रमजान नेकियों के लिए है मौसम-ए-बहार
छपरा : रहमत–ए–मगफेरत की नेमतों से सराबोर होने के कारण रमजानुल मुबारक की अहमियत सभी महीनों से अफजल है. उसमें भी रमजान में जुमे को लोग खास निगाह से देखते हैं. छोटे बच्चे या किसी मजबूरी से रोजे नहीं रखनेवाले भी इस दिन रोजा रखते हैं. मसजिदों में जुमा की नमाज अदा करनेवालों का जम–ए–गफीर […]
छपरा : रहमत–ए–मगफेरत की नेमतों से सराबोर होने के कारण रमजानुल मुबारक की अहमियत सभी महीनों से अफजल है. उसमें भी रमजान में जुमे को लोग खास निगाह से देखते हैं. छोटे बच्चे या किसी मजबूरी से रोजे नहीं रखनेवाले भी इस दिन रोजा रखते हैं. मसजिदों में जुमा की नमाज अदा करनेवालों का जम–ए–गफीर उमड़ पड़ता है. इसे लेकर मसजिद प्रशासन व इंतेजामियां को खास व्यवस्था करनी पड़ती है.
वहीं, इमाम व खतीब हजरातों द्वारा भी विशेष खुतबों का आयोजन किया जाता है. शहर के साहेबगंज स्थित जामा मसजिद में दारूल ओलूम नईमियां के प्रिंसिपल व खतीब मौलाना नेसार अहमद मिसाबाही ने कहा कि जिस प्रकार हर चीज के लिए एक खास मौसम होता है, उसी तरह नेकियों के लिए भी रमजान मौसम–ए–बहार है.
उन्होंने कहा कि खाने और पीने की सारी नेमतें मौजूद होने के बावजूद बंदे के सिर्फ अल्लाह के हुक्म पर अपनी भूख और प्यास बुझाने से परहेज खुदा के नजदीक उसके महबूब बनने की वजह बनता है.
इस शिद्दत की गरमी में रोजा रखना, लगभग 17 घंटे तक प्यास से तड़पना, इनसान की ताजगी व मजबूती का सबूत है. ऐसे बंदों को ही खुदा का कुर्ब हासिल होगा. जिसने रब को राजी कर लिया, दुनिया और जाखेरत उसी की है.
मौलाना ने कहा कि यह नेकियां कमाने, इकट्ठा करने व मालामाल हो जाने का अवसर है. उन्होंने लोगों से अपील की कि रोजा, नमाज व इबादत की बदौलत जन्नत में अपना मुकाम कर लें. मर्कजी जामा मसजिद अहले हदीस में रमजान के पहले जुमे को मौलाना कादिर ने तकरीर का मौका एक मेहमान मोकर्रिर को दिया.
गोपालगंज के परसा स्थित मदरसा सलफिया के उस्ताद मौलाना मोहम्मद माज ने रमजान की फजीलत बयान करते हुए कहा कि अल्लाह ने हर बालिग मुसलमान मर्द व औरत पर रोजा फर्ज कर दिया. उन्होंने हर कौम, मजहब में रोजे की रिवायत का जिक्र करते हुए बताया कि रोजे और इबादत दिखावे के लिए नहीं, बल्कि अल्लाह की खुश्नरुदा के लिए होना चाहिए. उन्होंने रमजान के पहले दसवें दिन को रहमत का अशरा बताते हुए कहा कि इस अशरे में खूब इबादत, रियाजत व दुआओं का ऐहतमाम करें, ताकि अल्लाह की रहमत मौसूल हो सके.
करीमचक स्थित मौला मसजिद के इमाम मौलाना जाकिर ने अपने खुसूसी तकरीर में जकात को मौजू बनाया. उन्होंने कहा कि समाज के रुतबे व पैसे वाले किसी शख्स को जकात दें, तो वह लेने की बजाय नाराजगी व मारपीट पर उतारू हो जायेगा. मगर, ऐसा शख्स वैसे पैसे को खुद व अपने बाल–बच्चों को आराम से खिला रहा है.
चूंकि स्वयं अपना जकात अदा नहीं किया है. उन्होंने कहा कि जकात देने से माल व पैसे, दौलत पाक हो जाते हैं. वरना उनमें नापाकी शामिल रहती है. उन्होंने एक हदीस पेश किया कि हजरत मोहम्मद ने फरमाया कि जब तक फितरा न अदा कर दिया जाये, रोजा जमीन व आसमान के बीच मोअल्लक रहता है. यानी वह अल्लाह कुसूम नहीं फरमाता. लिहाजा, सही तौर पर हिसाब से जकात निकालने व फितर अदा करने की तलकीन करते हुए कहा कि यह भी सुनिश्चित करना आवश्यक है कि जकात व फितर उनके सही हकदारों तक पहुंचे.