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बैलगाड़ी से तय होता था मतदान केंद्र का सफर, गूंजते थे लोकगीतों के स्वर

परंपराओं में रचा-बसा था लोकतंत्र का यह महापर्व, समय के साथ बदल गया नयी पीढ़ी का अंदाज, पर उत्साह आज भी पहले जैसा

छपरा. लोकतंत्र के महापर्व को पूरे उत्साह के साथ मनाने के लिए सारण जिला इस बार भी तैयार है. वोटिंग प्रतिशत बढ़े इसके लिए जिला प्रशासन लगातार लोगों को जागरूक कर रहा है. सामाजिक संस्थाएं भी मतदाता जागरूकता कार्यक्रम चला रहीं हैं. समय के साथ माहौल भी बदला है. लेकिन वोटरों का उत्साह और अपने मताधिकार का प्रयोग करने का संकल्प आज भी कायम है. शहर से लेकर गांव में दो दशक पहले चुनाव के दिन जो माहौल दिखता था भले ही उसमें थोड़ा बदलाव आया है. लेकिन उस पुराने माहौल की एक झलक आज भी नये वोटरों, खासकर युवाओं को प्रेरित करने में सक्षम हैं. आज भले ही मतदान केंद्रों तक आने वाली बैलगाड़ियों की चाल और उनमें बैठे वोटरों द्वारा गाये जाने वाले पारंपरिक गीतों का स्वर धीमा हो गया हो लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में मतदान के दिन ऐसे दृश्य कहीं न कहीं दिख ही जाते हैं जो निश्चित तौर पर मतदान के महत्व को बढ़ाने का सशक्त जरिया हैं.

बैलों की घंटियां मतदान केंद्र को करती थी गुलजार

अस्सी नब्बे के दशक तक मतदान केंद्र तक जाने का कुछ अलग ही उत्साह होता था. तब बूथों की संख्या भी कम होती थी और घर से मतदान केंद्र दूर होने के कारण आने-जाने में समय भी लगता था. लिहाज घर के मुखिया चुनाव के एक दिन पहले ही शाम में अपनी बैलगाड़ी को ठीक-ठाक कर लेते थे. बांस की कमाची और तिरपाल से बैलगाड़ी को छत दी जाती थी जिससे घर की औरतें आराम से उसमें बैठकर मतदान केंद्र तक पहुंच सकें. घर से आधा या एक किलोमीटर दूर मतदान केंद्र तक जाने के लिये महिलाएं सज-संवर के बैलगाड़ी में बैठती थीं. गांव के कच्चे रास्ते और मतदान केंद्र बैलों की घंटियों से निकल रहे स्वर के साथ गुलजार हो जाते थे. आज भी सारण के कई गांवों में ऐसी झलक देखने को मिल जाती है.

मतदान के दिन ही होती थी नईकी बहुरिया की मुंहदिखाई

घूंघट ओढ़े माहिलाएं मतदान केंद्रों तक पहुंचती थीं. प्रभुनाथ नगर की 75 वर्षीय बुजुर्ग उर्मिला सिंह बताती हैं कि गांव की बुजुर्ग महिला वोट देने के बाद घर वापस लौटते क्रम में ही वोट देने जा रही नयी बहुरानियों की मुंहदिखाई करती थीं. तब शादी के बाद रिसेप्शन का कल्चर हावी नही था. नयी-नवेली दुल्हन को देखने के लिये गांव की सभी औरतें लालायित रहती थीं. वोट देने के बहाने महिलाओं का एक दूसरे से मिलना-जुलना भी हो जाता था और वोट देकर अपने अधिकारों का अहसास भी हो जाता था. ग्रामीण क्षेत्र की माहिलाएं घर से बहुत कम निकलती थीं. मतदान के दिन उन्हें आस-पड़ोस की अन्य महिलाओं के साथ बूथ तक जाने का अवसर मिलता था. इस बीच महिलाएं अपना दुख सुख भी बांटती थीं और जरूरत पड़ने पर एक दूसरे को स्वास्थ्य सम्बंधित घरेलू उपचार भी बताती थीं. चुनाव को लेकर भी माहिलाएं आपस में चर्चा करती थीं.

लोकगीतों को भी मिलता था स्वर

बैलगाड़ी या अन्य साधनों से मतदान केंद्रों तक पहुंचने वाली माहिलायएं आने-जाने के क्रम में अपना मनोरंजन भी अपने तरीके से करती थीं. पारंपरिक लोकगीतों को एक साथ स्वर देती थीं. जो मतदान के दिन अन्य लोगों को भी जागरूक करने का एक माध्यम होता था. सारण जिला के दरियापुर प्रखंड के फतेहपुर चैन की 65 वर्षीया मालती सिन्हा बताती हैं कि जब उनकी शादी हुई थी उस समय घर से बाहर निकलना बहुत कम होता था. शादी के बाद पहली बार गांव की अन्य महिलाओं के साथ बैलगाड़ी में बैठ कर मतदान केंद्र पहुंची. तब गांव की कुछ बुजुर्ग माहिलायएं लोकगीत गाते हुए मतदान केंद्र तक पहुंची थी.

क्या कहते हैं लोग

पहले गांव की महिलाएं बैलगाड़ी पर बैठकर वोट देने जाती थी. आज बहुत कुछ बदल गया है. हालांकि मतदान के दिन बूथ तक जाने का उत्साह आज भी बरकरार है. आज संसाधन और सुविधाएं बढ़ी हैं. ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को अपने मताधिकार का प्रयोग करना चाहिये. :- मालती सिन्हा

अस्सी के दशक में गांव का चंवर पार कर वोट देने जाना पड़ता था. आज मतदान केंद्र काफी नजदीक है. तब लोकगीतों के साथ मतदान केंद्र तक पहुंचने का अलग ही उत्साह रहता था. नयी दुल्हनों की तो उस दिन मुंहदिखाई भी हो जाती थी. आज भी मतदान का वही उत्साह है. :-शारदा सहाय

यह हमारा सौभाग्य है कि हमें हमारे नेतृत्वकर्ता को चुनने की आजादी है. जनता से अपील है कि वह अपने विवेक से अपना बहुमूल्य वोट देकर निष्पक्ष रूप से अपने मनपसंद एक ऐसे नेतृत्वकर्ता का चुनाव करें. :- डॉ कुमारी मनीषा, असिस्टेंट प्रोफेसर, जगलाल चौधरी महाविद्यालय, छपरा

लोकतंत्र के इस महापर्व में अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए मैं अभी से उत्साहित हूं. जब हम छोटे थे तब गांव के लोगों को एकजुट होकर बूथ तक वोट देने जाते देखे थे. अब हमें भी यह अवसर मिल रहा है. इस बात का गर्व है. सबको अपने मताधिकार का प्रयोग जरूर करना चाहिए. :- मनीष कुमार श्रीवास्तव

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