कि नेपाल और भारत के साहित्यकारों की रचनाओं ने दोनों देशों के रिश्तों को और प्रगाढ़ किया है. 20वीं शताब्दी को नारी जागरण का युग बताते हुए उन्होंने कहा था कि दोनों ही देश की महिला लेखिकाओं ने अपनी रचनाओं में नारी जीवन का विभिन्न पहलुओं का यथार्थ चित्रण किया है. इसके अलावा उन्होंने मॉरीशस की प्रख्यात लेखिका डॉ सरिता बुधू के साथ बैठकर साहित्यिक विमर्श भी किया करते थे.
Nepali-Hindi Conference: यूएओ की भाषा जन सहयोग से बनवाने का भी प्रयास किया.
उन्होंने हिंदी को यूएनओ की भाषा जन सहयोग से बनवाने का भी प्रयास किया. वे वर्ष 1960 से 1999 तक कॉलेज सेवा से जुड़े रहे. वे उदयनाचार्य रोसड़ा कॉलेज के पहले हिंदी विभागाध्यक्ष कॉलेज के प्रिंसिपल, एलएन मिथिला यूनिवर्सिटी के मानविकी संकाई के अध्यक्ष (डीन),अधिषद और अभिषद के सदस्य रहे. इसके अलावा डॉ ठाकुर शोध निदेशक, शोध परीक्षक और हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष एवं उपसभापति पद पर रह चुके हैं. उनकी रचनाएं देश के प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित होती रही. वे मैथिली की पुरस्कृत कृतियों की हिंदी में समीक्षा कर चर्चित हुए. उन्होंने साहित्यिक गतिविधियों के प्रचार प्रसार के लिए राष्ट्रभाषा समिति, अभिव्यक्ति और साहित्य परिषद जैसी संस्थाओं की स्थापना की. इनके माध्यम से कई प्रतिष्ठित साहित्यकारों ने रोसड़ा में आयोजित कार्यक्रमों में भाग लिया था. उन्होंने अज्ञेय पर केंद्रित लघु शोध पत्र भी लिखा था. हिंदी कविता पर पीएचडी के लिए किया गया उनका प्रथम कार्य था. डॉ ठाकुर की ख्याति आतिथ्य सत्कार के लिए भी रही. वे ईमानदारी और कर्मठता के प्रतीक थे. उन्होंने आजीवन हिंदी सेवी और साधक के रूप में अपने दायित्व का निर्वाह किया.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है