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पीएचसी में संसाधनों का घोर अभाव

दिघवारा : अगर आप किसी सरकारी अस्पताल में इलाज कराने के लिए जाएं और वहां न आपके बैठने की व्यवस्था हो और न शौचालय व पेयजल का उचित इंतजाम. यहां तक कि खुले में हर किसी की उपस्थिति में डॉक्टर आपका इलाज शुरू कर दे तथा न दवा मिले और न अन्य जरूरी सुविधाओं से […]

दिघवारा : अगर आप किसी सरकारी अस्पताल में इलाज कराने के लिए जाएं और वहां न आपके बैठने की व्यवस्था हो और न शौचालय व पेयजल का उचित इंतजाम. यहां तक कि खुले में हर किसी की उपस्थिति में डॉक्टर आपका इलाज शुरू कर दे तथा न दवा मिले और न अन्य जरूरी सुविधाओं से आप महरूम रहे तो मरीज की मनोदशा क्या होगी. कुछ ऐसा ही हाल है मुख्य बाजार दिघवारा में स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का.
रोगियों के इलाज के लिए बना पीएचसी आज खुद बीमार है. हकीकत यही है कि पीएचसी में आनेवाले रोगियों को जान जोखिम में डालकर इलाज करवाने की विवशता होती है. लगभग दो करोड़ की लागत से सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का बिल्डिंग बना है. मगर पीएचसी के पुराने व जीर्ण शीर्ण कैंपस में रोगियों के इलाज का कोरम पूरा होता है. रोगियों का इलाज कम होता है और रेफर ज्यादा किये जाते है.
अतिक्रमण के कारण मरीजों को होती है परेशानी : पीएचसी के नये बिल्डिंग में पुलिस कर्मियों का कब्ज़ा है. वही प्रसव कक्ष में जिला परिषद् की ओर से बिल्डिंग मटेरियल रखा गया है.
जिस कारण लेबर रूम से ही नवप्रसुति महिला को घर भेज दिया जाता है. क्योंकि उन लोगों के ठहरने के लिए किसी रूम का इंतजाम नहीं है. दवा की कुछ वैरायिटी ही मरीजों को मिल पाती है. जिसका काउंटर बिजली के नंगे तार के पास बनाया गया है. अस्पताल में काम करने वाले डॉक्टर व अन्य स्टाफ को ड्यूटी करने में दिक्कत होती है. क्योंकि उन लोगों के ठहरने के लिए कोई अच्छा कमरा नहीं है और जिस कमरे में वे लोग रहते हैं वो सेफ नहीं है. रात्रि ड्यूटी करने वाले स्टाफ को ज्यादा तकलीफे झेलनी पड़ती है.
कई इलाकों के रोगियों के इलाज का है केंद्र : पीएचसी दिघवारा में नगर पंचायत के 18 वार्डों के अलावे दिघवारा, दरियापुर, गड़खा, छपरा सदर आदि प्रखंडों के रोगी इलाज कराने पहुंचते हैं. सड़क व रेल दुर्घटनाओं में घायल रोगियों का इलाज भी यही होता है. इसी केंद्र में महीने में 300 से ज्यादे महिलाओं की डिलिवरी होती हैं.
चार महीने से मरीजों को हो रही है परेशानी
पीएचसी दिघवारा में पहले छह बेड की सुविधा थी. फिर इसका तीस बेड वाले अस्पताल यानि सीएचसी में अपग्रेडेशन हुआ और बीते 1 जुलाई 2015 को पीएचसी 1 करोड़ 70 लाख 98 हजार 61 रूपये से बने सीएचसी के नये बिल्डिंग में सिफ्ट कर गया. मगर दुर्भाग्यवश इसी साल 24 अगस्त को आयी भयावह बाढ़ का पानी सीएचसी में घुस गया और उसी दिन सीएचसी पुराने पीएचसी में शिफ्ट कर गया.
पीएचसी बचाओ संघर्ष समिति ने बाजार में ही पीएचसी शुरू करने की मांग को लेकर आंदोलन छेड़ दिया. जिला अनुश्रवण समिति की बैठक में विधायक प्रो डॉ रामानुज प्रसाद की मांग पर डीएम की पहल के बाद सारण के सिविल सर्जन ने 19 सितम्बर को अगले आदेश तक पुराने पीएचसी में ही ओपीडी व इमरजेंसी सेवा बहाल रखने का आदेश दे दिया. तब से यानि पिछले चार महीने से रोगियों के इलाज का कोरम पूरा होता है.
दो जगहों पर अस्पताल होने के चलते यहां व ‘वहां’ के फेर में मरीजों की जानें जा रही है. रोगियों का इलाज पीएचसी के पुराने बिल्डिंग में होता है तो कागजी घोड़े सीएचसी के नये बिल्डिंग में दौड़ाए जाते हैं. जिस कारण हर मरीज यहां व वहां के चक्कर में फंसा रहता है.
पीएचसी में सिर्फ एक लेबर बेड की व्यवस्था
पीएचसी में गर्भवती महिलाओं का प्रसव राम-भरोसे होता है और जच्चा व बच्चा के जान को जोखिम में डालकर डिलिवरी करायी जाती है. संसाधनों के अभाव में गर्भवती महिलाओं की डिलिवरी जमीन पर लेटा कर करवायी जाती है. लेबर रूम में संसाधनों का घोर अभाव है.
लेबर रूम में काम करने वाली एएनएम ने बताया कि कक्ष में एक ही लेबर बेड है. ऐसी स्थिति में एक से ज्यादे डिलिवरी का केस आने पर जमीन पर लिटा कर भी प्रसव कराया जाता है. लेबर रूम में एक बूंद पानी का इंतजाम नहीं है. जिस कारण पानी लेने के लिए हमेशा चापाकल के पास जाना पड़ता है. नये अस्पताल में वार्मर मशीन नहीं होने के कारण नवजात को बदन ठंडा होने और सांस लेने में तकलीफ लेने के केस में तुरंत रेफर कर दिया जाता है और कई बार नवजात की जान भी चली जाती है. पीएचसीपरिसर में शौचालय व पेयजल की व्यवस्था नहीं होने के कारण रोगी व उसके परिजनों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.
और लोग इसके उपयोग के लिए बाजार व स्टेशन पर भटकते नजर आते है. ओपीडी में जहां डॉक्टर मरीज को देखते हैं. वहां किसी तरह के बेड की व्यवस्था नहीं है और बरामदे पर लगे दो बेडों पर खुले में किसी तरह रोगी का इलाज होता है. इसी खुले जगह पर सड़क व रेल दुर्घटनाओं में घायल मरीजों के अलावे अन्य बीमार रोगियों का इलाज होता है.

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