नहीं रहे पत्रकारिता के भीष्म पितामह गया बाबू
जिले में पत्रकारिता के भीष्म पितामह के रूप में माने जाने वाले गया बाबू अपने जीवन की 100 वर्ष की आयु पूरी कर 101वें वर्ष में प्रवेश कर चुके थे.
रोहतास जिले के सबसे उम्रदराज क्रियाशील पत्रकार गया प्रसाद का रविवार की देर रात निधन हो गया. उनके निधन की खबर मिलते ही शहर के पानी टंकी स्थित आवास पर श्रद्धासुमन अर्पित करने वालों का तांता लग गया. सोन नदी के पवित्र तट पर सोमवार को उनका शरीर पंचतत्व में विलीन हो गया. जिले में पत्रकारिता के भीष्म पितामह के रूप में माने जाने वाले गया बाबू अपने जीवन की 100 वर्ष की आयु पूरी कर 101वें वर्ष में प्रवेश कर चुके थे. वह संभवत जिले के पहले साप्ताहिक अखबार ””””””””तूफान”””””””” के संस्थापक व संपादक थे. गया बाबू ने ताउम्र अपनी जिंदगी पत्रकारिता में गुजार दी. वर्ष 1957 में उन्होंने डेहरी ऑन सोन से साप्ताहिक तूफान अखबार की शुरुआत तत्कालीन वरीय पत्रकार स्वर्गीय अभय चंद मेहरा, स्वर्गीय रामचंद्र प्रसाद के सहयोग से की थी, जिसे वह 21वीं सदी तक लेकर आ गये थे. निष्पक्ष, निर्भीक पत्रकार के रूप में ख्याति प्राप्त गया बाबू को इस दौरान कई अच्छे बुरे दौर का सामना करना पड़ा था. वह पत्रकार के अलावा अच्छे समाजसेवी भी थे. उन्होंने अपनी जिंदगी दुनिया की चकाचौंध से परे डेहरी की सड़कों पर पैदल ही गुजार दी. सह्रदयी दो टूक बोलने वाले मिलनसार समाजवादी पत्रकार के निधन से जिले के पत्रकारिता जगत को अपूरणीय क्षति हुई है. वह अपने पीछे 90 वर्षीय पत्नी कौशल्या देवी, सात पुत्र विजय कुमार, उदय कुमार, दिनेश कुमार, उमेश कुमार, किशोर कुमार, संजय कुमार व राजेश कुमार, तीन पुत्री-पौत्र सहित भरा-पूरा परिवार छोड़ गये हैं. गया बाबू के पुत्र दिनेश कुमार ने बताया कि उनके पिता जी का जन्म डेहरी शहर के ईदगाह मुहल्ला स्थित पुराने मकान में वर्ष 1923 में हुआ था. वह अपने जीवन की शतकीय पारी खेलते हुए 101वें वर्ष में प्रवेश कर चुके थे. हायर सेकेंडरी की परीक्षा पास करने के बाद गया बाबू वेटरनरी कॉलेज कोलकाता में नामांकन कराये थे. वहां से एक वर्ष की पढ़ाई पूरा कर पुनः वे डेहरी आ गये, जहां अपने पिता डॉ. राम गोविंद प्रसाद के दवा की दुकान पर बैठने लगे. अपने पिता के निधन के बाद आगे की पढ़ाई के लिए वे कोलकाता नहीं जा पाये. पतला दुबला छरहरा बदन के स्वामी गया बाबू धोती कुर्ता पहने पैदल चलते एक जिले में एक अलग पहचान बन चुके थे. शहर के लोग उन्हें बहुत इज्जत देते थे. गया बाबू से शिक्षा प्राप्त कर पत्रकारिता जगत में आज कई लोगों ने अपनी ऊंची पहचान बना ली है. उनके निधन से शोकाकुल लोग अनायास यह कह उठते हैं कि पत्रकारिता के एक युग का अंत हो गया.