दो दशक बाद दिघवारा में पुरुष ने करायी नसबंदी
लापरवाही नसबंदी की प्रोत्साहन राशि मिलने में नागरिकता बनी अड़चन, परिवार के पालन-पोषण में हो रही परेशानी दिघवारा : परिवाररूपी गाड़ी पुरुष व महिला नामक दो पहियों के बेहतर समन्वय व सहयोग से चलती है,मगर हकीकत है कि पुरुष प्रधान समाज का दंभ भरने वाले अपने देश में परिवार नियोजन के साधनों को अपनाने की […]
लापरवाही नसबंदी की प्रोत्साहन राशि मिलने में नागरिकता बनी अड़चन, परिवार के पालन-पोषण में हो रही परेशानी
दिघवारा : परिवाररूपी गाड़ी पुरुष व महिला नामक दो पहियों के बेहतर समन्वय व सहयोग से चलती है,मगर हकीकत है कि पुरुष प्रधान समाज का दंभ भरने वाले अपने देश में परिवार नियोजन के साधनों को अपनाने की जिम्मेवारी महिलाओं के जिम्मे होती है.महिलाएं ही बंध्याकरण करवाकर अपने परिवार में सदस्यों की संख्या सीमित करती हैं. मगर बीते सोमवार को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र दिघवारा में एक पुरुष नसबंदी कराते हुए समाज के पुरुषों के बीच एक मिसाल बना,
मगर उक्त पुरुष की नसबंदी के बाद एक साथ कई मुश्किलें खड़ी हो गयीं, क्योंकि नसबंदी कराने वाला पुरुष भारतीय नहीं बल्कि नेपाली है. पुरुष को नसबंदी के तहत मिलने वाली प्रोत्साहन की राशि कैसे मिलेगी, क्योंकि उसके पास कोई बैंक खाता नहीं है और बिना पहचान के यहां भी बैंक खाता खोले जाने की उम्मीद कम है,जबकि प्रोत्साहन राशि का भुगतान बैंक खाते के तहत ही करने का नियम है. नियमों की पेच में पुरुष को प्रोत्साहन की राशि कैसे मिलेगी यह बड़ा प्रश्न बन गया है,वहीं अस्पताल प्रबंधन जिले से मार्गदर्शन मिलने के पूर्व प्रोत्साहन राशि के भुगतान में अपनी असमर्थता जता रहा है. नसबंदी की प्रोत्साहन राशि पाने में नागरिकता अड़चन बन गयी है.
नसबंदी के बाद हुई नेपाली के तौर पर शिनाख्त : नेपाल के अछाम निवासी व डोरीगंज में चाय विक्रेता एवं चार बच्चों के पिता 30 वर्षीय मोती सिंह सोमवार को सीएचसी दिघवारा में अपनी पत्नी का बंध्याकरण कराने पहुंचे और जब उनकी पत्नी की जांच के क्रम में हीमोग्लोबिन कम पाया गया, तो डॉक्टर ने उसकी पत्नी का बंध्याकरण करने से मना कर दिया. इसी बीच डॉक्टर ने मोती को नसबंदी करा लेने की सलाह दी, जिसे उसने स्वीकार कर लिया और उसकी नसबंदी कर दी गयी. बाद में पता चला कि वह नेपाल का निवासी है और डोरीगंज में लाल चाय बेचता है और तिवारी घाट पर पिछले तीन महीने से किराये के मकान में रह रहा है.
सीमित परिवार के सोच को लेकर करायी नसबंदी, बढ़ गया तनाव : बकौल मोती उसके परिवार में चार बच्चों में तीन बेटा (भरत आठ साल, प्रकाश चार साल व धर्मं छह महीना)और एक बेटी (जमाना कुमारी 10 वर्ष)है और परिवार में सदस्यों की संख्या सीमित करने के लिए उसने नसबंदी करायी, क्योंकि चाय बेच कर इससे बड़े परिवार की दाल-रोटी चलाना मुश्किल हो जाता.मोती ने आरोप लगाते हुए कहा कि किसी भी स्टाफ ने नसबंदी से पूर्व यह नहीं बताया कि नेपाली पुरुष को प्रोत्साहन राशि मिलने में दिक्कत होगी. उसने बताया कि नसबंदी के बाद अब जरूरत का सामान कैसे खरीदूं, क्योंकि अब तो चाय बेचने का काम भी बंद कर दिया है.
स्टाफ की गलती से मोती की बढ़ी परेशानी : अस्पताल स्टाफ ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि मोती सिंह की पत्नी को लेकर कोई आशा आयी थी, मतलब साफ था कि उसकी पत्नी की गलत पहचान बता कर ऑपरेशन किया जाता. इतना ही नहीं मोती की नसबंदी से पूर्व अगर उसके नाम पता पर पहले ही गौर किया जाता, तो ऑपरेशन से पहले ही पता चल जाता कि वह नेपाली है और प्रोत्साहन राशि का विवाद ही उत्पन्न नहीं होता. मगर कर्मियों की लापरवाही से मोती के साथ अस्पताल प्रबंधन की मुश्किलें भी बढ़ गयी हैं.
लगभग दो दशक बाद हुई है नसबंदी : 34 वर्षों से दवा दुकान चलाने वाले विजय सिंह ने बताया कि लगभग दो दशक बाद दिघवारा हॉस्पिटल में किसी पुरुष ने नसबंदी करायी है. ऐसे बीस वर्ष पूर्व यहां बड़ी संख्या में पुरुष नसबंदी कराने आते थे.
नियमों के पेच में फंस सकती है नसबंदी की प्रोत्साहन राशि
क्या कहते हैं अधिकारी
मैं दिघवारा सीएचसी प्रभारी से जानकारी प्राप्त कर रहा हूं, उसके बाद ही कुछ कह पाऊंगा. मगर नसबंदी कराने वाले पुरुष को प्रोत्साहन राशि के भुगतान से पूर्व उसकी नागरिकता की जांच होगी.
डॉ निर्मल कुमार, सिविल सर्जन,सारण
क्या कहते हैं प्रभारी
जिस युवक की नसबंदी हुई है वह नेपाली है और उसका कोई बैंक खाता नहीं है, ऐसे में उसकी प्रोत्साहन राशि के भुगतान से पूर्व जिले से मार्गदर्शन लेना होगा.
डॉ रोशन कुमार, प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, दिघवारा,सारण
नसबंदी पर मिलती है 2000 की प्रोत्साहन राशि
सरकारी अस्पताल में महिला को बंध्याकरण कराने पर 1400 रुपये और पुरुष को नसबंदी कराने पर 2000 की राशि मिलती है. दोनों मामलों में प्रेरक को 200 रुपये दिये जाते हैं.