दीपावली के लिए गोबर से दीया तैयार कर रही सरपंच, मिट्टी के मुकाबले कम तेल सोखता है ये दीया
इस दीपावली घरों में मिट्टी के नहीं, बल्कि गोबर से बने दीये जगमगाएंगे. पर्यावरण संरक्षण और महिला समूहों को रोजगार मुहैया कराने के उद्देश्य से बिहटा के पैनाल पंचायत की सरपंच बबिता देवी के नेतृत्व में दर्जनों महिलाएं गोबर के दीये बना रही हैं.
बैजू कुमार, बिहटा. इस दीपावली घरों में मिट्टी के नहीं, बल्कि गोबर से बने दीये जगमगाएंगे. पर्यावरण संरक्षण और महिला समूहों को रोजगार मुहैया कराने के उद्देश्य से बिहटा के पैनाल पंचायत की सरपंच बबिता देवी के नेतृत्व में दर्जनों महिलाएं गोबर के दीये बना रही हैं.
आर्थिक रूप से कमजोर महिलाएं अपने हुनर से सबको चकित कर रही हैं. दीये के अलावा लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां भी ये महिलाएं तैयार कर रही हैं. गोबर के दीये के संबंध में सरपंच बबिता देवी कहती है कि दीपावली के बाद इन दीयों का उपयोग खाद के रूप में किया जा सकेगा. इससे धरती से पर्यावरण स्वच्छ बनाने वाली सुगंध उठेगी.
उन्होंने कहा कि सनातन धर्मियों के लिए गाय के गोबर से बने दीये काफी शुभ होता है. उन्होंने कहा कि गोबर का एक दीपक सात दिन में तैयार होता है. मूर्ति बनाने में सिर्फ देसी गाय के गोबर एवं गोवाम्बगर पाउडर या लकड़ी के पाउडर का ही इस्तेमाल किया जाता है.
बबिता देवी ने कहा कि सूखने के बाद गोबर को मशीन में पीसा जाता है. इसके बाद छानकर उसे ग्वार, गम और पानी मिलाकर आटे की तरह गूंथा जाता है. इसके बाद उसे सांचे में देकर दीये और मूर्तियां बनायी जाती हैं. यह दीया तेल भी नहीं सोखता है.
इस दीये को जलाने से तेल की बचत भी होगी. गोबर से निर्मित दीया ऊंचाई से गिरने के बावजूद नहीं टूटेगा. उन्होंने कहा कि प्रतिदिन दो दर्जन महिलाएं 5000 हजार दीपक बना रही हैं. इन प्रत्येक महिला को प्रतिदिन चार से पांच सौ रुपए मिल रहे हैं.
महिला सरपंच बबिता देवी ने बताया कि दो साल पूर्व नागपुर से दस दिनों के परीक्षण लेने के बाद अपने गाँव लौटकर इसे बनाने की शुरुआत की थी. अबतक इस टोली में तीन समूहों में 75 लोगों की टीम बन चुकी है.
समूह में शामिल गुड़िया कुमारी, रीता देवी, कुसुम देवी, सुषमा कुमारी, संगीता कुमारी सहित अन्य लोगों ने बताया कि आज से दो साल पूर्व हम लोगों के पास कोई रोजगार नहीं था, लेकिन गांव की नयी सरपंच महिला बनने के बाद हम लोगों को घर पर बैठे रोजगार मिला है. जिसे पुरुषों से तुलना अब हम लोग भी कर सकते हैं.
घर पर बैठकर ही प्रतिदिन 400 के आसपास दिए को बना लेते हैं. जिसकी मजदूरी के रूप में 400 से 500 भी मिल जाते है. सरकार से मांग करते हुए कहा कि हम लोगों को बाहर से मटेरियल लाने पर अधिक खर्चा पड़ता है. अगर अपने राज्य में ही कच्चा माल मिल जाय तो लागत में कमी आयेगी.
Posted by Ashish Jha