आस्था दिघवारा की झौवा पंचायत में बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाएं करती हैं अरता पात का निर्माण
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कौमी एकता का संदेश दे रहीं मुस्लिम महिलाएं
आस्था दिघवारा की झौवा पंचायत में बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाएं करती हैं अरता पात का निर्माण दिघवारा : सारण जिले में स्थित है एक प्रखंड, जिसका नाम है दिघवारा. इसी प्रखंड के पश्चिमी सीमांत पर बसी है झौवा पंचायत. इस पंचायत की पूरे देश में अपनी एक अलग पहचान है और यह पहचान इस […]
दिघवारा : सारण जिले में स्थित है एक प्रखंड, जिसका नाम है दिघवारा. इसी प्रखंड के पश्चिमी सीमांत पर बसी है झौवा पंचायत. इस पंचायत की पूरे देश में अपनी एक अलग पहचान है और यह पहचान इस पंचायत के लोगों ने अरता पात का निर्माण कर हासिल की है. छठ व कई मांगलिक कार्यों में उपयोग में आनेवाले अरता पात का झौवा में वाणिज्यिक तौर पर उत्पादन होता है और शायद ही देश का कोई ऐसा राज्य है जहां झौवा का निर्मित अरता पात नहीं पहुंचता हो. छठ के सूप की सुंदरता झौवा के बने अरता पात से ही बढ़ती है.
इन सब बातों से इतर झौवा की मुस्लिम महिलाएं पूरे देश को कौमी एकता का संदेश भी देती हैं. मौजूदा दौर में दो कौमों के तल्ख हुए रिश्तों के बीच आज भी दर्जनों मुस्लिम परिवारों की महिलाएं आस्था भाव के साथ शुद्धता के बीच हिंदू भाइयों के छठ के लिए अरता पात का निर्माण करती हैं. मुस्लिम घरों में बनकर तैयार अरता पात देश के कोने-कोने में पहुंचता है.
दो दर्जन से अधिक मुस्लिम घरों में बनता है अरता पात : पंचायत के सैदपुर झौवा, झौवा व महुआनी के लगभग दो दर्जन से अधिक मुस्लिम घरों में इसका निर्माण होता है. यूनिस मियां, कुदुस मियां, नईन मियां, जमील मियां, मो शमीम व मो सलीम मियां सरीखे कई मुस्लिम परिवारों के सभी सदस्य अरता पात का निर्माण करते हैं. इन घरों में इनके पूर्वजों के जमाने से ही इसका निर्माण होता आ रहा है.
हिंदू व मुसलमान साथ मिल करते हैं अरता पात का निर्माण : ऐसे तो झौवा पंचायत के सभी घरों में अरता पात का निर्माण होता है और यह धंधा कुटीर उद्योग की शक्ल ले चुका है. क्या हिंदू और क्या मुसलमान और क्या अमीर और क्या गरीब हर कोई इस धंधे में जुटा है. यहां अरता पात का निर्माण सालों भर होता है, मगर दशहरा से दीवाली तक इसका निर्माण युद्ध स्तर पर किया जाता है.
नहीं होता है फायदा, बीमारी बटोर करते हैं निर्माण : बढ़ती महंगाई के बीच अब इस धंधे से जुड़े लोगों को ज्यादा फायदा नहीं होता है फिर भी दर्जनों मुस्लिम घरों में अरता पात का निर्माण होता है. यूनिस मियां कहते हैं कि फायदा हो या न हो, मगर दिल को इस बात से तसल्ली मिलती है कि उनके हाथों के बने आरतापात का उपयोग देश के कोने-कोने में बसे हिंदू भाई छठ व अन्य मांगलिक अवसर पर करते हैं. 70 वर्षीय फातिमा बीबी ने बताया कि जब वह 12 साल की अवस्था में निकाह कर झौवा आयी थी,
तभी से इसका निर्माण कर रही है, हालांकि बातचीत में फातिमा ने बताया कि इसके निर्माण में अकवन की रूई का प्रयोग होता है, जो धुनाई से लेकर कई प्रक्रियाओं के पूर्ण होने तक धूल की शक्ल में काफी उड़ती है, जिससे निर्माण से जुड़े लोग श्वास संबंधी बीमारी यानी टीबी व दमा जैसी बीमारी की चपेट में आ जाते हैं, बावजूद इसके कौमी एकता की मजबूती के उद्देश्य से निरंतर निर्माण हो रहा है.
छठ व अन्य मांगलिक आयोजनों में पड़ती है इसकी जरूरत
देश के कई राज्यों में छठ के सूप की शोभा बढ़ाता है झौवा का अरता पात
क्या है आरता पात और कैसे होता है इसका निर्माण
राजस्थान, झारखंड व कई अन्य राज्यों से मंगायी गयी अकवन की रूई की पहले धुनाई होती है फिर उसे बेसन या आटा में रंगकर उबाला जाता है. फिर अलग-अलग कर उसे सुखाया जाता है फिर इसकी गिनती व पैकिंग कर इसे स्थानीय स्तर के व्यापारी से बेचा जाता है. बाद में स्थानीय व्यापारी इसे बिहार, झारखंड, दिल्ली,उत्तरप्रदेश,मध्यप्रदेश सरीखे देश के कई राज्यों में भेजकर आमदनी प्राप्त करते हैं.
वहीं इन जगहों पर लोग इसकी खरीदारी कर इसका उपयोग छठ व अन्य मांगलिक कार्यों में करते हैं. छठ के बाद इसे घर की चौखटों पर चिपकाया जाता है. झौवा में कई दशक पूर्व से इसका निर्माण होता आ रहा है और बिहार में अरता पात उत्पादन का सबसे बड़ा हब बन गया है. पहले इसे महावर भी कहा जाता था.
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