Chhapra News : कार्तिक पूर्णिमा पर 15 लाख से अधिक श्रद्धालु करेंगे स्नान

Chhapra News : विश्व प्रसिद्ध हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला के रूप में जाना जाता है. लेकिन इस मेले का धार्मिक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी काफी गौरवशाली है. इस मेले में कार्तिक पूर्णमा के अवसर पर गंगा व गंडक में पवित्र स्नान करने के लिए लगभग 15 से 16 लाख श्रद्धालुओं के पहुंचने का अनुमान है.

By Prabhat Khabar News Desk | November 10, 2024 9:18 PM
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सोनपुर.

विश्व प्रसिद्ध हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला के रूप में जाना जाता है. लेकिन इस मेले का धार्मिक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी काफी गौरवशाली है. इस मेले में कार्तिक पूर्णमा के अवसर पर गंगा व गंडक में पवित्र स्नान करने के लिए लगभग 15 से 16 लाख श्रद्धालुओं के पहुंचने का अनुमान है. यह मेला 13 नवंबर से सरकारी स्तर पर शुरू होकर 14 दिसंबर तक रहेगा, जो कि 32 दिनों तक चलने वाला है. इस मेले में देश के विभिन्न प्रदेशों के साथ-साथ विदेशी श्रद्धालु भी अधिक संख्या मे आते है. स्थानीय कुछ लोगों का अनुमान है कि इस वर्ष करीब 50 लाख से अधिक लोग इस मेले में भाग लेंगे. शासन प्रशासन ने इस धार्मिक आध्यात्मिक और ऐतिहासिक आयोजन के लिए आवश्यक तैयारियां पहले से ही शुरू कर दी है. जिसे अंतिम रूप दिया जा रहा है. श्रद्धालुओं के स्नान के लिए घाट पर साफ-सफाई और लाइट की व्यवस्था के साथ-साथ अस्थायी शौचालय और चेंजिंग रूम की भी व्यवस्था की जा रही है. लेकिन यह भीड़ के हिसाब से कम है. मेले मे साधु-संत के लिए अलग से कोई व्यवस्था नहीं की जाती है. मेला आने वालो में बड़ी संख्या मे श्रद्धालु गंगा और गंडक में स्नान कर विधि-विधान के साथ बाबा हरिहरनाथ मंदिर मे पूजा अर्चना और जलाभिषेक करते है. इसके अलावे श्रद्धालु महावीर मंदिर, राधा-कृष्ण मंदिर, लोक सेवा आश्रम परिसर स्थित सूर्य मंदिर और शनिदेव मंदिर, गौरी शंकर मंदिर, गजेन्द्र मोक्ष देवस्थानम दिव्य देश सहित कई अन्य मंदिर में भी पूजा अर्चना करते है. हरिहरनाथ मंदिर के मुख्य अर्चक आचार्य सुशील चंद्र शास्त्री एवं पंडित पवन जी शास्त्री कहते है कि ऐसी मान्यता है कि कार्तिक माह मे गंगा गंडक में स्नान करने से के पाप धुलने और मोक्ष प्राप्ति होता है. यह मेला धार्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण को स्पष्ट करती है और दिखाती है कि हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला सिर्फ एक पशु मेला और धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि एक सामाजिक और सांस्कृतिक परंपरा भी है. यह मेला भारतीय संस्कृति और धार्मिकता का एक अभिन्न हिस्सा है, जो न केवल देश के भीतर, बल्कि विदेशों में भी अपने आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है.

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