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Chhapra News : दीपावली की तैयारियां जोरों पर, दीये बनाने में जुटे कुम्हार

Chhapra News : ग्रामीण और शहरी बाजारों में मां लक्ष्मी और गणेश की मूर्तियों के साथ मिट्टी से बनी अन्य वस्तुएं भी दुकानों में सजने लगी हैं. शिल्पकार इस मौके पर अपने हुनर का प्रदर्शन कर रहे हैं, ताकि दीयों और मिट्टी के बर्तनों की अच्छी बिक्री हो सके.

परसा. दीपों का त्योहार दीपावली आने ही वाला है और पूरे क्षेत्र में उल्लास का माहौल है. इस पर्व के साथ घरों और प्रतिष्ठानों में सफाई और सजावट का काम तेजी से हो रहा है. शहरों से लेकर गांवों तक लोग दीपावली की तैयारी में जुटे हुए हैं. हर साल की तरह इस बार भी मिट्टी के दीयों, बर्तनों और अन्य पारंपरिक वस्तुओं का महत्व बढ़ गया है. ग्रामीण और शहरी बाजारों में मां लक्ष्मी और गणेश की मूर्तियों के साथ मिट्टी से बनी अन्य वस्तुएं भी दुकानों में सजने लगी हैं. शिल्पकार इस मौके पर अपने हुनर का प्रदर्शन कर रहे हैं, ताकि दीयों और मिट्टी के बर्तनों की अच्छी बिक्री हो सके.

त्योहारों पर ही इस व्यवसाय में आती है जान

नगर के परसा शंकरडीह निवासी 30 वर्षों से शिल्पकारी में लगे रामबहादुर पंडित ने बताया कि त्योहारों पर ही इस व्यवसाय में जान आती है. वे कहते हैं, “दीपावली और छठ के समय मिट्टी के दीयों और बर्तनों की मांग बढ़ जाती है. इसी समय चाक की रफ्तार तेज़ होती है, और मेहनत से तैयार मिट्टी के दीयों से इलाके जगमगाने लगते हैं. वहीं नगर के शोभेपरसा निवासी अखलेश पंडित ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों में लोगों की प्राथमिकताएं बदल गयी हैं. पहले जहां घरों में मिट्टी के दीये और बर्तन अनिवार्य रूप से इस्तेमाल होते थे, अब उनकी जगह मोमबत्तियों, चाइनीज बल्बों और इलेक्ट्रिक लाइटों ने ले ली है. इससे शिल्पकारों की आय पर असर पड़ा है और उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर हुई है. शिल्पकारों का कहना है कि मिट्टी का काम मेहनत और समय लेने वाला है. मिट्टी को नदी-तालाबों से लाना, उसे तैयार करना, भट्टी में पकाना और फिर उस पर रंग-रोगन करना यह सब कठिन श्रम से भरा है. पहले साल भर मिट्टी के बर्तन बनाने का काम चलता था, लेकिन अब यह काम केवल त्योहारों तक सिमटकर रह गया है.

दिवाली से बढ़ी बिक्री की उम्मीदें

सदियों से चली आ रही मिट्टी के बर्तनों की परंपरा भले ही कम हो रही हो, लेकिन कुछ विशेष अवसरों पर इनकी मांग बनी रहती है. दीपावली, छठ, और गोवर्धन पूजा जैसे त्योहारों पर लोग पारंपरिक मिट्टी के दीये, कुल्हड़, और चाय की प्यालियों का उपयोग करते हैं, जिससे शिल्पकारों को थोड़ी राहत मिलती है. जैसे-जैसे दीपावली नजदीक आ रही है, बाजारों में भी चहल-पहल बढ़ती जा रही है. लोग घरों और दुकानों की सफाई, रंग-रोगन और सजावट में व्यस्त हैं. दीपावली के इस महापर्व को मनाने के लिए मिट्टी के दीयों और अन्य वस्तुओं की दुकानें सजने लगी हैं. शहर और गांव की गलियों में रौनक लौट रही है, और दीपों के प्रकाश से जगमगाते घरों की कल्पना ने लोगों में उत्साह भर दिया है. दीपावली केवल रोशनी का पर्व नहीं, बल्कि पारंपरिक कला और संस्कृति को पुनर्जीवित करने का भी अवसर है. ऐसे में उम्मीद है कि इस साल भी मिट्टी के दीयों की रौशनी हर आंगन को जगमगा देगी और शिल्पकारों के चेहरे पर मुस्कान लायेगी.

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