हरिहर क्षेत्र सोनपुर में है पर्यटन की अपार संभावनाएं
हरिहर क्षेत्र सोनपुर में है पर्यटन की अपार संभावनाएं परंपरा व उत्सव का उल्लास है सोनपुर मेलायहां है गोरी गंगा व मटमैली गंडक का पावन संगम’हरि’ यानी विष्णु के साथ ‘हर’ यानी शिव का है अद्भुत नजारा सूबे में बोधगया के बाद सबसे अधिक पर्यटक पहुंचते हैं सोनपुर मेले मेंसंवाददाता, सोनपुरसोनपुर का नाम आते ही […]
हरिहर क्षेत्र सोनपुर में है पर्यटन की अपार संभावनाएं परंपरा व उत्सव का उल्लास है सोनपुर मेलायहां है गोरी गंगा व मटमैली गंडक का पावन संगम’हरि’ यानी विष्णु के साथ ‘हर’ यानी शिव का है अद्भुत नजारा सूबे में बोधगया के बाद सबसे अधिक पर्यटक पहुंचते हैं सोनपुर मेले मेंसंवाददाता, सोनपुरसोनपुर का नाम आते ही मन में एक प्रतिबिंब उभरता है. चटख रंगों का, भड़कदार रोशनियां का, रंग-बिरंगे कपड़ों का, उत्साह का, जोश व उमंग का, उत्तेजना व रोमांच का. यह प्रतिबिंब या चित्र उभरना स्वाभाविक है. क्योंकि सोनपुर के नाम से जुड़ा हुआ है एक आयोजन, जिसे मेला कहते हैं और मेला अपने अंदर समाहित कर लेता है उत्सव, परंपरा, कथा, दंत कथा, मान्यता, धार्मिक महत्व, आस्था, सामाजिक विविधता, संस्कृति, इतिहास व संवेदना को. मेले के अंदर मासूम बच्चों की खिलखिलाहट, ग्रामीण बालाओं की अटखेलियां व युवाओं के उल्लास का समाहित होना स्वाभाविक है. इस प्रकार सोनपुर व मेले का संबंध चोली-दामन का होने के पीछे प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा से यहां शुरू होनेवाले विश्व प्रसिद्ध ‘हरिहर क्षेत्र मेले’ के कारण है. वह भी ऐसा मेला, जो ‘विश्व प्रसिद्ध’ है. समूचे विश्व में प्रसिद्ध होने के पीछे एक सरल व सीधी वजह है, इसका ‘पशु मेला’ कहा जाना. इसे दुनिया का सबसे बड़ा पशु मेला माना जाता है, जहां चिड़ियों से लेकर हाथी तक की खरीद व बिक्री होती है. ऐसा मेला पूरी दुनिया में कहीं और नहीं लगता. इस नजरिये से सोनपुर को पूरी दुनिया में जाना जाता है. परंतु, सोनपुर में ‘हरिहर क्षेत्र मेला’ लगने के पीछे कई धार्मिक कथाएं व घटनाओं को कारण माना जाता है. कहा जाता है कि गोरी गंगा व मटमैली गंडक के इसी पावन संगम स्थल पर हरि (भगवान) ने अपने भक्त ‘गज’ को ‘ग्राह’ से बचाया था. दूसरी कथा भगवान राम से संबंधित है कि धनुष यज्ञ में सम्मिलित होने के लिए जनकपुर जाते समय राम ने यहां ‘हर’ की स्थापना की थी. इन दोनों गाथाओं की स्मृति में सोनपुर दरअसल ‘हरिहर क्षेत्र’ के नाम से जाना जाता है. ‘हर’ यानी शिव और ‘हरि’ यानि विष्णु. भारत में बहुत कम ही स्थान है, जहां शिवलिंग व विष्णु की मूर्ति एक साथ स्थापित हो. परंतु, बाबा हरिहरनाथ के मंदिर में यह अद्भुत नजारा दिखता है. सोनपुर में हरिहर क्षेत्र मेला कब से और कैसे लग रहा है, इसके ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिलते. बहरहाल, सोनपुर व उसके मेले तथा उसके धार्मिक महत्व पर बहुत कुछ लिखा-पढ़ा व शोध किया गया है. बिहार में पर्यटन की संभावनाएं तलाशने में पूरी सरकार लगी हुई है. कारण है संसाधन विहीन सूबे में यही एक ऐसा क्षेत्र है, जिसके माध्यम से देसी व विदेशी सैलानियों को आकृष्ट कर आय को समृद्ध किया जा सकता है. राज्य में प्राकृतिक रचनाओं यथा पहाड़, झरना, जंगल, झील आदि मौजूद नहीं, लिहाजा हमें इस संभावना की ओर मुड़ना होगा कि यहां के स्थलों के ऐतिहासिक व धार्मिक महत्व की खोज कर दुनिया के समक्ष रखें. फिर, देसी हो या विदेशी मेले की ओर लोगों का ध्यानाकार्षण करना होगा तथा उन्हें आमंत्रित करना होगा. राज्य में बोधगया के बाद सर्वाधिक पर्यटक सोनपुर (मेला अवधी) में आते हैं. गया में तो धर्म विशेष के विदेशी पर्यटक (श्रद्धालु) ही पधारते हैं, परंतु सोनपुर में ऐसी बंदिश नहीं. यानि यह स्थान जाना-बुझा या यूं कहें प्रसारित व प्रचारित है.