गन्ना फसल में गलित शिखा रोग के लिये मौसम अनुकूल, किसान करें निगरानी

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा के मौसम विज्ञान विभाग के द्वारा किसानों को सलाह दी गयी है कि मौसम गन्ना फसल में गलित शिखा रोग के लिये अनुकूल है.

By Prabhat Khabar News Desk | June 13, 2024 12:11 AM

समस्तीपुर : डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा के मौसम विज्ञान विभाग के द्वारा किसानों को सलाह दी गयी है कि मौसम गन्ना फसल में गलित शिखा रोग के लिये अनुकूल है. इस मौसम में गन्ना फसल में गलित शिखा रोग की प्रबल संभावना है. वैज्ञानित ने कहा है कि इस रोग से लगभग 2.0 से 22.5 प्रतिशत तक और उग्र अवस्था में 80 प्रतिशत तक उपज तथा 11.80 से 65.0 प्रतिशत तक की चीनी की मात्र में कमी हो जाती है. जिससे किसान एवं चीनी मिलों का काफी हद तक नुकसान सहना पड़ता है. बिहार के वातावरण में इस राेग को वृद्धि के लिए तापक्रम 24-28 डिग्री सेल्सियस, नमी 75 से 85 प्रतिशत तथा 700 से1000 मिमी वर्षा उपयुक्त पाया गया है. इस राेग से अक्रांत पौधे के शीर्ष भाग की पत्तियां घुमावदार हो जाती है. अक्रांत बिन्दु से पत्तियां टूटकर नीचे झुक जाती है. पौधों की वृद्धि बिन्दु सड़ जाती है. पौधे की बढ़वार रुक जाती है. गन्ना फसल पर इस राेग का लक्षण दिखाई देने पर कार्बन्डाजीन (फफूंदनाशी) का 0.1 प्रतिशत दवा को 01 लीटर पानी में घोलकर 15 दिनों के अन्तराल पर तीन बार छिड़काव करने से राेग वृद्धि में कमी होती है. जिन किसानों के पास सिंचाई की सुविधा पर्याप्त हो तथा लंबी अवधि वाला धान लगाना चाहते हैं. वे राजश्री, राजेन्द्र मंसूरी, स्वर्णा सब-1 एवं वीपीटी-5204 आदि किस्में जल्द से जल्द बीजस्थली में गिराने का प्रयास करें. जितने क्षेत्र में धान का रोप करना हो उसके दशांश हिस्साें में बीज गिरायें. बीज को गिराने से पहले 1.5 ग्राम बविस्टीन प्रति किग्रा बीज की दर से उपचारित करें. जो किसान अब तक हल्दी एवं अदरक की बोआई नहीं किये हैं, वे अतिशीघ्र बोआई सम्पन्न करें. हल्दी की राजेन्द्र साेनिया, राजेन्द्र सोेनाली किस्में व अदरक की मरान एवं नदिया किस्में उत्तर बिहार के लिये अनुशंसित है. हल्दी के लिये बीज दर 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा अदरक के लिये 18 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर रखें. बीज प्रकन्द का आकार 30 से 35 ग्राम जिसमें 3 से 5 स्वस्थ कलियां हो. राेपाई की दूरी 30 गुणा 20 सेमी रखें. बीज को उपचारित करने के बाद ही बोआई करें. मध्यम अवधि के धान के किस्मों को बीजस्थली में गिराने का काम करें. इसके लिए संतोष, सीता, सरोज, राजश्री, प्रभात, राजेन्द्र सुवासनी, राजेन्द्र कस्तुरी, राजेन्द्र भगवती, कामिनी, सुगंधा किस्में अनुशंसित है. एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में राेपाई के लिये 800 से 1000 वर्ग मीटर क्षेत्रफल में बीज गिरावें. नर्सरी में क्यारी की चौड़ाई 1.25 से 1.5 मीटर तथा लंबाई सुविधा अनुसार रखें. बीज को गिराने से पहले बविस्टिन 2.0 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से बीजोपचार करें. मूंग, उड़द की तैयार फलियों की तुड़ाई कर लें तथा हरी खाद के लिए उसके पौधों को मिट्टी पलटने वाले हल से जमीन में गाड़ दें. खरीफ प्याज की नर्सरी (बीजस्थली) में गिरावें. छाेटी-छोटी उथली क्यारियों जिसकी चाैड़ाई एक मीटर एवं लंबाई सुविधानुसार रखें. बीज को पंक्तियों में गिरावें. नर्सरी में जल निकास की व्यवस्था रखें. एन-53, एग्रीफाउण्ड र्डाक रेड, अर्का कल्याण, बसवंत-780 खरीफ प्याज के लिए अनुशंसित किस्में हैं. बीज गिराने के पूर्व बीज को केप्टन या थीरम प्रति 2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से मिलाकर बीजोपचार कर लें. बीज की दर 8 से 10 किग्रा प्रति हेक्टेयर रखें. बीज प्रमाणित स्त्रोत से खरीदकर ही लगावें.किसान बरसाती सब्जियाें भिंडी, लौकी, नेनुआ, करैला, खीरा की बोआई करें. इस मौसम में मिर्च की खेत में विषाणु रोग (पत्तियों का टेढ़ामेढ़ा होना) का प्रकोप अधिक देखने को मिलता है, इसके बचाव के लिए ग्रसित पौधे को उखाड़ कर जमीन में गाड़ दें तथा इमिडाक्लोप्रिड एक मिली प्रति 3 लीटर पानी की दर से घोल बनाकर आसमान साफ रहने पर छिड़काव करें.

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