Bihar Election History : तो बिहार की झोली में आ जाता प्रधानमंत्री का पद
Bihar Election History : बिहार को इस बात का मलाल रहा है कि उसे कई बार देश को प्रधानमंत्री देने का मौका मिला, लेकिन आज तक यह संभव नहीं हो सका. एक ऐसा भी मौका आया था जब महाराजगंज का सांसद देश का प्रधानमंत्री बनता, लेकिन यह हो ना सका.
Bihar Election History : पटना. यह साल 1989 का आम चुनाव था. पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर चुलाव लड़ने के लिए यूपी के बलिया से महाराजगंज पहुंचे थे. महाराजगंज से चंद्रशेखर ने जनता दल के टिकट पर अपना परचा भरा. उन्होंने बलिया को नहीं छोड़ा था. बलिया लोकसभा सीट से भी वे उम्मीदवार थे. चुनाव हुए तो चंद्रशेखर बलिया और महाराजगंज दोनों ही सीटों से चुनाव जीत गये. अब उनके सामने एक सीट छोड़ने की चुनौती थी. कोई कह रहा था कि चंद्रशेखर का बलिया से पुराना नाता रहा है, इसलिए वे बलिया से ही सांसद रहेंगे.
महाराजगंजवासियों को इसका रहा मलाल
इधर, बिहार में महाराजगंज के मतदाताओं को उम्मीद थी कि चंद्रशेखर महाराजगंज से ही लोकसभा में जाना स्वीकार करेंगे. बिहार के जागरूक मतदाताओं को चंद्रशेखर के सत्ता शीर्ष पर पहुंचने की संभावना शायद दिखने लगी थी. कशमकश में रहे चंद्रशेखर ने अंतत: बलिया से ही सासंद होना तय किया और उन्होंने महाराजगंज लोकसभा सीट से त्यागपत्र दे दिया. इसी लोकसभा के कार्यकाल में चंद्रशेखर देश के प्रधानमंत्री बने. यदि वे महाराजगंज लोकसभा सीट से सांसद बरकरार रहते, तो बिहार की झोली में प्रधानमंत्री का पद आ जाता. जैसा कि 2014 में नरेंद्र मोदी ने काशी सीट को लेकर किया. महाराजगंजवासियों को इसका मलाल रहा कि चंद्रशेखर को जीताकर भी वो प्रधानमंत्री के क्षेत्र के वोटर नहीं बन पाये.
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बाहरी हो कर भी चंद्रशेखर को मिली बड़ी जीत
चंद्रशेखर को महाराजगंज में 3,82,488 वोट मिले थे, जबकि उनके मुकाबले कांग्रेस के उम्मीदवार कृष्ण प्रताप को 1,65,170 वोट आये. वहां के लोगों को अब भी 1989 का वह चुनाव याद है. वे बताते हैं कि चंद्रशेखर के उम्मीदवार बनने से ही इलाके में वोटरों का उत्साह चरम पर था. चंद्रशेखर की राष्ट्रीय नेता की छवि थी. ऐसे में देश विदेश के पत्रकारों की टोली भी चुनाव कवरेज करने महाराजगंज पहुंची थी. चंद्रशेखर युवा तुर्क के रूप में मशहूर थे. उनकी छवि ने युवाओं को खूब आकर्षित किया था. हालांकि,उनके मुकाबले चुनाव मैदान में खड़े कांग्रेस उम्मीदवार कृष्ण प्रताप भी स्थानीय नेता थे और उनकी छवि भी साफ सुथरी थी. लेकिन, चुनाव परिणाम उनके विपरीत रहा.