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दुर्गावती परियोजना से नौ साल बाद भी नहीं बुझी खेतों की प्यास

दुर्गावती जलाशय परियोजना की 1976 में बाबू जगजीवन राम ने नींव रखी थी, तो किसानों को लगा था कि पहाड़ी तलहटी की बंजर मिट्टी में भी फसलों की खुशबू महकेगी. लेकिन, पूरे 38 साल इस परियोजना को धरातल पर उतरने का लंबा इंतजार किसानों को करना पड़ा.

चेनारी. दुर्गावती जलाशय परियोजना की 1976 में बाबू जगजीवन राम ने नींव रखी थी, तो किसानों को लगा था कि पहाड़ी तलहटी की बंजर मिट्टी में भी फसलों की खुशबू महकेगी. लेकिन, पूरे 38 साल इस परियोजना को धरातल पर उतरने का लंबा इंतजार किसानों को करना पड़ा. बावजूद इसके परियोजना की दायें और बायेें तट नहर से किसानों के खेतों की प्यास अब तक नहीं बुझ सकी है. तीन दशक पहले पहाड़ी से सटे चेनारी से लेकर शिवसागर प्रखंड के दर्जनों गांवों तक पानी नहीं पहुंचा है. चेनारी प्रखंड क्षेत्र सोन उच्च स्तरीय नहर में पानी गिराने के लिए खोदी गयी 20 किलोमीटर लंबी नहर हर वर्ष जगह- जगह से टूट जाती है. यही नहीं, इस नहर के टेल क्षेत्र के लगभग 10 किलोमीटर दायां तट नहर का स्वरूप बदल कर नहर से नाले का हो गया है. मरम्मत के अभाव में नहर के तटबंध तमाम जगहों पर टूट कर नहर की पेटी में मिल गये हैं. तटबंधों की यह मिट्टी बरसात में गिरकर नहर के पेटी को भरने का काम ही कर रही है, यानी चेनारी प्रखंड के 22 किलोमीटर पटवन की रेंज में मात्र चार-पांच किलोमीटर तक मल्हीपुर-उगहनी गांव के किसानों को ही ठीक से नहर का पानी मिल पाता है. शेष 15 से 18 किलोमीटर की रेंज के किसानों के पटवन की जरूरत अब भी जर्जर नहर के कारण पूरी नहीं हो पा रही है.

पेवंदी के किसान रामानुज मिश्रा, डोईआ के किसान पप्पू राम, लांजी के किसान अंशु कुमार, बच्चन सिंह, रामजगा पाल आदि का कहना है कि जलाशय की नहर पूरी तरह बर्बाद हो गयी है. हर वर्ष नहर का तट कभी दनदनवा, तो कभी उगहनी, तो कभी मल्हीपुर में टूट जाता है. गौरक्षणी से लेकर राधाखांड तक तो नहर, नहर की तरह दिखाई ही नहीं देती है. तटबंधों की मिट्टी बरसात में गिरकर नहर को ही भरने का काम करती है. मरम्मत के नाम पर विभाग द्वारा फिर मिट्टी निकलवायी जाती है और फिर यह मिट्टी नहर में गिर जाती है. कमजोर होने के कारण तटबंध ढह जाते हैं. इससे किसानों को कोई फायदा नहीं मिलता. जब तक नहर का पक्कीकरण नहीं होता, तब तक पटवन की उम्मीद नहीं की जा सकती. किसानों के अनुसार, इस नहर के भरोसे पानी न बरसे, तो धान की खेती भी पार नहीं लगेगी. गेहूं के खेती के पानी के लिए तो बात करना ही बेकार है.

जलाशय की कई माइनरों का काम नहीं हुआ पूरा

दुर्गावती जलाशय परियोजना की विभिन्न माइनरों का काम अब तक पूरा नहीं हो सका है. किसानों की मानें, तो नहर केनाल से निकाली जाने वाली लांजी, पेवंदी, डोईआ व चेनारी सहित और कैमूर जिले के अमरपुर, नेतपुर, नवगढ़, राधा खांड, जैतपुर, सेमरा, भगवानपुर, मकरी आदि दर्जन भर विवरणियों का काम लटका हुआ है. इसी तरह सवार, कमदा, हुडरी आदि आधा दर्जन वितरणियों के काम भी या तो लटके हुए हैं या किसी तरह आधा अधूरा करके उसे पूरा बोला जा रहा है. इधर, जलाशय के पूर्व कार्यपालक अभियंताओं के अनुसार, कुछ माइनरों के काम भू समस्या या विवाद के कारण स्थगित कर दिया गया है. कुछ माइनरों के पक्कीकरण का काम कराया जा रहा है.

नहर पुलिया के अभाव में भी खेतों तक नहीं जा पाता सामान

दुर्गावती जलाशय परियोजना की नहर के पार करने के लिए कई जगह पुलिया नहीं दिये जाने से किसानों को कृषि सामग्री खेतों तक ले जाने में भी दिक्कत होती है. हालांकि, आने-जाने के लिए किसान नहर के तटबंधों पर बिजली के खंभे आदि लगाकर काम चला ले जाते हैं. लेकिन अगर खेत में बीहन डालना हो या जुताई के लिए ट्रैक्टर ले जाना हो, तो किसानों को दूर स्थित किसी पुलिया के सहारे नहर पार करने के लिए चक्कर लगाना पड़ता है. पेवंदी गांव के किसान रामानुज मिश्रा, धर्मेंद्र रंजन, पिंटु पाल आदि का कहना है कि गांव के कई किसानों की खेती नहर के उस पार है. लेकिन, गांव के सामने नहर पर कोई पुलिया नहीं दी गयी है. अगर कृषि सामग्री उधर ले जाना है, तो किसानों को मल्हीपुर गांव या फिर चेनारी के होली फैमिली स्कूल की बगल दी गयी पुलिया की सहायता लेनी पड़ती है. इसके चक्कर में खर्च और समय दोनों बढ़ जाता है. इस संबंध में दुर्गावती जलाशय परियोजना के अधीक्षण अभियंता मनोज कुमार गुप्ता का कहना है कि बायें तट में जीरो क्यूसेक, दायें तट में 25 क्यूसेक और कुदरा बियर के लिए 300 क्यूसेक पानी छोड़ा जा रहा है. कुछ वितरणियों में पानी नहीं पहुंचा है. जिस वितरणियों में पानी नहीं पहुंचा है, वहां जल्द पानी पहुंचाने के लिए सभी कार्यपालक अभियंता लगातार देखरेख में लगे हुए हैं.

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