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समस्तीपुर जिला स्थापना दिवस : 53 वर्ष का हुआ समस्तीपुर, विकास की परिपक्वता बाकी

समस्तीपुर जिला आज अपने 52 साल पूरा करने के बाद 53वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है. जिला स्थापना दिवस पर मंगलवार को यहां जिला प्रशासन के द्वारा व्यापक तैयारियां की गई है.

By Prabhat Khabar News Desk | November 13, 2024 11:09 PM

प्रकाश कुमार, समस्तीपुर : समस्तीपुर जिला आज अपने 52 साल पूरा करने के बाद 53वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है. जिला स्थापना दिवस पर मंगलवार को यहां जिला प्रशासन के द्वारा व्यापक तैयारियां की गई है. मुख्य समारोह पटेल मैदान में आयोजित होगी. जिला के 53 वें स्थापना दिवस को लेकर जिले में उत्साह का वातावरण है. सभी सरकारी भवन स्थापना दिवस की पूर्व संध्या पर बैगनी रोशनी से नहा रही है. स्थापना के 52 वर्ष के दौरान जिले की आबादी लगभग ढाई गुणा बढ़ गई है. लेकिन, जिस उद्देश्य व तात्पर्य को लेकर जिले की स्थापना की गई थी, वह आज भी पूरी तरह से परिपक्व नहीं हुई है. वास्तव में बिहार के गौरवमयी इतिहास के प्राण माने जाने वाले मिथिलांचल संस्कृति और सभ्यता में जिले की विशिष्ट व पौराणिक पहचान रही है. समस्तीपुर के कई ऐतिहासिक स्थल अतुल्य भारत के जीवंत प्रमाण. एक-एक प्रखंड कालखंड का साक्षी हैं. महाकाव्य काल से लेकर मौर्य, शुंग और गुप्त शासनकाल तक का इतिहास. इन पर बेशक समय की मोटी परत चढ़ गई है, पर ऐतिहासिकता कण-कण में कायम है. समस्तीपुर को मिथिला का प्रवेशद्वार कहा जाता. राजा जनक के मिथिला प्रदेश का अंग रहा. विदेह राज्य का अंत होने पर यह वैशाली गणराज्य का अंग बना. इसके बाद मगध के मौर्य, शुंग, कण्व और गुप्त शासकों के महान साम्राज्य का हिस्सा रहा. समस्तीपुर जिला आज भी सुनहरे भविष्य की ओर निहार रहा है.

कभी बड़ी-बड़ी मिलों वाले इस जिले में समय के साथ बर्बाद होते गये उद्योग

इतिहास केवल बीते वर्षों की कहानी नहीं है. निर्माण की निरंतर प्रक्रियाओं, विभिन्न स्वरूपों, क्षेत्र विशेष की भौगोलिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं राजनैतिक स्थितियों में हुए बदलाव की प्रक्रियाओं, उसकी स्थिति का वर्णन और मूल्यांकन भी है. अपने स्वर्णिम अतीत की यादों को संजोये इस जिला ने क्या खोया और क्या पाया, इसको लेकर हमने छोटी सी पड़ताल की है. औद्योगिकीकरण में यह अधोगति को प्राप्त हो चुका है. लाखों मजदूर रोजगार के लिए अन्य प्रदेशों में प्रतिवर्ष पलायन कर रहे हैं. अतीत में उद्योगों से समृद्ध जिलावासी आज रोजगार के लिए भटक रहे हैं. खादी ग्रामोद्योग और विभिन्न तरह के कुटीर उद्योगों से जहां जिला के घर में समृद्धि थी, आज वे सब मृतप्राय हो चुकी है.

राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण बंद हो गया चीनी मिल

अंग्रेज शासन काल में स्थापित जिला मुख्यालय में चीनी मिल जिला स्थापना के करीब दस वर्षों बाद राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण बंद हो गया. वहीं, ठाकुर पेपर मिल भी बंद हो गया. इतना ही नहीं, इसके अवशेष तक को भी बेच दिया गया. जिला मुख्यालय से सटे मोहनपुर में बनाये गये औद्योगिक प्रांगण का भी अपेक्षित विकास नहीं हो पाया. शैक्षणिक विकास जिस गति से होनी चाहिए, वह नहीं हुआ. जिला मुख्यालय स्थित संस्कृत उच्च विद्यालय आज अपनी दुर्दशा पर आंसू बहाने के लिए विवश है. वर्ष 1973 में बना यह विद्यालय आज अपना अस्तित्व खोता जा रहा है. वहीं, 1947 में स्थापित समस्तीपुर कॉलेज में कला और विज्ञान के संकाय से जुड़े विषयों में करीब चार दशकों से स्नातकोत्तर स्तर तक की शिक्षा दी जा रही है. लेकिन, यह अब नामांकन लेने तक ही सीमित रह गया है. शैक्षणिक अराजकता के कारण कॉलेज में नामांकन के बावजूद अधिकांश छात्र वर्ग करने नहीं आते हैं. हर साल बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं स्नातक उत्तीर्ण होते हैं. लेकिन, काफी कम संख्या में पीजी में छात्रों का नामांकन हो पाता है. इसका कारण यह है कि पीजी में यहां जिन विषयों की पढ़ाई होती है, उनमें काफी कम सीटें हैं. यूजीसी ने कॉलेजों में 40 छात्र पर एक शिक्षक के अनुपात को आदर्श बताया है. लेकिन, काॅलेजों में एक शिक्षक पर करीब 400 छात्र है. सभी पंचायतों में उच्च शिक्षा की व्यवस्था के लिए सरकार ने विद्यालयों को उत्क्रमित कर दिया. लेकिन, विषयवार शिक्षक की नियुक्ति आज तक नहीं हो सकी है.

पांच दशक पुरानी हसनपुर सकरी रेल परियोजना अब तक अधूरी

पांच दशक पुरानी हसनपुर सकरी रेल परियोजना अब तक अधूरी है. इस परियोजना का शिलान्यास 1974 में तत्कालीन रेल मंत्री ललित नारायण मिश्रा ने छोटी लाइन के रूप में किया था. फिर बड़ी रेललाइन परियोजना का शिलान्यास 1996 में हसनपुर रोड स्टेशन पर तत्कालीन रेल मंत्री रामविलास पासवान ने किया. लोगों में आशा जगी थी कि यह परियोजना उत्तर बिहार के लिए लाइफ लाइन साबित होगी, लेकिन अब तक सपना बना हुआ है. हालांकि, वर्ष 2024-25 के बजट में नई रेल लाइन में मिथिलांचल का ड्रीम प्रोजेक्ट सकरी-हसनपुर (79 किमी) के लिए 56 करोड़ दिया गया है. लेकिन, इसे मूर्त रूप मिलना अभी बाकी है. इससे इतर तत्कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवगाड़ा की सरकार में रामविलास पासवान के रेल मंत्री रहते करीब ढाई दशक पहले हाजीपुर से समस्तीपुर वाया महुआ एवं पातेपुर होते नई रेल लाइन के निर्माण के लिए रेल बजट में सर्वे का प्रावधान किया गया. सर्वेक्षण कर रिपोर्ट रेलवे बोर्ड को भेजी गई. पर, बात इसके आगे नहीं बढ़ सकी.

संशोधन के बावजूद इस नई रेल लाइन के निर्माण का मामला अटका रहा

दूसरी बार तत्कालीन प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह की सरकार में रेल मंत्री लालू प्रसाद ने थोड़ा संशोधन करते हुए हाजीपुर से समस्तीपुर वाया भगवानपुर एवं महुआ होते नई रेल लाइन का प्रस्ताव बजट में लिया. बावजूद इस नई रेल लाइन के निर्माण का मामला अटका हुआ है. समस्तीपुर समेत मिथिलांचल के लोगों को राजधानी पटना की दूरी कम करने के लिए प्रस्तावित कर्पूरीग्राम- भगवानपुर भाया ताजपुर रेलमार्ग बनाने की घोषणा के बाद भी यह सपना रह गया. कर्पूरीग्राम- भगवानपुर भायापुर ताजपुर लाइन का सर्वे कार्य 2020-21 में कराया गया था. परियोजना की सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, इसे वित्तीय रूप से अर्थक्षम नहीं पाया गया. मिथिलांचल के लिए महत्वपूर्ण 93 किलोमीटर की मुक्तापुर- लोहना रोड नई रेल लाइन परियोजना, हसनपुर -बरौनी नई रेल लाइन परियोजना भी फंसी हुई है.

जिले में लिंग-अनुपात का घटता क्रम एक गंभीर सामाजिक समस्या

ले में लिंग-अनुपात का घटता क्रम एक गंभीर सामाजिक समस्या बन गया है. 1911 में समस्तीपुर अनुमंडलीय क्षेत्र में पुरुष के प्रति 1000 की संख्या (लिंग-अनुपात) पर 1074 महिलाएं थी. वहीं, 2011 में यह अनुपात घटकर 928 हो गयी. 14 नवंबर, 1972 को यह जिला बना. विकास के विभिन्न मानकों को समेटे हुए कालांतर में यह बिहार का प्रमुख जिला बन गया. पुनर्गठन के बाद से जिला अपने कुल क्षेत्र 2904 वर्ग किलोमीटर में 1260 गांवों को भीतर समेटे हुए है.

एक नजर में समस्तीपुर

कुल जनसंख्या 42,61,566 है.

जिले में चार अनुमंडल हैं.

जिले में 20 प्रखंड हैं.

जिले में एक नगर निगम है.

जिले में चार नगर परिषद हैं.

जिले में तीन नगर पंचायत हैं.

जिले में 343 पंचायत हैं.

जिले में 1,260 राजस्व गांव हैं.

जिले का कुल क्षेत्रफल 2,904 वर्ग किलोमीटर है.

जिले का साक्षरता दर 45.13% है.

जिले की जनसंख्या वृद्धि दर 2.52% है.

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