Vishwakarma Puja: गांव के विश्वकर्मा ने पांच सौ रुपए खर्च कर बना डाली बांस की साइकिल, जुगाड़ टेक्नोलॉजी बढ़ायी सुंदरता
Vishwakarma Puja: समस्तीपुर जिले के विभूतिपुर प्रखंड स्थित सिरसी वार्ड नबंर दो का संजय साजन जुगाड़ टेक्नोलॉजी से बांस के फ्रेम के सहारे साइकिल बनाकर सबको हैरान कर दिया है.
Vishwakarma Puja
प्रकाश कुमार
बिहार के समस्तीपुर जिले के विभूतिपुर प्रखंड स्थित सिरसी वार्ड दो का संजय साजन बांस की साइकिल बना इन दिनों सुर्खियों में है. वह बताता है कि छोटे-मोटे कार्यक्रमों में डेकोरेशन का काम करते हैं. काम के सिलसिले में आने जाने के लिए उसके पास पुरानी टूटी साइकिल थी. आने-जाने में जब समस्या उत्पन्न होने लगी, तो नयी साइकिल लेने की सोची. गरीबी के कारण बाजार की ओर रुख न कर जुगाड़ टेक्नोलॉजी से बांस के फ्रेम के सहारे साइकिल बना सबको हैरान कर दिया. संजय बताता है कि 500 रुपये खर्च कर 25 दिनों की मेहनत के बाद उसने साइकिल को तैयार किया. इसमें उसने अपनी पुरानी साइकिल की रिम को मरम्मत कर उपयोगी बनाया.
रेसिंग में भी किया जा सकता है उपयोग
संजय ने दावा किया है कि बाजारों में बिकने वाली अन्य साइकिल की तुलना में यह ज्यादा बेहतर और आरामदायक है. इसका उपयोग रेसिंग के लिए भी किया का सकता है. इस युवा ने विलुप्त होती बांस कला को फिर से जीवित करने और बेरोजगार युवाओं को रोजगार से जोड़ने के उद्देश्य से बांस की साइकिल का निर्माण किया है. इसमें खास बात यह है कि साइकिल बनाने में हस्तशिल्प का प्रयोग किया गया है.
बांस की साइकिल फिलीपींस में ला रही हैं बदलाव
उत्क्रमित मध्य विद्यालय लगुनियां सूर्यकंठ के एचएम सौरभ कुमार ने बताया कि बांस की साइकिल फिलीपींस में बदलाव ला रही है. बाम्बिके रिवोल्यूशन साइकिल्स के संस्थापक ब्रायन बेनिटेज मैक्लेलैंड के लिए यह खोज जीवन बदलने वाली थी. मूल रूप से फिलीपींस के रहने वाले ब्रायन को 2007 में अफ्रीका की यात्रा के दौरान ये साइकिल मिली. उन्हें तुरंत एहसास हुआ कि यह नवाचार उनके अपने देश में विकसित किया जा सकता है. वहां बांस प्राकृतिक रूप से प्रचुर मात्रा में है. उन्होंने 2009 में अपनी पहली साइकिल बनायी. श्री कुमार बताते हैं कि बांस में ऐसे गुण होते हैं जो साइकिल चलाने के लिए एकदम सही होते हैं. ये गुण साइकिल के फ्रेम में तब्दील हो जाते हैं. बैम्बिक साइकिल अब सांस्कृतिक विरासत के बारे में पर्यटकों को शिक्षित कर और पर्यावरण के अनुकूल विकल्प चुनकर संधारणीय पर्यटन को बढ़ावा देने पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहा है. ऐसे में समस्तीपुर के ‘गांव के विश्वकर्मा’ संजय को प्रोत्साहित करने की जरूरत है.