जल संरक्षण के लिए हो रही थी कुएं की सफाई, खुदाई के दौरान मिली दुर्लभ मूर्तियां और शिलापट

मकेर : प्रखंड के लच्छी कैतुका गांव स्थित सैकड़ों एकड़ में फैले लिच्छवी गणराज्य की ज्योतिखा टीले के भू-भाग में क्षतिग्रस्त कुएं के जीर्णोद्धार के लिए हो रहे उड़ाही व खुदाई के दौरान कुएं के अंदर से सैकड़ों साल पुरानी एक मूर्ति, एक शिवलिंग तथा दर्जनों शिलापट के शिलालेख मिले हैं. उस कुएं का जल […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 5, 2019 4:09 AM

मकेर : प्रखंड के लच्छी कैतुका गांव स्थित सैकड़ों एकड़ में फैले लिच्छवी गणराज्य की ज्योतिखा टीले के भू-भाग में क्षतिग्रस्त कुएं के जीर्णोद्धार के लिए हो रहे उड़ाही व खुदाई के दौरान कुएं के अंदर से सैकड़ों साल पुरानी एक मूर्ति, एक शिवलिंग तथा दर्जनों शिलापट के शिलालेख मिले हैं. उस कुएं का जल संरक्षण के उद्देश्य से ग्राम पंचायत की योजना के तहत सफाई करायी जा रही थी. इसी दौरान मजदूरों को कुएं में ठोस वस्तु की जानकारी हुई.

कुएं के अंदर से पंचायत के मुखिया सतेंद्र सिंह ने मजदूरों की मदद से मूर्ति व अन्य सामान को बाहर निकलवा कर सुरक्षित रखा है. बताते चलें कि वर्ष 2012 में भी एक पंचमुखी की मूर्ति मिट्टी खुदाई में मिली थी. इसे देखने के लिए सांसद, विधायक से लेकर आलाधिकारियों की टीम पहुंची थी. ज्योतिखा टीले की ऐतिहासिकता हजारों साल पुरानी बतायी जाती है.
बौद्ध विद्वानों ने माना है कि ज्योतिखा टीले पर ही बैठ कर भगवान गौतम बुद्ध अपने शिष्यों को प्रवचन सुनाते थे. लोगों ने बताया कि उक्त स्थल पर लिच्छवी राज का कौतुक स्थल हुआ करता था.
साथ ही भक्त भी घूमने आया करते थे. यहां से लिच्छवी गणराज्य की राजधानी वैशाली की दूरी गंडक नदी के उस पार मात्र चार किलोमीटर पर स्थित है और गणराज्य के अंतर्गत ही आता था. उस समय वैशाली से लोग नाव से ज्योतिखा टीला पहुंचते थे.
ज्योतिखा टीले के भू-भाग में चल रहे चिमनी भट्ठे की मिट्टी की खुदाई में मजदूर को कई प्राचीन काल की वस्तुएं जैसे मूर्ति, मिट्टी का बड़ा मटका, छोटे-छोटे पत्थर तथा दीवार की ईंटें बराबर मिलती रहती हैं. लोगों का कहना है बहुत सारे धातु भी मजदूरों को मिले थे, जिसे वे लेते गये. उक्त स्थल पर कुएं से मिली मूर्ति तथा अन्य सामान को लेकर सैकड़ों ग्रामीणों ने स्थल पर पहुंच कर देखा.

Next Article

Exit mobile version