Bihar News: बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में देश का चर्चित लहठी बाजार है. मालूम हो कि सावन में हरी चूड़ियां महिलाओं की पसंद बन रही है. लहठी उद्योग के लिए चर्चित शहर का इस्लामपुर मंडी कांच की हरी चूड़ियों के लिए भी जाना जा रहा है. कांच की चूड़ियां तो यहां नहीं बनतीं, लेकिन उत्तर बिहार के विभिन्न जिलों के अलावा दिल्ली, मुंबई सहित अन्य महानगरों में कांच की चूड़ियों की सप्लाई यहीं से होती है. सावन में हरी चूड़ियां महिलाओं की पसंद होने के कारण यहां के बड़े लहठी कारोबारी फरीदाबाद से कांच की हरी चूड़ियां मंगवाते हैं.
इसके बाद यहां से दूसरे जिलों में और राज्यों में सप्लाई की जाती है. लहठी उद्योग होने के कारण कपड़े की तरह कांच की चूड़ियों की ट्रेडिंग यहीं से होती है. दूसरे राज्यों में लहठी के साथ चूड़ियां भी सप्लाई की जाती हैं. यहां के कारोबारियों की मानें, तो सावन में हरी चूड़ियों और लहठी का कारोबार करीब पांच करोड़ का है. इसमें चार करोड़ की हरी चूड़ियां और दो करोड़ की लहठी शामिल है.
सावन में हरी चूड़ियों का कारोबार कांवरियों के कारण भी बढ़ जाता है. सावन में करीब तीन लाख कांवरिये मुजफ्फरपुर में स्थित गरीबनाथ मंदिर में जलाभिषेक करने आते हैं. अधिकतर कावंरिये बाबा की पूजा के बाद चूड़ी और लहठी की खरीदारी करते हैं. इससे इस्लामपुर लहठी मंडी के कारोबार में काफी तेजी आती है. इसके अलावा दूसरी जगहों के ऑर्डर, ऑनलाइन बाजार के कई प्लेटफॉर्म और दुकानदारों के वेबसाइट के माध्यम से भी हरे रंग की लहठी और चूड़ी की अच्छी बिक्री होती है.
सावन में चूड़ी व लहठी के बाजार के लिए तीन महीने पहले से तैयारी शुरू हो जाती है. शहर में करीब दो हजार कारीगर लहठी के निर्माण में लग जाते हैं. इसके अलावा फिरोजाबाद से भी चूड़ियों की खेप पहुंचने लगती है. लहठी विक्रेता मो सुलेमान ने बताया कि लग्न के समय से ही सावन की तैयारी शुरू हो जाती है. दूसरे प्रदेशों से भी चूड़ी और लहठी के ऑर्डर आने शुरू हो जाते हैं. सावन के लिए कारीगर दिन-रात मेहनत कर लहठी का निर्माण करते हैं.
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सावन में चूड़ी व लहठी का कारोबार काफी अच्छा रहता है. कारोबारी बताते है कि वह दो-तीन महीने पहले से इसकी तैयारी शुरू कर देते हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि कांच की चूड़ियां फिरोजाबाद में बनती हैं, लेकिन इस्लामपुर मंडी उसका होलसेल व खुदरा बाजार का भी बड़ा केंद्र है. लग्न व सावन में यहां का कारोबार काफी अच्छा रहता है.
कारीगर बताते है कि फिरोजाबाद से कांच की चूड़ियां आने से यहां के बाजार को काफी बढ़ावा मिला है. यहां अब कांच की चूड़ियों को मिला कर कंगन का रूप दिया जा रहा है. यहां के कारीगर चूड़ियों की नक्काशी कर रहे हैं. यहां के बने कांच के कंगन को भी अच्छा बाजार मिल रहा है. आने वाले समय में इस्लामपुर मंडी को कांच के कंगन के रूप में भी पहचान मिलेगी
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मालूम हो कि सावन के महीने में हरे रंग की चूड़ियों का खास महत्व होता है. इस बार 59 दिनों का सावन है. शिवालयों में भक्तों की भीड़ देखने को मिलती है. महिलाओं के श्रृंगार के लिए भी इस महीने को खास माना जाता है. हरे रंग की चूड़ियों के साथ इस रंग की अन्य चीजों का भी खास महत्व होता है. इस महीने में हर ओर हरियाली नजर आती है. बारिश के साथ मौसम सुहाना हो जाता है.
मान्यता के अनुसार हरे रंग और सावन का गहरा रिश्ता होता है. गर्मी के बाद बारिश से मौसम खुशनुमा हो जाता है. हरे रंग को प्रकृति का रंग माना जाता है. कहते है कि भगवान भोलेनाथ और प्रकृति के बीच गहरा संबंध होता है. इनकी पूजा में धतूरा, बेलपत्र, भांग जैसी चीज अर्पीत की जाती है. यह हरे रंग की ही होती है. इस कारण भी हरे रंग का विशेष महत्व है. सावन महीने में महिलाएं शंकर भगवान की पूजा करती है. इस दौरान वह हरे रंग की साड़ी पहनती है. साथ ही चूड़ी भी पहनती है. यही कारण है कि राज्यभर में चूड़ी की मांग बढ़ गई है. साथ ही चूड़ी का कारोबार भी बढ़ चुका है.