मढ़ौरा
. औद्योगिक नगरी के रूप में ख्याति प्राप्त मढ़ौरा को आज भी विकास का इंतजार है. जो लोग भी नवरात्र में यहां दर्शन के लिए पहुंचते हैं. वह गढ़ देवी मंदिर के साथ स्थानीय शिल्हौड़ी मंदिर भी जाते हैं. वहीं यहां के जीर्णशीर्ण पड़े चीनी मिल की दुर्दशा देखकर भी लोगों को मायूसी हाथ लगती है. औद्योगिक नगरी के रूप में चर्चित मढ़ौरा व इसके आसपास के पंचायत में रहने वाले लोग क्षेत्र के विकास को लेकर अभी भी आशान्वित हैं. भले ही मढ़ौरा की मिठास के लिये प्रसिद्ध चीनी मिल और मार्टन के साथ सारण फैक्ट्री बंद हों गयी हैं. लेकिन इसके बावजूद बंद फैक्ट्रियों की कमी को बहुत हद तक रेल इंजन फैक्ट्री ने पूरी कर दी है. मढ़ौरा की धरती ऐतिहासिक व पौराणिक रूप से जिलेवासियों के लिए आस्था, संयम व सामाजिक एकता का परिचायक रही है. शिल्हौड़ी स्थित महादेव मंदिर व गढ़देवी का मंदिर प्राचीन संस्कृति का ध्वजवाहक हैं. ऐसे मंय यदि इस क्षेत्र को पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित किया जाये तो स्थानीय लोगों को रोजगार के तो अवसर मिलेंगे ही.
गढ़देवी मंदिर की प्रासंगिकता आज भी बरकरार : सारण जिले में सांस्कृतिक व ऐतिहासिक दृष्टिकोण से मढ़ौरा अनुमंडल की प्रासंगिकता आज भी कायम है. नवरात्र में यहां के प्राचीन गढ़देवी मंदिर में माता के दर्शन के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं. गढदेवी मंदिर की पौराणिकता अपने आप में मढ़ौरा की विशेषता लिए हुए हैं. इसके विषय में दो कथाएं जनमानस में बरकरार हैं. एक कथा पौराणिक आस्था लिए है. जिसके अनुसार दक्ष प्रजापति द्वारा शिव जी के अपमान से त्रस्त सती ने हवन कुंड में आत्मदाह कर लिया था. तब क्रुद्ध महादेव ने सती के अधजले शव को लेकर क्रोधित हो तांडव किया था. तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन से सती केअंगों को खंडित किया था. जहां-जहां अंग गिरे वहां वहां शक्तिपीठ बने. उस दौरान कुछ खून के छिटे मढ़ौरा में जिस जगह गिरे वहां गढदेवी जी की स्थापना हुई. दूसरी कथा बौध्द मत के अनुसार हैं जिसके अनुसार यह बौद्ध मठ था जो कि कालांतर में बौद्ध धर्म के पतनोपरांत गढदेवी मंदिर के रूप में प्रसिद्ध हो गया.
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