भारत को अच्छी तरह से जानने-समझने वाली विषय वस्तु पढ़ने को मिलेगी

च्चों को चहुंमुखी विकास के अवसर मुहैया करवाने, परीक्षा को लचीला बनाने और कक्षा की गतिविधियों से जोड़ने तथा एक ऐसी अधिभावी पहचान का विकास, जिसमें प्रजातांत्रिक राज्य व्यवस्था के अंतर्गत राष्ट्रीय चिंताएं समाहित हों.

By Prabhat Khabar News Desk | August 12, 2024 11:24 PM

समस्तीपुर : बच्चों को चहुंमुखी विकास के अवसर मुहैया करवाने, परीक्षा को लचीला बनाने और कक्षा की गतिविधियों से जोड़ने तथा एक ऐसी अधिभावी पहचान का विकास, जिसमें प्रजातांत्रिक राज्य व्यवस्था के अंतर्गत राष्ट्रीय चिंताएं समाहित हों. इन्ही सब उद्देश्यों की पूर्ति के लिए एनईपी के तहत पाठ्यपुस्तक में बदलाव किये गये हैं. शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर शिक्षा नीति में बदलाव किये गये हैं. स्कूली शिक्षा के स्तर पर तीसरी और छठी कक्षा के लिए एनईपी के तहत नई पाठ्य पुस्तकें बाजार में आ गई हैं. किताबों में बच्चों को चंद्रयान अभियान से जुड़ी रोचक कहानियों के अलावा जीवन मूल्यों और पारिवारिक जुड़ाव को बढ़ाने वाले पाठ के साथ भारत को अच्छी तरह से जानने-समझने वाली विषय वस्तु पढ़ने को मिलेगी. दो कक्षाओं की पाठ्य पुस्तकें सामने आई हैं, उसमें तीसरी कक्षा के गणित विषय की पाठ्य पुस्तक सबसे रोचक है. इसे गणित मेला नाम दिया गया है. वह बच्चों के कौतूहल को ठीक वैसे ही बढ़ाने वाली है, जैसे मेले में बच्चे हर खिलौने को देखकर इतराने लगते हैं. बच्चों को दोहरा शतक, नानी मां के साथ छुट्टियां, कुछ लेना कुछ देना, सूरजकुंड मेला जैसे कहानियों से भी रूबरू कराया जायेगा. तीसरी कक्षा के बच्चों को चंद्रयान मिशन की कहानी को जिस अंदाज में परोसा गया है, वह बच्चों के मन-मस्तिष्क पर सदैव के लिए छप जाने वाली है.

आखिर क्यों पड़ा भारत नाम… किताब में होगी व्याख्या

भारत और इंडिया नाम को लेकर अब अक्सर राजनीति होती रहती है. ऐसे में छठवीं कक्षा के सामाजिक विज्ञान की नई पाठ्य पुस्तक में एनसीईआरटी ने इंडिया, दैट इज भारत नाम से एक पाठ रखा गया है. इसमें बताया है कि देश का प्राचीन नाम क्या था. साथ ही देश का इंडिया नाम कैसे विदेशी लोगों ने रखा. इसके साथ ही इनमें देश की संस्कृति और इसके इतिहास की भी पूरी जानकारी दी गई है. डीपीओ एसएसए मानवेंद्र कुमार राय बताते है कि हमारे जीवन में स्कूली पाठ्यपुस्तकों के महत्व को कम नहीं आंका जा सकता. स्कूली पाठ्यपुस्तकों से हम जो सीखते हैं, वह दशकों तक हमारी स्मृति में बना रहता है. आधी सदी से भी ज़्यादा समय बीत जाने के बाद भी, स्कूली पाठ्यपुस्तकों में लिखी कहानियाँ, चित्र और नक्शे याद आते रहते हैं. स्कूली बच्चे अपनी प्रारंभिक अवस्था में होते हैं. स्वाभाविक रूप से, उस अवस्था में होने वाली राय-निर्माण प्रक्रिया व्यक्ति के विचारों और विचारों को आकार देने में मदद करती है. जब स्कूली पाठ्यपुस्तक में किसी तानाशाह को दयालु राजा के रूप में दिखाया जाता है, तो व्यक्ति उस तथ्य को स्वीकार करने से इनकार कर देता है, भले ही उसके पास इसके लिए बहुत सारे सबूत क्यों न हों. कई बार पाठ्यपुस्तकें ईश्वर की शिक्षा बन जाती हैं और अगर किसी के अपने माता-पिता भी पाठ्यपुस्तकों में बताई गई बातों से अलग कोई बात कहते हैं, तो भी बच्चे उसे स्वीकार करने से इनकार कर देते हैं. उत्क्रमित मध्य विद्यालय लगुनियां सूर्यकण्ठ के एचएम सौरभ कुमार ने बताया कि एक बेहतरीन पाठ्यपुस्तक बनाना कठिन काम है. लेखक को छात्रों को विषय को समझने में मदद करने के साथ-साथ उन्हें उसमें रुचि और उत्साह भी बनाए रखना चाहिए. पाठ्यपुस्तक में दी गई सभी जानकारी संक्षिप्त और आसानी से समझ में आने वाली होनी चाहिए. बहुत ज्यादा पाठ बोझिल हो सकता है, जिससे छात्रों के लिए ज़रूरी तथ्यों को याद रखना चुनौतीपूर्ण हो सकता है. स्पष्टीकरण को छोटा और सरल रखने से महत्वपूर्ण विवरण याद रखना आसान हो जाता है.

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