एनडीए व महागठबंधन के उम्मीदवार कोर वोटरों के बिखराव को रोकने में परेशान
चार महागठबंधन तथा दो एनडीए एमएलए वाले इस संसदीय क्षेत्र में जोड़-तोड़ की रणनीति चरम पर
छपरा (सदर). सारण व सीवान जिले के छह विधानसभा क्षेत्रों को मिलाकर उत्तर प्रदेश की सीमा से सटे महाराजगंज संसदीय क्षेत्र में इस बार एनडीए तथा महागठबंधन को अपने-अपने कोर वोटर के बिखराव को रोकना चुनौती साबित हो रहा है. कृषि एवं कृषि आधारित उद्योगों से जुड़े वोटरों वाले इस संसदीय क्षेत्र में मतदाता गठबंधन से ज्यादा जातिधर्म को निभाने की मुद्रा में है. वहीं दोनों गठबंधनों के अधिकतर विधायक या अन्य मुख्य कार्यकर्ताओं की कथनी व करनी में धरातल पर अंतर को मतदाता भी भापकर अपने-अपने चहेते उम्मीदवार को जिताने के लिए गोलबंद दिख रहे है. अबजब मतदान में चार दिन शेष रह गये है. इस संसदीय क्षेत्र में पहली बार भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कार्य क्रम 21 मई को हो रहा है. उधर महागठबंधन के भी बड़े नेताओं का कार्यक्रम अगले दो तीन दिनों में निर्धारित है. ऐसी स्थिति में देखना है कि एनडीए के उम्मीदवार जनार्दन सिंह सीग्रीवाल लगातार तीसरी जीत दर्ज कराने में या पहली बार महागठबंधन समर्थित कांग्रेसी उम्मीदवार आकाश सिंह अपनी जीत का खाता खोलने में सफल हो पाते है.
जोड़-तोड़ को अंतिम अंजाम तक पहुंचा अपनी जीत सुनिश्चित करने में लगे
छह विधानसभा क्षेत्र वाले इस महाराजगंज संसदीय क्षेत्र में 19 लाख वोटर है. वहीं छह विधानसभा क्षेत्रों में से चार विधानसभा में महागठबंधन के विधायक है. जबकि दो विधानसभ क्षेत्र में एनडीए के विधायक है. निर्वाचन के अधिकृत सूचना के अनुसार बनियापुर, एकमा में राजद, मांझी में सीपीएम तथा महाराजगंज में कांग्रेस के एमएलए है. जबकि तरैया तथा गोरेया कोठी विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के एमएलए है. परंतु, पूरे क्षेत्र में देखे तो कुछ विधायक अपने गठबंधन के उम्मीदवारों को जीताने के प्रति निष्क्रिय है. वहीं कुछ एमएलए अपने गठबंधन के उम्मीदवार को हराने के लिए अंदर ही अंदर रणनीति बना रहे है. जिससे दोनों गठबंधनों के उम्मीदवारों की परेशानी बढ़ी है.महाराजगंज के मतदाताओं पर पूर्व में भी गठबंधन पर हावी रही है जातीय गोलबंदी
महाराजगंज संसदीय क्षेत्र में मतदाताओं में पूर्व से ही जातीय गोलबंदी देखने को मिलती रही है. तभी तो मतदाता किसी पार्टी या गठबंधन के अपने विरादरी के उम्मीदवारों के आने पर उन्हें अपनी पार्टी व गठबंधन के मानदंडों को नजरअंदाज कर समर्थन में लग जाते है. पूर्व में महाराजगंज संसदीय क्षेत्र के बाहर से आकर चुनाव लड़ने वाले भारत के प्रधानमंत्री चंद्रशेखर को मतदाताओं ने 1989 में तो महाराजगंज संसदीय क्षेत्र से बाहर से आने वाले सीवान के दरौली प्रखंड के निवासी कृष्ण प्रताप सिंह को 80 तथा 84, गोरेया कोठी के निवासी व महाराजगंज संसदीय क्षेत्र के बाहर के निवास करने वाले बिहार सरकार के पूर्व शिक्षा मंत्री कृष्णकांत सिंह को 62 में, 72 से 77 तक सीवान के रघुनाथपुर थाना क्षेत्र के निवासी रामदेव सिंह के अलावें जीरादेइ के देशरत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद के पुत्र मृत्युंजय प्रसाद को विजयश्री देकर लोकसभा में भेजा था. 2013 से पूर्व इस लोकसभा क्षेत्र में दो बार सांसद रह चुके प्रभुनाथ सिंह ने एनडीए छोड़कर राजद की सदस्यता ली थी तथा राजद के उम्मीदवार के रूप में 2013 में लोकसभा का चुनाव लड़ा. उनके विरोध में एनडीए के उम्मीदवार व बिहार सरकार के शिक्षा मंत्री पीके शाही चुनाव लड़े थे तो एनडीए की सरकार में मतदाताओं ने श्री शाही को नजरअंदाज कर जातीय गोलबंदी के आधार पर प्रभुनाथ सिंह को विजयी श्री दिलायी थी. इस बार भी इस क्षेत्र में आकाश सिंह के आने के बाद उनके स्वजातीय मतदाताओं के बीच हुई गोलबंदी एनडीए उम्मीदवार के लिए परेशानी का कारण बन रही है. हालांकि एनडीए के नेता इस गोलबंदी को तोड़कर अपने गठबंधन के उम्मीदवार को जीताने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे है. मतदाताओं ने इस बार भी पांच उम्मीदवारों वाले इस संसदीय क्षेत्र में एनडीए के जनार्दन सिंह सीग्रीवाल तथा दूसरे जिले के निवासी होने के बावजूद कांग्रेस उम्मीदवार आकाश कुमार सिंह ने सीधी लड़ाई में कड़ी टक्कर दे रहे है. अब देखना है कि महाराजगंज संसदीय क्षेत्र का परिणाम किसके पक्ष में जाता है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है