सर्वोदय नगर : 5 बहेलियों के परिवार ने श्मशान में बसा दी हरियाली, टिकारी महाराज की पत्नी ने दान में दी थी जमीन
टिकारी महराज की पत्नी द्वारा कभी दान में दी गई 80 एकड़ जमीन बंजर हुआ करती थी. लेकिन यहां पांच बहेलियों के परिवार की मेहनत से आज 400 परिवार का गांव बस चुका है.
रंजन सिन्हा, परैया
गया जिला के मझियावां पंचायत का सर्वोदय नगर गांव, जिसकी 80 एकड़ जमीन 60 के दशक में बंजर बालू का टीला थी. इसका प्रयोग उस समय लाश जलाने के लिए श्मशान के रूप में किया जाता था. इस पर कंटीली झाड़ियां उगती थीं. उस जमीन पर बहेलियों के अथक परिश्रम से आज हरे-भरे विभिन्न प्रकार के फलदार पेड़ पौधे लहलहा रहे हैं. यह जमीन का टुकड़ा वर्तमान समय में उपजाऊ जमीन में तब्दील हो चुका है. यह पांच बहेलियों के परिवार के अथक मेहनत का परिणाम है.
शुरुआत में बहेलियों ने इस जमीन पर बगीचा लगाने का सोचा. पौधों का जुगाड़ हो गया था, लेकिन सबसे बड़ी बाधा सिंचाई के लिए पानी की समस्या थी. आसपास कोई भूमिगत पानी का स्रोत नहीं था. तो बगल में बहने वाली मोरहर नदी से मिट्टी के घड़ों में पानी लेकर चार-पांच पौधों को लगाकर सींचना शुरू किया. यह छोटी सी पहल आज स्थायी हरियाली में बदल चुकी है. आज यह बगीचा 35 परिवारों के 400 बहेलियों की पहचान बन गया, जो इनके परिवार की आजीविका का मुख्य स्रोत है. पहले ये बहेलिए घुमंतू थे, लेकिन, आज ये स्थापित गृहस्थ बन गये हैं.
टिकारी महाराज की पत्नी ने बिनोवा भावे को दान में दी थी 80 एकड़ जमीन
टिकारी के महाराजा गोपाल शरण जी की पत्नी रानी भुनेश्वरी कुंवर ने भूदान आंदोलन के दौरान 1950 में बिनोवा भावे को इस 80 एकड़ जमीन को दान में दिया था. बिनोवा भावे के सहयोगी मंझार गांव निवासी लाला भाई को दान में मिली जमीन को गरीब परिवारों के बीच वितरण करने की जवाबदेही दी गयी थी. लेकिन, बालू के बड़े-बड़े टीले, झाड़ियां व श्मशान घाट होने के कारण कोई भी परिवार इस जमीन पर रहना नहीं चाहता था.
यह तो बहेलियों के परिवार का जज्बा था, जो अथक परिश्रम से बंजर रेतीली जमीन को संवारा जिसका परिणाम है कि आज यह हरी भरी जमीन 400 लोगों का गांव बन गयी. बिनोवा भावे की इस जमीन पर बसे क्षेत्र का नाम सर्वोदय नगर रखा गया है. बंजर जमीन पर बागवानी का कार्य काफी चुनौती भरा था.
नदी से पानी लाकर करते सिंचाई
बहेलियों के परिवार की माली हालत इतनी खराब थी कि पौधों की सिंचाई के लिए बगल के मोरहर नदी से पानी लाने के लिए बर्तन तक नहीं थे. ऐसी स्थिति में श्मशाम घाट में रखे मिट्टी के घड़े इनके काम आये. इन घड़ों से नदी से पानी लाकर पौधों की सिंचाई करना शुरू किया. कठिन परिस्थितियों में भी फलदार वृक्ष की सेवा करनी नहीं छोड़ी. साथ ही विभिन्न प्रकार की सब्जियों को भी उगाना शुरू किया. कड़ी मेहनत रंग लायी.
पांच, छह वर्षों में रेतीली जमीन पर फलदार वृक्ष तैयार हो गये थे. अब उन्हें न तो मजदूरी करने की आवश्यकता थी न ही पंछियों को मारने की. उनके द्वारा बंजर जमीन को उपजाऊ बनाकर तरह-तरह के फल व सब्जियां उगायी जाने लगीं. उनके बगीचे में आम, अमरूद, लीची, केला, पपीता, नींबू ,अनार, शकरकंद ,गाजर, मूली, कटहल, साग व कई तरह की सब्जियां उपजाई जाने लगी, जो उनके आजीविका का साधन बनी. यहां के अमरूद न केवल राज्यभर में बल्कि दूसरे पड़ोसी राज्य के साथ नेपाल में ज्यादा पसंद किये जाते हैं.
क्या कहते हैं बुजुर्ग
सर्वोदय नगर गांव के निवासी 70 वर्षीय तिलकधारी राम ने बताया कि अपने पांच साथियों बिंदेसर राम, रामस्वरूप राम, बंशी राम ,मोसाफिर राम के साथ एतवारी राम ने 1960 में झोपड़ी डालकर यहां रहना शुरू किया था. धीरे-धीरे कुनबा बढ़ता चला गया. मेहनत के बूते आजीविका का आधार भी बदल गया. बहेलिया के तरह जीने वाले अब कृषक बन आपनी आजीविका चला रहे हैं.
उन्होंने बताया कि यहां के लोगों की मेहनत देख सरकार भी सहयोग में आगे आयी. सभी को आवास के तहत पक्के मकान बनवाये. स्कूल, आंगनबाड़ी केंद्र, पक्की सड़कें बनवायी. बिजली पानी की सुविधा भी दी गयी. तिलकधारी राम बताते हैं कि इस गांव को देखने अमेरिका, इंग्लैंड, जापान सहित कई देशों के लोग आ चुके हैं.