महापौर व पार्षदों के बीच आपसी टसल का असर नगर निगम की विकास योजनाओं पर पड़ता दिख रहा है. स्थिति यह है कि नगर निगम का बजट फिलहाल पास होता नजर नहीं आ रहा है. ऐसे में लगभग 407 करोड़ रुपये का बजट फाइलों में पड़ा है. जबतक महापौर और पार्षदों के बीच में आपसी सहमति नहीं बनती तबतक इस पर कोई भी निर्णय होना संभावित नहीं दिख रहा है. अब तो, शहर की जलजमाव वाली तकनीकी स्वीकृति प्राप्त 15 सड़कों के निर्माण पर भी ग्रहण लग गया है.
इन बातों को लेकर है पार्षदों में नाराजगी : पार्षदों की नाराजगी का मूल कारण यह है कि महापौर ने बजट को लेकर उनसे सहमति प्राप्त नहीं की. जैसा की पूर्व उपमेयर रामाकांत सिंह डब्लू का कहना है कि हर वार्ड से जब एक-एक प्रतिनिधि चुनकर आया है और आम लोगों की समस्या का हल करने की जिम्मेदारी उन पर है, तो फिर उनकी भी बात सुनी जानी चाहिए थी. बजट तैयार करने से पहले उनकी राय लेनी चाहिए थी. वार्ड में जो समस्याएं हैं, उनकी फेहरिस्त तैयार करनी चाहिए थी. महापौर कंट्रोल रूम स्थापित हुआ इसमें भी पार्षदों से कोई राय नहीं ली गयी. प्याउ काउंटर खोले गये, लेकिन कहां प्याउ की जरूरत है इसके बारे में भी सुझाव नहीं लिया गया. मनमाने तौर पर काउंटर खोल दिया गया. मसलन खनुआ नाला के पास, करीमचक के पास और कई ऐसे इलाके हैं जिनकी अनदेखी की गयी.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है