यदुनंदन कॉलेज की लाइब्रेरी का हाल बदहाल

दिघवारा : कहते हैं किताबों के अध्ययन से किस्मत संवरती है और यह यह किस्मत बनाने का जरिया भी बनती है. कोई भी विद्यार्थी जो किताबों को अपना साथी बना लेता है तो फिर सफलता उसका कदम चुमती है. मगर जब किसी कॉलेज में लाइब्रेरियन का पद पिछले दस साल से खाली हो, पुस्तकालय की […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 14, 2020 7:08 AM

दिघवारा : कहते हैं किताबों के अध्ययन से किस्मत संवरती है और यह यह किस्मत बनाने का जरिया भी बनती है. कोई भी विद्यार्थी जो किताबों को अपना साथी बना लेता है तो फिर सफलता उसका कदम चुमती है. मगर जब किसी कॉलेज में लाइब्रेरियन का पद पिछले दस साल से खाली हो, पुस्तकालय की स्थिति दिन प्रतिदिन बदहाल हो रही हो और उस पुस्तकालय में मौजूद हजारों किताबें वर्षों पुरानी हो तो सहज समझ सकते हैं कि विद्यार्थियों की स्थिति कैसी होगी और ऐसे किताबों के अध्ययन का विद्यार्थियों को क्या फायदा मिलता होगा? सवाल यह कि क्या पुरानी किताबों के अध्ययन से विद्यार्थी खुद को इस प्रतिस्पर्धी युग में अप टू डेट ज्ञान पाने में सक्षम होने के साथ सफलता पाने में कामयाब हो पायेंगे?

जी हां, जयप्रकाश विश्वविद्यालय छपरा की अंगीभूत इकाई यदुनंदन कॉलेज दिघवारा की यही स्थिति है. इस कॉलेज का पुस्तकालय बदहाल स्थिति में है और लगभग पिछले कई वर्षों से इस पुस्तकालय में नई किताबों की एंट्री नहीं हुई है. लिहाजा अत्यंत पुरानी किताबों से विद्यार्थी ज्ञानार्जन करने को विवश हैं.स्थिति यह है कि पुस्तकालय में प्रवेश करते ही उसकी बदहाल स्थिति सब कुछ खुद ब खुद बयां कर देती है.
उसमें पसरी गंदगी, बैठने के लिए कुर्सियों का अभाव,प्रकाश का अनुचित प्रबंध व किताबों पर जमी धूल की मोटी परत यह बताने को काफी है कि अब किसी भी विद्यार्थी को इस लाइब्रेरी की जरूरत नहीं है.जो पढ़ने वाले विद्यार्थी हैं उनलोगों की सिलेबस के अनुसार पढ़ने की किताबें इस लाइब्रेरी में नहीं है और जो न पढ़ने वाले हैं उनलोगों की चर्चा न करे तो ही बेहतर.
प्रभार में चल रहा है लाइब्रेरी का काम : कॉलेज में मौजूद लाइब्रेरी के संचालन की जिम्मेदारी लाइब्रेरियन की होती है. एक कुशल व दक्ष लाइब्रेरियन किताबों को बेहतर तरीके से रखने के साथ उसे विद्यार्थियों को देते हैं. अपने कार्य में दक्षता के सहारे लाइब्रेरियन पुस्तकों को उचित संरक्षण भी देते हैं,मगर विडंबना कहिए कि इस कॉलेज में पिछले लगभग 10 साल से लाइब्रेरियन का पद रिक्त हैं
और तब से किसी न किसी स्टॉफ को लाइब्रेरी का प्रभार देकर किसी तरह काम को पूरा कराया जा रहा है. जिसका नतीजा है कि लाइब्रेरी के प्रति बच्चों का रुझान काफी कम हो गया है और विद्यार्थी लाइब्रेरी की ओर जाना भूलने लगे हैं.लंबे समय तक कर्मी जयमंगल प्रसाद के पास लाइब्रेरी की जिम्मेदारी रही और अभी वर्तमान समय में कॉलेज में दर्शनशास्त्र की प्राध्यापिका डॉ सुनीता कुमारी के जिम्मे लाइब्रेरी का प्रभार है.
बकौल सुनीता वह विद्यार्थियों को लाइब्रेरी से किताबों को देने में सदैव तत्पर रहती है मगर विद्यार्थियों के अंदर पुस्तकों के उठाव की कोई रुचि नहीं है.कुछ बच्चियां पुस्तकों का निरंतर उठाव करती है मगर इसकी संख्या भी काफी कम है. डॉ कुमारी के अनुसार वह इच्छुक विद्यार्थियों को लाइब्रेरी का लाभ दिलवाने की हरसंभव कोशिश में जुटी रहती है.
विद्यार्थियों में नहीं है पुस्तकों के पढ़ने की अभिरुचि
कॉलेज के प्राचार्य डॉ अशोक कुमार सिंह का कहना है कि इंटरनेट के बढ़ते प्रभाव के कारण अब आज के विद्यार्थी किताबों से काफी दूर होने लगे हैं. ऐसी स्थिति में वे लोग लाइब्रेरी की अहमियत को नहीं समझते हैं और न ही इसमें बैठकर पुस्तकों को पढ़ने की फुर्सत उनलोगों के पास है.
उनका कहना है कि काफी मशक्कत के बाद विद्यार्थियों को क्लास करने के लिए कॉलेज तक बुलाया जाता है. ऐसी स्थिति में उनलोगों के लाइब्रेरी में जाने का सवाल ही नहीं उठता है
क्योंकि अधिकांश विद्यार्थी पुस्तकालय व पुस्तकों के महत्व को नहीं समझते हैं.हालांकि विद्यार्थियों के पुस्तकालय के प्रति रुचि घटने के और भी कारण हैं. पहला तो यह कि पुस्तकालय में इंटरमीडिएट स्तर की किताबें नहीं है और दूसरा यह कि इसमें डिग्री स्तर की जो भी किताबें उपलब्ध है वह काफी पुरानी हो चुकी है जिसके पढ़ने के प्रति विद्यार्थियों की रुचि नहीं बन पाती है.
पुस्तकालय में विभिन्न विषयों के नए संस्करण के किताबों का घोर अभाव है. खुद प्राचार्य श्री सिंह स्वीकारते हैं कि नवंबर 2014 में उनके योगदान के बाद से अब तक लाइब्रेरी में नई किताबें नहीं पहुंच सकी है.ऐसी स्थिति में आप भी सहज समझ सकते हैं कि पुरानी किताबों के अध्ययन से विद्यार्थी मौजूदा समय की पढ़ाई की प्रतिस्पर्धा में खुद को प्रतियोगी बनाने में कैसे सक्षम हो पाएंगे?
पहले कॉलेज में किताबों को लेने की दिखती थी होड़, अब पसरी दिखती है वीरानगी
यदुनंदन कॉलेज दिघवारा की स्थापना 1967 में हुई. शुरुआती समय में कॉलेज अपनी बेहतर पढ़ाई के लिए क्षेत्र में प्रसिद्ध था.इस कॉलेज का लाइब्रेरी भी काफी समृद्ध था और 2010 तक इस कॉलेज की लाइब्रेरी में दिन भर विद्यार्थियों का जुटान दिखता था. बड़ी संख्या में विद्यार्थी पुस्तकों का उठाव भी करते थे.
उस समय तक विद्यार्थियों के अंदर पुस्तकों के पढ़ने की होड़ सी दिखती थी मगर 31 जनवरी 2010 को लाइब्रेरियन राजेश्वर प्रसाद सिंह के सेवानिवृत्त हो जाने के बाद से लाइब्रेरी में वीरानगी बढ़ती गयी और इसके रखरखाव में भी निरंतर कमी होते चली गई.मौजूदा स्थिति यह है कि रखरखाव के अभाव में कुछ किताबों को दीमक चाट रहे हैं तो कुछ पर धूल की मोटी परत जमी है.
प्रभार में लाइब्रेरी के चलने के बाद कई लोगों ने इसके संचालन में अपनी व्यक्तिगत रुचि नहीं दिखाई.नतीजा यह हुआ कि विद्यार्थियों का लाइब्रेरी में जाने का सिलसिला कम होता चला गया और पुस्तकालय से पुस्तकों का उठाव भी अंगुली पर गिनने लायक रह गया.
आज की स्थिति यह है कि कॉलेज में इंटरमीडिएट से लेकर डिग्री तक के विभिन्न विषयों के लगभग तीन हजार से अधिक विद्यार्थी नामांकित हैं मगर प्राचार्य की मानें तो इन विद्यार्थियों में से महज 50 विद्यार्थी ही लाइब्रेरी का लाभ उठाते हैं
जिनमें से लड़कियों की संख्या ज्यादे है. कॉलेज के इच्छुक विद्यार्थियों को पुस्तकालय से 15 दिनों की अवधि के लिए किताबें दी जाती है फिर भी किताबों के उठाव में विद्यार्थियों की रुचि नहीं बन पा रही है. कहीं न कहीं इसके लिए इंटरनेट का बढ़ता प्रभाव भी बहुत हद तक जिम्मेदार है.
क्या कहते हैं प्राचार्य
कॉलेज में नामांकित विद्यार्थियों को पुस्तकालय का हरसंभव लाभ दिया जाता है, मगर पुस्तकालय से पुस्तकों का उठाव करने वाले विद्यार्थियों की संख्या काफी कम है. यह बात सही है कि लाइब्रेरी में नये संस्करणों की पुस्तकों का अभाव है, जिससे विद्यार्थियों का पुस्तकालय के प्रति रुचि नहीं बढ़ पाता है.
डॉ अशोक कुमार सिंह, प्राचार्य, यदुनंदन कॉलेज,दिघवारा, सारण

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