शिक्षा व मेधावी छात्र के प्रति बहुत संवेदनशील थे जननायक

भारत रत्न जननायक क र्पूरी ठाकुर शिक्षा व मेधावी छात्र के हिमायती थे. वह बिहार के शिक्षा मंत्री भी रह चुके हैं.

By Prabhat Khabar News Desk | January 23, 2025 10:22 PM

समस्तीपुर :भारत रत्न जननायक क र्पूरी ठाकुर शिक्षा व मेधावी छात्र के हिमायती थे. वह बिहार के शिक्षा मंत्री भी रह चुके हैं. उनकी सोच थी कि समाज को सही दिशा देने के लिए शिक्षा ही सबसे सटीक रास्ता है. यही कारण था कि उन्होंने सभी को शिक्षा से जोड़ने की कोशिश की. उन्होंने शिक्षा में अंग्रेजी की अनिवार्यता समाप्त की. पहले आठवीं और फिर दसवीं तक की शिक्षा मुफ्त की. बिहार के वंचित समाज में शिक्षा का अलख जगाने के लिए जननायक का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. उर्दू को राज्य की भाषा का दर्जा देना और मैट्रिक पास के लिए अंग्रेजी की अनिवार्यता को समाप्त करना एक साहसिक व ऐतिहासिक कदम रहा. इसकाे को लेकर उस समय खूब विवाद भी खड़ा हुआ. वह अपने दृढ़ निश्चय पर अटल रहे. उन्होंने शिक्षा का लोकतंत्रीकरण किया था. उनका मानना था कि मैट्रिकुलेशन के लिए एक गैर-भारतीय भाषा की उत्तीर्णता अनिवार्य करना कहीं से उचित नहीं है. उनका मानना था कि अंग्रेजी की अनिवार्यता अनुसूचित जातियों, अत्यंत पिछड़ी जातियों, अन्य पिछड़े वर्गों तथा गरीब उच्च जाति के लोगों के लिए मैट्रिकुलेशन में सफलता प्राप्त करने में एक बड़ी बाधा है. वह मानते थे कि अंग्रेजी सीखना जरूरी है, लेकिन यह एकमात्र प्राथमिकता नहीं है. जननायक की कोशिशों के चलते ही मिशनरी स्कूलों ने हिंदी में पढ़ाना शुरू किया था. उन्होंने राज्य के सभी विभागों में हिंदी में काम करने को अनिवार्य बनाया था. जननायक के सानिध्य में रह चुके ताजपुर आधारपुर के प्रो. राजेन्द्र प्रसाद भगत बताते हैं कि वह शिक्षा व मेधावी छात्र के प्रति बहुत संवेदनशील थे. उन्होंने बताया कि उनके ग्रामीण स्व. गोनर भगत जननायक के क्लास साथी थे. दोनों ताजपुर मिडिल स्कूल में साथ पढ़ने जाते थे. 1963 में जब उन्होंने मैट्रिक पास की थी, तो जननायक आधारपुर गोनर भगत से मिलने पहुंचे थे. गोनर भगत ने उन्हें बताया कि एक गरीब बच्चा मैट्रिक पास किया है, तो उन्होंने मुझे बुलाने के लिये कहा. जैसे ही मुझे पता चला कि विधायक जी बुला रहे हैं, खाली पैर ही दौड़ता पहुंच गया. उसके बाद उन्होंने कहा कि इस लड़का को हम ले जायेंगे. वह अपने साथ मुझे ले गये. मेरा नामांकन प्री में पटोरी कॉलेज, पटाेरी में करा दिया. वहां कुछ दिन पढ़ने के बाद वे वहां से टीसी लेकर समस्तीपुर कॉलेज, समस्तीपुर में नामांकन ले लिये. इस तरह उन्हें जहां भी मेधावी छात्र के बारे में जानकारी मिलती, वह उसे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते. जरूरी सहयोग देते थे. उनके व्यक्तित्व पर चर्चा करते हुए प्रो. भगत बताते हैं कि वे सादगी, ईमानदारी व त्याग की प्रतिमूर्ति थे. गरीबों के सच्चे हमदर्द थे. अपना स्वार्थ छोड़कर दूसरे के हित का ख्याल रखते थे. वे अंधविश्वासी नहीं थे. पूजा पाठ भले ही नहीं करते थे, लेकिन सभी धर्मों का समान रूप से आदर करते थे. बताते हैं कि जब उनके पिता की मृत्यु हुई थी, तो उन्होंने सर्वधर्म प्रार्थना कराया था, अपनी माता की मृत्यु पर भी सर्वधर्म प्रार्थना करायी थी. वे सभी धर्मों का समान रूप से सम्मान करते थे. वे मानव कल्याण को ही अपना धर्म मानते थे. बताया कि उन्होंने उच्च जाति के गरीबों को भी तीन प्रतिशत आरक्षण दिया था. सवर्ण महिलाओं को भी तीन प्रतिशत आरक्षण दिया था. एनेक्चर वन को 12 प्रतिशत, एनेक्चर टू को 8 प्रतिशत आरक्षण देने का ऐतिहासिक काम किया था. स्कूलों में मुफ्त शिक्षा की व्यवस्था की थी. 1978 से पहले बिहार से इक्के-दुक्के आइएएस व आइपीएस हुआ करते थे. 1977 में जब मोरारजी देसाई की सरकार बनी, तो 1978 में उन्होंने उनसे आग्रह करके यूपीएससी में अंग्रेजी की अनिवार्यता समाप्त करायी थी. उसके बाद बिहार के हर जिले से दो-तीन आइएएस व आइपीएस बनने लगे. गरीब व किसान का बेटा ग्रामीण परिवेश से पढ़कर यूपीएससी में सफल होने लगा. वे चाहते थे कि गांव-गांव में शिक्षा की समुचित व्यवस्था हो,वे तीन कॉलेज के खुद भी सेक्रेटरी रह चुके हैं. इनमें शाहपुर पटोरी कॉलेज, जो अभी एएनडी कॉलेज के नाम से जाना जाता है, ताजपुर कॉलेज तथा सत्यनारायण अली मेहर रामनंदन चरण कर्पूरी कॉलेज शामिल हैं.

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