सोनपुर. सोनपुर मेले में चल रहे सांस्कृतिक संगम रामायण मंचन के पांचवें दिन की शुरुआत शूर्पणखा के नाक काटे जाने के प्रसंग के साथ हुई. इस संवाद के द्वारा बताया गया कि नारी स्वतंत्र होनी चाहिए स्वच्छंद नहीं. स्त्री हो चाहे पुरुष स्वच्छंदता उसके अनुशासनहीनता को दर्शाता है और यही अनुशासनहीनता एक दिन उसके अपमान का कारण बनता है. संयम और अनुशासन समाज परिवार व स्वयं के व्यक्तित्व को एक ऊंचाई प्रदान करता है. इसी कड़ी में शूर्पणखा के अभिमान को पोषित करने वाले अभिमानी खर-दुषण अन्ततः राम के हाथों मारे जाते हैं. शूर्पणखा अपने बड़े भाई रावण से राम के प्रति अपने अशोभनीय हरकतें और अश्लील संवादों को ना बता कर बल्कि झूठा आरोप लगाते हुए राम के द्वारा खुद पर किये गये अत्याचार को बढ़ा चढ़ा कर बताती है. मद में चूर रावण अपने विवेक से काम न लेकर अपने अहंकार में चूर और क्रोधित होकर राम को अपना शत्रु मान बैठता है. संसार में कोई भी व्यक्ति जब अभिमानी होकर मद में चूर हो जाता तो सबसे पहले उसका विवेक मर जाता है. मंच पर कलाकारों ने कहा कि रामधारी सिंह दिनकर जी ने रश्मिरथी में लिखा है कि जब नाश मनुज पर आता है, तो पहले विवेक मर जाता है और यही स्थिति रावण की भी होती है. उसके सारे ज्ञान विद्या समझ उसका साथ छोड़ देते हैं. भगवान शिव का परम भक्त रावण शिव के अराध्य श्री राम से शत्रुता कर बैठता है और अंततः अपने पतन का मार्ग स्वयं ढूंढ लेता है. शुक्रवार को मंच पर इन्हीं सारे प्रसंगों में रावण मारीच संवाद, सीता हरण, राम जटायु संवाद और अंत में भक्ति की पराकाष्ठा नवधा भक्ति स्वरुपा शबरी राम को अपनी कुटिया तक खींच लाती है. राम का दर्शन कर स्वयं का जीवन धन्य कर लेती है.
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