छपरा : गरीब विधवा ने दान दी जमीन, तब खुला स्कूल

आजादी के 70 वर्षों बाद भी सारण के कोहबरवां गांव में नहीं थी कोई पाठशाला प्रभात किरण हिमांशु छपरा : मन में समाज के लिए कुछ करने का संकल्प हो, तो समर्पण छोटा या बड़ा है. यह मायने नहीं रखता. सारण की बदलुटोला पंचायत स्थित कोहबरवां गांव की बुजुर्ग महिला शिवदसिया कुंवर ने समाज के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 15, 2019 8:13 AM
आजादी के 70 वर्षों बाद भी सारण के कोहबरवां गांव में नहीं थी कोई पाठशाला
प्रभात किरण हिमांशु
छपरा : मन में समाज के लिए कुछ करने का संकल्प हो, तो समर्पण छोटा या बड़ा है. यह मायने नहीं रखता. सारण की बदलुटोला पंचायत स्थित कोहबरवां गांव की बुजुर्ग महिला शिवदसिया कुंवर ने समाज के लिए बड़ा कदम उठाया. आजादी के 70 वर्ष बाद भी गांव में सरकारी स्कूल नहीं खुल सका था. शिवदसिया के एक संकल्प से वहां नियमित पाठशाला चल रही है. गरीबी में संघर्ष कर रही इस बुजुर्ग महिला ने गांव में पाठशाला खोलने के लिए अपने हिस्से की आखिरी जमीन भी दान दे दी.
शिवदसिया कुंवर कभी स्कूल नहीं गयीं. लेकिन, उनका जीवन स्वामी विवेकानंद से प्रेरित है. कोहबरवां गांव के कुछ मजदूर छपरा के रामकृष्ण मिशन में काम करने गये थे. वहां जानकारी मिली कि गांव में एक भी स्कूल नहीं है और 90% लोग निरक्षर हैं. इसके बाद यहां एक स्कूल खोलने का निर्णय लिया गया. लेकिन, जमीन नहीं मिल रही थी. मजदूरों ने शिवदसिया को यह बतायी. इसके बाद उसने अपने हिस्से की लगभग एक कट्ठा जमीन दान दे दी.
बेटों की नहीं हुई पढ़ाई, अब गांव के बच्चे पढ़-लिख कर संवारेंगे अपना भविष्य
प्रभात खबर की टीम से बातचीत में शिवदसिया ने कहा कि उनके बेटे पढ़ नहीं सके. लेकिन, उनके पोते-पोतियां और गांव के दूसरे बच्चे पाठशाला में आकर जीवन को नयी दिशा दे रहे हैं. शिवदसिया के दो बेटे हैं.
एक राजमिस्त्री हैं और दूसरे भी मजदूरी कर जीवनयापन करते हैं. आश्रम के लाटू महाराज पाठशाला की सफाई और बच्चों के लिए भोजन बनाने में भी सहयोग करते हैं. पाठशाला में कक्षा एक से सात तक पढ़ाई होती है. बच्चों को भोजन, कपड़े और स्वास्थ्य सुविधाएं भी उपलब्ध करायी जाती हैं.
शिवदसिया से प्रेरित होकर गांव के दूसरे लोगों ने भी स्कूल के लिए दान में दी जमीन
शिवदसिया कुंवर ने इस पाठशाला के लिए एक कट्ठा जमीन दान दी है. हालांकि यह पाठशाला लगभग 10 कट्ठा जमीन में चलती है. लेकिन, शिवदसिया ही वह पहली महिला थीं, जो जमीन दान देने के लिए तैयार हुई थी.
उनके निर्णय से प्रभावित होकर ही अन्य लोगों ने अपनी जमीन दान में दी. शिवदसिया को दो बेटे हैं, जिन्हें अपने-अपने हिस्से की जमीन बंटवारे में मिल चुकी है. दान वाली जमीन पर शिवदसिया का अपना अधिकार था, इसलिए उन्होंने बगैर किसी से पूछे अपनी जमीन दान दे दी.

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