जिले में शांति व सौहार्द के साथ मना चेहल्लुम पर्व

नगर सहित जिले के विभिन्न शहरों व गांवों में चेहल्लुम पर्व शांति व सद्भाव के साथ मना. कहीं ताजिया तो कहीं अखाड़े का जुलूस निकला.

By Prabhat Khabar News Desk | August 26, 2024 9:41 PM

सासाराम ऑफिस. नगर सहित जिले के विभिन्न शहरों व गांवों में चेहल्लुम पर्व शांति व सद्भाव के साथ मना. कहीं ताजिया तो कहीं अखाड़े का जुलूस निकला. वहीं, कई जगहों पर हजरत इमाम हसन, हजरत इमाम हुसैन व दीगर शोहदा ए कर्बला की याद में कुरानखानी व लगंर का आयोजन हुआ. शहर के पश्चिमी छोर पर शेरशाह रोजा व ईदगाह शाहजहानी के पास स्थित कर्बला में सुबह से ही लोग पहुंच फातिहाखानी की. इधर, शहर के मोहल्ला मंडई केश्वर खां, खिलनगंज, कबीरगंज, आदमखानी, शाहजुमा, मोचीटोली, सब्जी सराय, शाह जलालपीर, नीम काले खां, मियां मीस्कीन, बाड़ा, छोटा शेखपुरा, बड़ा शेखपुरा, कोठी शहीद, मियां महल, करन सराय, नूरनगंज, बाग भाई खां, जक्की शहीद, मदार दरवाजा, गांधीनीम, बरतला, चौखंडी आदि मोहल्लों से ताजिया सादगी के साथ निकलीं, जो अपने रिवायती रास्तों से शहर मेंं गश्त करते हुए कर्बला पहुंच पहलाम हुईं. इस दौरान प्रशासन द्वारा सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किये गये थे.

हजरत इमाम हुसैन की शहादत के चालीसवें दिन मनता है यह पर्व

मरकजी मुहर्रम कमेटी के अध्यक्ष मुन्ना खां व महासचिव अखलाक अहमद रिजवी ने बताया कि आपसी सौहार्द के बीच चेहल्लुम का पर्व मनाया गया. उन्होंने कर्बला की जंग व चेहल्लुम के संबंध में कहा कि हजरत इमाम हुसैन की शहादत के चालीसवें दिन चेहल्लुम का त्योहार मुस्लिम समाज के द्वारा मनाया जाता है. उन्होंने बताया कि कर्बला की जंग (युद्ध) वर्तमान इराक में कर्बला शहर में इस्लामिक कैलेंडर 10 मुहर्रम 61 हिजरी (10 अक्टूबर, 680 ईस्वी) में हुई थी. यह लड़ाई पैगंबर हजरत मुहम्मद सल्लाहो अलैहे वसल्लम के नवासे हजरत इमाम हुसैन इब्न अली रजि. के समर्थकों, रिश्तेदारों के एक छोटे समूह और उमय्यद शासक यजीद प्रथम की एक सैन्य टुकड़ी के बीच हुई थी. इस लड़ाई में हजरत हुसैन रजी. तथा उनके परिवार के पुरुष सदस्य व उनके साथी शहीद हो गए थे. इस लड़ाई में एक तरफ हजारों यजीदी सैनिकों का लश्कर था, जो एक ऐसी हुकूमत को मानते थे, जहां हर जुर्म व अत्याचार जायज था. वहीं, दूसरी तरफ इमाम हुसैन की अगुवाई में 72 लोगों का काफिला था, जो हक के लिए सब कुछ कुर्बान करने को तैयार था. हजरत इमाम हुसैन सच्चाई के लिए शहीद हो गए. लेकिन यजीदों की नापाक इरादों के समक्ष नतमस्तक होना कबूल नहीं किया. उन्होंने बताया कि हजरत जैनुल आबेदीन ने मदीना से वापसी के दौरान कर्बला पहुंच शोहदा ए कर्बला के कब्रों की जियारत (दर्शन) की.

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