रौबदार कुत्तों को मिलता है एंटी रैबीज का टीका, आवारा भगवान भरोसे
जिले के रौबदार (पालतू) कुत्तों को टीका तो मिल जा रहा है, पर आवारा कुत्ते भगवान भरोसे हैं. पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग आवारा कुत्तों को टीका लगाने के लिए किसी प्रकार का कार्यक्रम संचालित नहीं कर रहा है.
सासाराम ऑफिस. जिले के रौबदार (पालतू) कुत्तों को टीका तो मिल जा रहा है, पर आवारा कुत्ते भगवान भरोसे हैं. पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग आवारा कुत्तों को टीका लगाने के लिए किसी प्रकार का कार्यक्रम संचालित नहीं कर रहा है. ऐसे में जिले के लोगों को कुत्तों के काटने से रैबीज होने का डर सता रहा है. लोग कुत्तों के हलके से भी काटने पर एंटी रैबीज वैक्सीन लगाने के लिए भी सरकारी अस्पतालों का रुख कर ले रहे हैं. स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों पर नजर डालें, तो पिछले एक वित्तीय वर्ष में करीब 5770 लोगों को कुत्तों ने काटा है. यह आंकड़ा केवल सदर अस्पताल का है. पूरे जिले की अगर बात करें, तो इसकी संख्या 20 हजार के आसपास हो जायेगी. हाल ही में काराकाट में एक व्यक्ति की मौत कुत्ते के काटने से हुई थी. शुरुआती लक्षण देखने के बाद परिवार वालों ने उसका हर जगह इलाज कराया. लेकिन, उसकी स्थिति में सुधार नहीं हुआ और उसकी मौत हो गयी. स्थानीय लोगों की बात करें, तो फरवरी में गांव के चार लोगों को एक कुत्ते के बच्चे ने काटा था, जिसके बाद तीन लोगों ने तुरंत जाकर इंजेक्शन ले लिया था, जबकि इसमें से एक व्यक्ति ने इंजेक्शन नहीं लिया और तीन माह बाद उसकी मौत हो गयी. विभाग की लापरवाही का खामियाजा यह परिवार भुगत रहा है.
बिना टीका लगाये घूम रहे आवारा कुत्ते
बहुत कम ही ऐसे मामले अस्पताल में आते हैं, जिनमें कुत्ते के अलावा दूसरे जानवरों ने काटा होता है. सबसे अधिक एंटी रैबीज का इंजेक्शन लेनेवाले वैसे लोग आते हैं, जिन्हें कुत्तों ने काटा है. हाल के दिनों में जिले में आवारा कुत्तों की संख्या बढ़ गयी है. मुहल्लों में दर्जन भर कुत्ते एक साथ झुंड में देखे जा सकते हैं. इनकी संख्या को लेकर फिलहाल किसी को चिंता नहीं है. न तो निगम इन कुत्तों को पकड़ रहा है और न ही पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग सहित अन्य कोई संस्था आवारा कुत्तों को एंटी रैबीज टीका सहित उनके प्रजनन की दर को रोकने के लिए कोई टीका लगाने आगे आयी है.नर्वस सिस्टम को करता है प्रभावित
गौरतलब है कि रैबीज वायरस रैब्डोवायरस परिवार का एक आरएनए वायरस है, जो व्यक्ति के सेंट्रल नर्वस सिस्टम को प्रभावित करता है. एक बार यह नर्वस सिस्टम के अंदर पहुंच जाता है, तो वायरस मस्तिष्क में तीव्र सूजन पैदा करता है, जिससे जल्द ही कोमा और मौत हो सकती है. रैबीज दो प्रकार के होते हैं. पहला प्रकार, फ्यूरियस या एन्सेफेलिटिक रैबीज 80 प्रतिशत मानव में होता है और इससे पीड़ित व्यक्ति को हाइपरएक्टिविटी और हाइड्रोफोबिया का ज्यादा अनुभव हो सकता है. दूसरा प्रकार, जिसे लकवाग्रस्त या डम्ब रैबीज कहा जाता है, जिसमें लकवा मारना एक प्रमुख लक्षण है. रैबीज के लक्षण समान हो सकते हैं और कई दिनों तक रह सकते हैं. इनमें बुखार, सिरदर्द, जी मिचलाना, उल्टी करना, घबराहट, चिंता, कन्फ्यूजन, हाइपरएक्टिविटी, निगलने में कठिनाई, अत्यधिक लार आना, बुरे सपने आना, अनिद्रा, पार्शियल पैरालिसिस आदि प्रमुख होते हैं.साल में एक बार लगाया जाता है एंटी रैबीज का टीका
जिला पशुपालन विभाग के टीबीओ मोबाइल प्रदीप कुमार निराला की मानें, तो सरकार द्वारा कुत्तों को एंटी रैबीज का टीका साल में एक बार लगाया जाता है. यह टीका हर वर्ष 28 सितंबर को विश्व रैबीज डे के अवसर पर लगाया जाता है. साथ ही उन्होंने बताया कि अगर कोई व्यक्ति अपने साथ आवारा हो या पालतू कुत्ते, एंटी रैबिज का टीका लेकर आता है, तो उसे टीका लगा दिया जाता है. पर सरकार द्वारा साल में एक बार के अलावा अन्य दिनों के लिए रैबीज का टीका उपलब्ध नहीं कराया जाता है. हालांकि, विभाग से यह नहीं जानकारी मिल सकी कि जिले में अब तक कितने आवारा कुत्तों व पालतू कुत्तों को एंटी रैबीज का टीका लगाया जा सका है?डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है