सरकारी विद्यालयों में लगाये सबमर्सिबल पंप की होगी जांच

जिले के सरकारी विद्यालय में नामांकित छात्र- छात्राओं को शुद्ध पेयजल उपलब्ध हो सके, इसके लिए सबमर्सिबल पंप लगाने का आदेश शिक्षा विभाग ने दिया.

By Prabhat Khabar News Desk | August 14, 2024 12:01 AM

प्रकाश कुमार, समस्तीपुर : जिले के सरकारी विद्यालय में नामांकित छात्र- छात्राओं को शुद्ध पेयजल उपलब्ध हो सके, इसके लिए सबमर्सिबल पंप लगाने का आदेश शिक्षा विभाग ने दिया. शिक्षा विभाग के तत्कालीन अपर मुख्य सचिव की कोशिश को संवेदक से लेकर अधिकारी तक कामधेनु समझ कर धन उगाही का जरिया बनाने में लगे हैं. दरअसल, मामला यह है कि हाल में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव के लिए चिलचिलाती गर्मी में वोटरों को सुविधा देने के लिए शिक्षा विभाग के द्वारा एक बेहतरीन प्रयास किया गया था. जिसका लाभ मतदान के दिन वोटर तो लेते ही गर्मी छुट्टी के बाद बच्चे भी इसका आनंद उठाते. लेकिन, शिक्षा विभाग के अधिकारी और संवेदक की गठजोड़ से इसमें पलीता लगता दिख रहा है और बड़े घोटाले की ओर इशारा कर रहा है. जिन स्कूलों में शुद्ध पेयजल की व्यवस्था नहीं थी, वहां सबमर्सिबल बोरिंग और और हैंडवाश स्टेशन का निर्माण कराना था. इसके लिए प्रति स्कूल 1 लाख 91 हजार रुपये खर्च का प्रावधान किया गया. इसमें भी गड़बड़ी न हो तो एसीएस के के पाठक के आदेश के द्वारा स्कूल के प्रधान को शिक्षा विभाग के सूचीबद्ध संवेदकों से कोटेशन लेकर प्रशासनिक स्वीकृति देने का प्रावधान किया गया था. लेकिन, आरोप यह है कि अधिकारियों व जिला शिक्षा विभाग के कर्मियों ने स्कूलों के बजाय जिला में ही अपने चहेते ठेकेदारों के बीच इस योजना की बंदरबांट कर दी. विभूतिपुर प्रखंड अंतर्गत प्राथमिक विद्यालय सैदपुर में बिना कार्यादेश के संवेदक सबमर्सिबल पंप लगा दिया. डीईओ कामेश्वर प्रसाद गुप्ता ने अज्ञात संवेदक के विरुद्ध एचएम को प्राथमिकी दर्ज कराने का आदेश दिया. कुछ शिक्षकों की माने तो कही 100-150 फीट पर सबमर्सिबल पंप लगा दिया गया कहीं सबमर्सिबल पंप मानक के अनुरूप नहीं लगाये गये. पाइप, टंकी व नल तक मानक विहीन लगा दिये गये. बताया जा रहा है कि 1 लाख 91 हजार की लागत से स्वच्छ पेयजल आपूर्ति के लिए सबमर्सिबल पम्प, 1 एचपी का मोटर, चार नल और 1000 हजार लीटर का टंकी लगाने का आदेश दिया गया. विभागीय नियमों के मुताबिक, 5 लाख से नीचे के काम की स्वीकृति विद्यालय के प्रधानाचार्य के स्तर से तीन एजेंसी से निविदा प्राप्त कर सबसे कम रेट वाले एजेंसी से कार्य कराना था. लेकिन, कहीं भी ना तो निविदा निकाली गई और न ही कोटेशन प्राप्त किया गया. सीधा-सीधा कुछ खास ठेकेदार को काम आवंटित कर दिया गया. जिन जगहों पर ठेकेदार ने समय रहते कागजी प्रक्रिया पूरी कर ली, वहां इसे 1 लाख 49 हजार के मिनिमम रेट पर बनाया जा रहा तो कहीं इसे 1 लाख 91 हजार पर. अब सवाल उठता है कि अगर निविदा जारी नहीं किया गया, तो यह गलत है और इसपर कार्रवाई भी होगी. उधर, कई हेडमास्टर को तो नियमों की जानकारी तक नहीं है. ऐसे में निविदा जारी करने का कोई सवाल ही नहीं उठता है. सूत्रों का यह भी कहना है कि हेडमास्टरों को मामले में मोहरा बनाकर ठेकेदार अधिकारियों व शिक्षा कर्मियों की मिली भगत से काम आवंटन हुआ है. अब देखना होगा कि इस मामले की जांच कहां तक जाती है या अन्य घोटाले की तरह इसकी भी फाइल कही गुम हो जायेगी. जिला शिक्षा विभाग के पदाधिकारी फिलहाल कुछ भी बोलने से परहेज कर रहे हैं. शिक्षा विभाग में कमान एंड कंट्रोल सेंटर तक इसकी शिकायत पहुंच गयी है. मुख्यालय स्तर पर इसके जांच के लिए टीम गठित करने की सूचना दी गयी है.क्या थी योजनाबताते चलें कि सरकारी स्कूलों में गर्मी के दिनों में बच्चों को पानी की दिक्कत नहीं हो इसके लिए विभाग ने स्कूलों में सबमर्सिबल पंप लगाने निर्णय लिया था. शिक्षा विभाग ने इसके लिए प्रति स्कूल 250 से 300 फुट की गहराई में बोरिंग कर सबमर्सिबल पंप लगाने का निर्देश दिया था. इसी के साथ विद्यालय में पानी की टंकी स्थापित करने के साथ हैंडवाश स्टेशन का भी निर्माण किया जाना था. हैंडवाश स्टेशन में आधा दर्जन से अधिक नल लगाये जाने थे. जिससे कि स्कूली बच्चों को पीने के लिए शुद्ध पेयजल के साथ हाथ धोने व शौचालय के उपयोग में परेशानी का सामना नहीं करना पड़े.

स्कूलों की छतों पर लगानी थी टंकी

शिक्षा विभाग के निर्देशानुसार जिले के स्कूलों में गर्मी के दिनों में बच्चों को चापाकल के आगे लाइन लगने से छुट्टी दिलाने के उद्देश्य से यह योजना लागू की गई थी. इस योजना में स्कूलों की छतों पर टंकी स्थापित कर पानी का स्टोर भी किया जाना था. जिससे बार-बार चापाकल खराब होने के झंझट से भी छुटकारा मिल जाता है. आमतौर पर गर्मी के दिनों में पानी की अधिक आवश्यकता होती है. लेकिन स्कूलों में पानी के सीमित स्रोत होते हैं. जिसकी वजह से कई स्कूलों में गर्मी के दिनों में जल संकट उत्पन्न हो जाता है. किसी स्कूल में चापाकल का पानी भी सुख जाता है. वहीं लोड बढ़ने से बार-बार चापाकल खराब होने की समस्या भी सामने आती रहती है. जिले के स्कूलों में बोरिंग होने के बाद छात्र-छात्राओं को सहूलियत होगी. विद्यालय में सालों भर पानी की उपलब्धता बनी रहेगी.

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