छह माह, तीन मुकदमे निष्पादित

पांच से छह वर्षों के भीतर दर्ज मुकदमे अब तक लंबित छह माह में वेतन व अन्य मदों में सरकारी खर्च हुए 14 लाख छह माह में 125 मुकदमों के दर्ज होने तथा निष्पादन महज तीन का होना चर्चा का विषय उपभोक्ता दिवस पर भी जागरूकता कार्यक्रम चलाने में कागजों में आदेश व अनुपालन छपरा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 25, 2015 5:00 AM

पांच से छह वर्षों के भीतर दर्ज मुकदमे अब तक लंबित

छह माह में वेतन व अन्य मदों में सरकारी खर्च हुए 14 लाख
छह माह में 125 मुकदमों के दर्ज होने तथा निष्पादन महज तीन का होना चर्चा का विषय
उपभोक्ता दिवस पर भी जागरूकता कार्यक्रम चलाने में कागजों में आदेश व अनुपालन
छपरा (सदर) : सरकार द्वारा आधुनिकता के इस दौर में भोले-भाले उपभोक्ताओं को ठगी से बचाने के लिए उन्हें जागरूक करने तथा ठगे जाने के बाद त्वरित न्याय दिलाने के लिए जिला उपभोक्ता फोरम की स्थापना की गयी है. जिले में फोरम कार्यरत भी है. इसके संचालन पर प्रति माह दो लाख से सवा दो लाख 25 रुपये तक वेतन एवं अन्य मदों में सरकार खर्च करती है.
परंतु, मुकदमों के निष्पादन की मंथर गति ने तो उपभोक्ताओं को अहसास करा दिया है कि वे फोरम में न्याय के लिए आकर ही ठगे जा रहे हैं. आखिर वे करें तो क्या करें.
छह माह में दर्ज 125 मुकदमे हुए दर्ज : जिला उपभोक्ता फोरम में उपभोक्ताओं को त्वरित न्याय दिलाने की व्यवस्था है. इसके तहत 21 दिन के भीतर ठगे गये उपभोक्ता के वाद में नोटिस तथा 90 दिनों के अंदर मुकदमों का निष्पादन करना है. परंतु, मुकदमों के निष्पादन के लिए इसकी रफ्तार का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है
कि लगभग छह माह में 125 मुकदमे ठगी के शिकार उपभोक्ताओं ने दर्ज कराये. परंतु, निष्पादन महज तीन का हुआ. वहीं, दो उपभोकताओं ने आपसी सहमति से वाद वापस ले लिया.
फोरम के सूत्रों की मानें, तो 650 के करीब मुकदमे फोरम में पांच से छह वर्षों से लंबित हैं. हालांकि, इन दर्ज मुकदमों में नोटिस होने के साथ-साथ डेट-पर-डेट पड़ रहा है. उपभोक्ता मुकदमों की पैरवी के लिए खुद या अधिवक्ता के माध्यम से आर्थिक खर्च के अलावा शारीरिक परेशानी भी उठा रहे हैं. इसके बावजूद उन्हें न्याय नहीं मिलता.
छह माह से अध्यक्ष का पद रिक्त, दो सदस्यों की उपलब्धि भी नगण्य : जिला फोरम के अध्यक्ष का पद 30 जून के बाद से रिक्त हो गया है. ऐसी स्थिति में एक पुरुष तथा एक महिला सदस्य फोरम के मुकदमों की सुनवाई करते हैं. इन्हें भारतीय उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 22 के तहत फैसला देकर ठगी के शिकार उपभोक्ताओं को न्याय दिलाना है. परंतु, मुकदमों की सुनवाई के बावजूद उपभोक्ताओं को परिणाम नहीं मिल रहा है. फोरम में दो सदस्य, एक पेशकार,
एक प्रधान लिपिक, दो स्टेनों तथा दो आदेशपाल की पदस्थापना की गयी है. इनके वेतन पर प्रति माह लगभग सवा दो लाख रुपये खर्च होते हैं.
उपभोक्ता दिवस भी मनाना भूल जाता है प्रशासन : सरकार के द्वारा उपभोक्ताओं को जागरूक करने के लिए शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्र तक 24 दिसंबर को राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस मनाने का निर्देश दिया गया है.
यही नहीं, सरकारी निर्देश के आलोक में जिला आपूर्ति पदाधिकारी सह सचिव जिला उपभोक्ता फोरम के द्वारा तीनों अनुमंडलों के एसडीओ को उपभोक्ता दिवस मनाने का निर्देश देकर खानापूर्ति कर ली जा रही है.
उपभोक्ता दिवस पर सरकारी आदेश के बावजूद संबंधित पदाधिकारी उपभोक्ताओं को जागरूक करने के लिए सरकार स्तर पर कार्यक्रम नहीं मनाते हैं. हालांकि दो वर्ष पूर्व प्रशासन ने जिला स्तर पर उपभोक्ता संरक्षण दिवस मनाया करता था.

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