घर को बना दिया था आंदोलनकारियों का आशियाना
छपरा : भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के ऐसे योद्धा जिन्होंने आजादी के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर किया उनमें मौलाना मजहरुल हक को अग्रिम पंक्ति का सेनानी माना जाता है. मजहरुल हक 1866 में पटना जिले के बिहटा के बिहपुरा के एक जमींदार परिवार में जन्मे तथा 1900 में सारण जिले के ग्राम फरीदपुर में जा बसे. […]
By Prabhat Khabar Digital Desk |
December 22, 2017 3:46 AM
छपरा : भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के ऐसे योद्धा जिन्होंने आजादी के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर किया उनमें मौलाना मजहरुल हक को अग्रिम पंक्ति का सेनानी माना जाता है. मजहरुल हक 1866 में पटना जिले के बिहटा के बिहपुरा के एक जमींदार परिवार में जन्मे तथा 1900 में सारण जिले के ग्राम फरीदपुर में जा बसे.
हक साहब ने लंदन से कानून की उच्च शिक्षा प्राप्त की थी. लंदन में सभी धर्मों और फिरकों के लोगों को एक साथ लाने के उद्येश्य से उन्होंने ‘अंजुमन इस्लामिया’ नाम से एक संस्था की स्थापना की. महात्मा गांधी इसी संस्था में पहली बार मजहरुल साहब से मिले थे. 1891 में बिहार लौटने के बाद पटना और छपरा में वकालत के साथ सामाजिक कार्यों में रुचि ने उनकी लोकप्रियता बढ़ायी. फरीदपुर में स्थित मौलाना के घर का नाम ‘आशियाना’ है. जिसका अर्थ होता है ठिकाना. उस दौर में यह स्वतंत्रता सेनानियों का आश्रय-स्थल हुआ करता था. पंडित मोतीलाल नेहरू, सरोजिनी नायडू, मदन मोहन मालवीय सहित कई लोग इस घर के मेहमान रहे थे.
होमरूल के प्रथम अध्यक्ष बने मजहरूल हक
1916 में बिहार में होम रूल मूवमेंट की स्थापना के बाद वे उसके प्रथम अध्यक्ष बने. अंग्रेजों के खिलाफ डॉ राजेंद्र प्रसाद के साथ चंपारण सत्याग्रह में शामिल होने की वजह से उन्हें जेल की सजा भी हुई. जब महात्मा गांधी ने देश में असहयोग और खिलाफत आंदोलनों की शुरुआत की तो मजहरुल हक ने अपना वकालत का पेशा और मेंबर ऑफ इंपीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल का सम्मानित पद छोड़ दिया और पूरी तरह स्वाधीनता आंदोलन का हिस्सा हो गये.
नाम पर बने यूनिवर्सिटी, सड़क और भवन
1930 में मृत्यु के पूर्व आखिरी दिनों में उन्होंने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया था. स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान की स्मृति में बिहार सरकार ने 1998 में मौलाना मजहरुल हक अरबी एंड पर्शियन यूनिवर्सिटी की स्थापना की थी. पटना और छपरा में इनके नाम से शहर की एक प्रमुख सड़क भी है. वहीं छपरा के प्रसिद्ध अधिवक्ता पत्रकार और समाजसेवी शिवाजी राव आयदे ने प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद की इच्छा पर 1968 में मजहरुल मेमोरियल ट्रस्ट की स्थापना की और हिंदू-मुस्लिम एकता को समर्पित मजहरुल एकता भवन का निर्माण कराया जो शहर का एकमात्र प्रेक्षा गृह है. यहां एक बात और अति महत्वपूर्ण रूप से उल्लेखनीय है कि छपरा पूरे देश में इकलौता शहर है जहां मौलाना की प्रतिमा स्थापित है. हालांकि आयदे साहब को उस समय इसके लिए फतवे का सामना भी करना पड़ा था. मजहरुल साहब बिहार में शिक्षा के अवसरों और सुविधाओं को बढ़ाने तथा अनिवार्य एवं निःशुल्क प्राइमरी शिक्षा लागू कराने के लिए अरसे तक संघर्ष करते रहे. जहां वे पैदा हुए, उस घर को उन्होंने एक मदरसे और एक मिडिल स्कूल की स्थापना के लिए दान दे दिया ताकि एक ही परिसर में हिंदू और मुस्लिम बच्चों की शिक्षा-दीक्षा हो सके.
एकता की निशानी सदाकत आश्रम
सदाकत उर्दू का शब्द है जिसका अर्थ है सत्य यानी सदाकत आश्रम हुआ सत्य का आश्रम. स्वतंत्रता आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए 1920 में हक साहब ने पटना में अपनी सोलह बीघा जमीन दान दी. इसपर स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान महत्वपूर्ण योगदान देने वाले सदाकत आश्रम की और असहयोग आंदोलन के दौरान पढ़ाई छोड़ने वाले युवाओं की शिक्षा के लिए विद्यापीठ कॉलेज की स्थापना हुई. सदाकत आश्रम से उन्होंने ‘मदरलैंड’ नाम से एक साप्ताहिक पत्रिका भी निकाली.
जिसमें आजादी के पक्ष में अपने प्रखर लेखन के कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा. यह आश्रम आजादी के बाद बिहार कांग्रेस का मुख्यालय बना, लेकिन बहुत कम कांग्रेसियों को आज मौलाना साहब के योगदान और त्याग की याद होगी.