Saran News : सोनपुर मेले में पांचवें दिन भी शुरू नहीं हो सका थियेटर
Saran News : सोनपुर मेला उद्घाटन के पांचवें दिन भी मेला प्रशासन द्वारा यहां लगे थियेटरों को लाइसेंस नहीं दिये जाने से थियेटर संचालकों को अब तक लाखों रुपये का नुकसान हो चुका है. इससे थियेटर संचालकों में भारी निराशा है.
सोनपुर. हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला उद्घाटन के पांचवें दिन भी मेला प्रशासन द्वारा यहां लगे थियेटरों को लाइसेंस नहीं दिये जाने से थियेटर संचालकों को अब तक लाखों रुपये का नुकसान हो चुका है. करोड़ों रुपये में सोनपुर मेले की बंदोबस्ती और ठेकेदारों से ऊंची कीमत पर थियेटर लगाने के लिए जमीन प्राप्त करने वाले थियेटर संचालकों में भारी निराशा है जिसके कारण प्रशासन को नाराजगी का सामना करना पर सकता है. थियेटर देखने की चाहत में राज्य के दूर-दराज से मेला आनेवाले लोगों में भारी निराशा है और वे मायूस होकर लौट रहे हैं. बिहार की राजधानी पटना से करीब 25 किमी और हाजीपुर से तीन किमी की दूरी पर सोनपुर में गंगा, नारायणी एवं मही नदियों के तट पर लगने वाले इस मेले में मनोरंजन की चाह रखने वाले दर्शकों की वजह से भी मेले में रौनक रहता है. सारण जिला या मेला प्रशासन की सबसे बड़ा खामी यह है कि मेला शुभारंभ से पूर्व ही थियेटर संचालकों की मीटिंग बुलाकर तय नहीं कर पाता कि थियेटरों को लाइसेंस किस तिथि से देंगे. अगर ऐसा कर लिया जाता तो थियेटर संचालक अपनी व्यवस्था उसी तरह करते. कलाकारों को बुलाकर उस पर प्रतिदिन होने वाले लाखों रुपए के खर्च से भी थियेटर संचालक बच सकते थे. स्थानीय लोगो का कहना है कि सरकारी महकमे ने सोनपुर मेले के स्थानीय लोगों को बदनाम करने और मेले को बर्बाद करने के लिए ठान लिया है. प्रशासन की इस तरह की अदूरदर्शी कारवाइयों से स्वयं मेला के लिए किए जा रहे उसके प्रयासों को भी धक्का लगता है. ऐसा नहीं कि सारण जिला प्रशासन की सोच मेले के विकास के प्रति निगेटिव है. जिलाधिकारी स्वयं सक्रिय है. बावजूद गड़बड़ी हो रही है, तो इसका मतलब है कि आपसी समन्वय का अभाव है और विगत के अनुभवों से सीख नहीं लिया गया है. जो भी हो इस समय मेले में लाइसेंस नहीं मिलने से आधा दर्जन थियेटर अपने आर्थिक अस्तित्व पर आए संकट से जूझ रहे हैं. प्रशासन को तब ख्याल क्यों नहीं आता, जब थियेटर वाले अपना साजों-समान और तामझाम सोनपुर मेले में लगा रहे थे. पहले भी थियेटरों के साथ ऐसा हो चुका है जब उन्हें समय पर लाइसेंस निर्गत नहीं किया गया. तब प्रशासन को मेला में आए दुकानदारों और व्यवसायियों का भी कोपभाजन बनना पड़ा था. दुकानें बंद हुई थीं. एक दिन की हड़ताल हुई और पूरे भारतवर्ष के प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक चैनलों ने इसे प्रसारित कर देश और दुनिया की खबर बना दिया था. इस वर्ष मेला परिसर में लगे थियेटरों की बात करें तो गाय और हाथी बाजार में एक-एक थियेटर लगे हैं. नखास एरिया में तीन थियेटर और बच्चा बाबू के हाता में एक थियेटर का शामियाना और तंबू तन कर खड़ा है, पर सभी का स्टेज उदासीन है. दर्शक एक नजर थियेटरों पर नजर डालते हैं उदासीन होकर लौट जाते हैं और दूसरी तरफ थियेटर संचालक अभी भी लाइसेंस मिलने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. देश के विभिन्न राज्यों से लगभग 1000 महिला और पुरुष कलाकारों का समागम हुआ है. एक थियेटर निर्माण की लागत लगभग 25 से 35 लाख रुपये हैं. एक थियेटर से लगभग 1000 से अधिक व्यक्तियों के आजीविका का साधन है. इस बार आये थियेटरों शोभा सम्राट थियेटर, इंडिया थियेटर आदि पर नजर डालते हैं, तो सभी जगह एक ही नजारा नजर आता है और माहौल उदासी का है. व्यावसायिक दृष्टि से देखें तो इन थियेटरों की वजह से देर रात तक थियेटर एरिया की सड़कें गुलजार रहता था. इस एरिया में कश्मीर सहित देश के विभिन्न भागों से आये गर्म कपड़ों के व्यवसायियों की दुकानें भी हैं और उनकी जबर्दस्त बिक्री होती है.
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