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ईदगाहों व मस्जिदों में झुके हजारों शीष, मांगी अमन-चैन की दुआ

जिले भर में शनिवार को उत्साह के साथ ईद मनाया गया. ईद-उल-फितर के मौके पर शहर और गांव के ईदगाहों और मस्जिदों में हजारों लोगों ने नमाज पढ़ी और एक-दूसरे को मुबारकबाद दी. सुबह होते ही ईद की नमाज की तैयारियां शुरू हो गयीं. लोग इत्र में गमकते नये कपड़ों में लक-दक होकर नमाज पढ़ने पहुंचे. ईद को लेकर लोगों का उत्साह चरम पर रहा. गुरुवार को चांद का दीदार नहीं होने पर लोगों ने सोशल मीडिया पर बधाइयों का सिलसिला शुरू कर दिया था. सामाजिक कार्यकर्ता और राजनीतिक शख्सियतों ने भी जहां लोगों को बधाई दी.

छपरा. जिले भर में शनिवार को उत्साह के साथ ईद मनाया गया. ईद-उल-फितर के मौके पर शहर और गांव के ईदगाहों और मस्जिदों में हजारों लोगों ने नमाज पढ़ी और एक-दूसरे को मुबारकबाद दी. सुबह होते ही ईद की नमाज की तैयारियां शुरू हो गयीं. लोग इत्र में गमकते नये कपड़ों में लक-दक होकर नमाज पढ़ने पहुंचे. ईद को लेकर लोगों का उत्साह चरम पर रहा. गुरुवार को चांद का दीदार नहीं होने पर लोगों ने सोशल मीडिया पर बधाइयों का सिलसिला शुरू कर दिया था. सामाजिक कार्यकर्ता और राजनीतिक शख्सियतों ने भी जहां लोगों को बधाई दी. वहीं, हिंदू भाइयों ने भी अपने मुसलमान इष्ट मित्रों को मुबारकबाद पेश कर गंगा-जमुनी तहजीब को मजबूती प्रदान की और समाज में भाईचारा और आपसी समझ बढ़ने की कामना की. रोजेदारों के एक माह के उपवास और इबादत के बाद पवित्र रजमान महीने का समापन उत्सव मनाने का अवसर है. मौके पर कामना की गयी कि हमारे समाज में भाईचारा और आपसी समझ बढ़े. रमजान में रोजेदार पूरे महीने अल्लाह की इबादत करने के साथ पूरी तरह से संयम बरते हुए रोजे रखते हैं. आखिर रोजे के बाद चांद के दीदार होने के साथ रोजे रखने की ताकत देने के लिए इस दिन अल्लाह का शुक्र अदा करते हैं. ईद की नमाज उसी शुक्राने के लिए होती है. ईद का अर्थ है खुशी और फितर को अरबी भाषा में फितरा कहा जाता है, जिसका मतलब दान होता है. दान या जकात किये बिना ईद की नमाज नहीं होती. कहते हैं कि ईद की नमाज से पहले जरूरतमंद लोगों को दान दिया जाता है. लिहाजा मस्जिदों और ईदगाहों के बाहर लोगों ने दान-पुण्य भी किया. मस्जिदों में मुसलमान फितरा यानी की जान व माल का सदका करते हैं. सदका अल्लाह ने गरीबों के इमदाद का एक तरीका दिया है. गरीब आदमी भी इस दिन साफ कपड़े पहनकर सबके साथ मिलकर नमाज पढ़ते हैं. ईद पर जहां लोगों ने घूम-घूम कर और एक-दूसरे के घर जा कर ईद की मुबारकबाद और बधाइयां दीं, वहीं सेवाइयां खाते-खिलाते रहे. दावतों का दौर चलता रहा. वहीं सोशल मीडिया का भी जम कर इस्तेमाल हुआ. व्हाट्सएप, फेसबूक, ट्विटर और मैसेंजर पर भी लोग पर्सनल और ग्रुप में बाधाइयां, शेर, फोटो, टेमप्लेटस आदि पोस्ट करते रहे. इसमें बच्चे, टीन एजर्स के साथ ही बड़े-बुजुर्ग भी शामिल रहे. काजी-ए-शहर मुफ्ती वलीउल्लाह कादरी ने अपने संदेश में कहा कि इस्लाम देश प्रेम की सीख देता है. लोकतंत्र का महापर्व यानी लोकसभा चुनाव होने वाला है. मुसलमानों को इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना चाहिए, ताकि हमारे देश का लोकतंत्र और विकसित करे. पूरी दुनिया हमारे लोकतंत्र को आशा भरी नजरों से देखती है. उन्होंने कहा कि ईद केवल नये कपड़े पहनने का नाम नहीं है. बल्कि मजबूरों और पड़ोसी की मदद करने का नाम है. हम एक नजर अपने पड़ोसी पर डालें. यदि पड़ोसी खुश हैं, तो यह हमारे लिए ईद है. अन्यथा वईद है. आज का दिन प्रण करने का है कि हम अल्लाह के हर जीव को खुश रखेंगे. इंसानों और जानवरों को दुख पहुंचाने से बचेंगे.

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