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साहित्य जगत के पुरोधा थे पद्मभूषण प्राप्त सुप्रसिद्ध साहित्यकार राजा राधिका रमण

मां भारती ने अपने आंचल से एक से बढ़कर एक योद्धा, शूरवीर और साहित्यकार जैसी अनेक विभूतियों को जन्म दिया है. अपने शैली सम्राट के बल पर जिनकी कथा चर्चित है, उनमें से एक थे सुप्रसिद्ध शैली सम्राट साहित्यकार राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह.

मनोज कुमार सिंह, सूर्यपुरा. मां भारती ने अपने आंचल से एक से बढ़कर एक योद्धा, शूरवीर और साहित्यकार जैसी अनेक विभूतियों को जन्म दिया है. अपने शैली सम्राट के बल पर जिनकी कथा चर्चित है, उनमें से एक थे सुप्रसिद्ध शैली सम्राट साहित्यकार राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह. साहित्याकाश के दीप्तिमान नक्षत्र राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह का जन्म 10 सितंबर 1890 को बिहार के तत्कालीन शाहाबाद के सूर्यपुरा नामक गांव में प्रसिद्ध कायस्थ जमींदार राजा राजेश्वरी सिंह उर्फ प्यारे कवि के यहां हुआ था. उनकी आरंभिक शिक्षा घर पर ही हुई. वर्ष 1907 में आरा स्थित जिला स्कूल से इंटरेस्ट पास करने के बाद 1909 में पढ़ाई करने के लिए कोलकाता के सेंट जेवियर्स कॉलेज में नामांकन करने के बाद 1910 में कोलकाता से एफए की. फिर 1912 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीए और 1914 में कोलकाता विश्वविद्यालय से एमए इतिहास की परीक्षाएं उत्तीर्ण कीं. बड़े जमींदार होने की वजह से अपने नाम के साथ राजा साहब सिंह लगाते थे. उनकी माता का नाम शकुंतला देवी था, जिनके आंगन में खिले हुए पुष्प साहित्य जगत के चमकते हुए सितारे बन गये. उनके पिता राजेश्वरी प्रसाद सिंह हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, बांग्ला, फारसी और पश्तों के विद्वान होने के साथ ब्रजभाषा के एक बड़े कवि थे. राजा राधिका रमण प्रसाद के पितामह दीवान राम कुमार सिंह साहित्यिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे, जो कुमार उपनाम से ब्रजभाषा में कविताएं लिखा करते थे. राजा-राधिका रमण प्रसाद सिंह को साहित्य विरासत में मिली थी.

1903 में पिता का हो गया स्वर्गवास

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उनकी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई. उन्होंने संस्कृत, हिंदी और अंग्रेजी की प्रारंभिक शिक्षा पूर्ण की. वर्ष 1903 में पिता के अचानक स्वर्गवास होने पर इनकी रियासत कोर्ट ऑफ वंडर्स के अधीन हो गयी. शाहाबाद के कलेक्टर के अभिभक्त हो उन्होंने आरा जिला स्कूल में दाखिला लिया. कुछ दिन बाद जिलाधिकारी ने उन्हें कोलकाता भेज दिया. वहीं से उन्होंने 10वीं की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की. उस समय तक उन्होंने ब्रजभाषा में कविता लिखनी शुरू कर दी थी. बंग-भंग आंदोलन से प्रभावित होने के कारण जिलाधिकारी ने आगरा कॉलेज आगरा में उनका नाम लिखवा दिया. वहां से उन्होंने इंटरमीडिएट किया. 1912 ईस्वी में प्रयाग विश्वविद्यालय से बीए की परीक्षा पास की. उस समय उनकी प्रथम कहानी कानों में कंगन हिंदी में प्रकाशित हुई.

कोर्ट ऑफ वंडर्स के बंधन से मुक्त हुई रियासत

वर्ष 1917 में जब वह बालिग हुए, तब रियासत कोर्ट ऑफ वंडर्स के बंधन से मुक्त हुई और वह उसके स्वामी हो गये. 1920 के आसपास अंग्रेजी सरकार ने राधिका रमण प्रसाद सिंह को राजा की उपाधि से विभूषित किया. इसी बीच उन्हें बिहार प्रादेशिक हिंदी साहित्य सम्मेलन का चेयरमैन निर्वाचित किया गया. वर्ष 1921 में शाहाबाद जिला परिषद के जिला बोर्ड के प्रथम भारतीय चेयरमैन के रूप में उन्हें निर्वाचित किया गया. 28 फरवरी 1927 को उन्होंने जिला बोर्ड के तत्वावधान में महात्मा गांधी का अभिनंदन किया. 1932 में बिहार हरिजन सेवा संघ के अध्यक्ष बनाये गये.

सी की पदवी से हुए विभूषित

वर्ष 1941 में उन्हें अंग्रेजी सरकार ने सी की पदवी से विभूषित किया. 1947 में भारतीय स्वतंत्रता के बाद राजा साहब पटना में रहने लगे और साहित्य साधना में लग गये. हिंदी साहित्य की उल्लेखनीय उपाधि और 1969 में मगध विश्वविद्यालय बोधगया ने डॉक्टर ऑफ लिटरेचर डी.लिट की मानक उपाधि से सम्मानित किया. 1970 में प्रयाग हिंदी साहित्य सम्मेलन में साहित्य वाचस्पति की उपाधि से अलंकृत किया गया. 25 मार्च 1971 को शैली सम्राट धरती मां की गोद में सदैव के लिए ध्यान मग्न हो गये. वीर कुंवर सिंह यूनिवर्सिटी आरा के स्नातकोत्तर हिंदी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ मुकेश राम ने बताया कि वर्ष 2021 से राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह की लिखित दो पुस्तकें दरिद्रनारायण एवं कानों में कंगना पाठ्यक्रम में लागू कर पढ़ायी जाती हैं.

राजा साहब की रचनाएं

नाटक में नई रिफॉर्मर या नवीन सुधारक 1911, धर्म की दूरी 1952, अपना पराया 1953, नजर बदली बदल गए नजारे 1961 ई, कहानी संग्रह में पुष्पांजलि, लघु उपन्यास नवजीवन, तरंग, माया मिली न राम, मॉडर्न कौन सुंदर कौन, अपनी-अपनी नजर अपनी अपनी डगर, उपन्यास में राम रहीम सन 1936, पुरुष और नारी 1939, सूरदास 1942, संस्कार 1944, पूरब और पश्चिम 1951, चुंबन और चांटा 1957 ईस्वी में प्रकाशित हुई.

आज मनायी जायेगी जयंती

स्थानीय हाइस्कूल के सभागार में मंगलवार यानी 10 सितंबर को इनकी जयंती मनायी जायेगी. इस मौके पर मैट्रिक एवं इंटरमीडिएट के वर्ष 2024 में टॉप आये स्टूडेंट्स को प्रशस्ति पत्र और नगद राशि से पुरस्कृत किया जायेगा.

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