सारण जिले के दरियापुर के 75 वर्षीय सेवानिवृत्त शिक्षक मोहन राय (बदला हुआ नाम) छह माह पहले एक दुर्घटना के शिकार हो गये थे. इसमें उनके पैर का तलवा क्षतिग्रस्त हो गया था. इस हादसे के बाद उनकी जिंदगी मुश्किलों से भर गयी और स्थिति दिव्यांगता की ओर मुड़ गयी. कई जगह उन्होंने इलाज की कोशिश की. मगर, चिकित्सकों ने बताया कि तलवे की चमड़ी शरीर की किसी चमड़ी से मैच नहीं करती. इसलिए उसका प्रत्यारोप नहीं हो सकता. मगर, पटना के प्लास्टिक सर्जन डॉ एसए वारसी की कुशलता और माइक्रो सर्जरी तकनीक ने उन्हें एक नया जीवनदान दे दिया. अब वह सामान्य आदमी की तरह चलते हैं. जानकारी के मुताबिक उनके बेटे आशीष राय ने प्लास्टिक सर्जन डॉ वारसी को पिता की समस्या से अवगत कराया. उन्होंने अपनी यूनिट में श्री राय को एडमिट कर प्रयास शुरू किया. इस दौरान श्री राय को चार सर्जरी सेशन से गुजरना पड़ा. दो बार सफाई के लिए, एक बार मांस लगाने के लिए और आखिरी बार पतला त्वचा प्रत्यारोप के लिए. तलवा को बनाने के लिए मांस पीठ से लिया गया. महत्वपूर्ण बात यह है कि मांस लगाने के लिए माइक्रो सर्जरी विधि का इस्तेमाल किया गया, जो दुनिया की सर्वोत्तम विधि है. यह विधि विशेष रूप से इस तरह के मरीजों के लिए महत्वपूर्ण है. क्योंकि, अन्य तरीकों से मांस ठीक से नहीं लग पाता और मरीज जीवन भर किसी-न-किसी तरह से परेशान रहते हैं. मोहन लगभग 15 दिन अस्पताल में भर्ती रहे और तीन माह बाद वह बिना किसी सहारे के चलने लगे. आज वह पूरी तरह से स्वस्थ हैं और अपना सारा काम आराम से कर रहे हैं. इस संबंध में डॉ वारसी ने बताया कि मोहन राय का मामला माइक्रो सर्जरी तकनीक की सफलता का एक जीवंत उदाहरण है. यह तकनीक जटिल चोटों और विकृतियों के इलाज में अत्यधिक प्रभावी है, जो पहले असंभव मानी जाती थी. मोहन राय के मामले में तय कर पाना मुश्किल था कि कहां का मांस और चमड़ा लिया जाये जो तलवा की तरह काम करे. इस पर उन्होंने देश-विदेश के विशेषज्ञ सर्जन से राय ली, मगर ठोस नतीजा नहीं निकला. तब उन्होंने पीठ से त्वचा लेने का फैसला किया और वे सफल रहे. उन्होंने कहा कि माइक्रो सर्जरी ने मोहन जैसे कई लोगों को नया जीवन दिया है और उन्हें दर्द और परेशानी से मुक्ति दिलायी है. यह खबर उन लोगों के लिए एक प्रेरणा है, जो गंभीर चोटों से जूझ रहे हैं. माइक्रो सर्जरी जैसी तकनीक उन्हें उम्मीद देती है कि वे भी एक स्वस्थ और सक्रिय जीवन जी सकते हैं.
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