बुनकरों के लिए खुशहाली लेकर आया दो माह का सावन, दो माह में सात करोड़ तक के कारोबार की उम्मीद
भागलपुर की बनी डल की चादर व गमछा की मांग 30 से 40 प्रतिशत तक बढ़ गयी है. उन्होंने बताया कि हरेक रविवार को 50 हजार से एक लाख कांवरिया तक अजगैबीनाथ व भागलपुर गंगा तट से जल भरकर कांवर उठा रहे हैं. एक गमछा 70 से 150 रुपये तक में मिलता है, जबकि डल की चादर 300 से 450 रुपये की.
दीपक राव, भागलपुर. एक ओर जहां सावन में भागलपुर व सुलतानगंज भगवान शिव की भक्ति में डूब गया है, तो दूसरी ओर यहां के बुनकरों के लिए दो माह का सावन खुशहाली लेकर आया है. खासकर बाहर से आये कांवरियों के बीच डल चादर की मांग बढ़ गयी है, तो अधिकतर कांवरिया भगवा व उजला गमछा खरीद रहे हैं. इससे दो महीने के सावन में इस बार छह से सात करोड़ का कारोबार होगा. भागलपुर मुख्य बाजार के कारोबारियों की मानें, तो यहां पर कोलकाता व दिल्ली से सावन के ड्रेस बनकर आते हैं. इसमें भागलपुर की बनी डल की चादर व गमछा की मांग 30 से 40 प्रतिशत तक बढ़ गयी है. उन्होंने बताया कि हरेक रविवार को 50 हजार से एक लाख कांवरिया तक अजगैबीनाथ व भागलपुर गंगा तट से जल भरकर कांवर उठा रहे हैं. एक गमछा 70 से 150 रुपये तक में मिलता है, जबकि डल की चादर 300 से 450 रुपये की.
दो माह में सात करोड़ तक का होगा कारोबार
बुनकर प्रतिनिधि मो इबरार अंसारी ने बताया कि सुलतानगंज और भागलपुर गंगा तट से केवल रविवार को सोमवारी के लिए एक लाख तक कांवरिया जल भरते हैं. एक-एक कांवरिया 100 रुपये का ही कपड़ा खरीदता है, तो एक दिन में 50 लाख से एक करोड़ का कारोबार हो रहा है. ऐसे में एक माह के सावन में तीन से चार करोड़ का कारोबार होता है, जबकि इस बार आठ सोमवारी है. रविवार को जल उठाने वाले कांवरियों की संख्या कोरोना काल बीतने पर बढ़ गयी है. ऐसे में सात करोड़ से अधिक का कारोबार होगा. इसमें कटोरिया, अमरपुर, भागलपुर समेत अन्य क्षेत्रों के बुनकरों के बने कपड़े की बिक्री हो रही है.
एक दिन में डेढ़ से दो लाख रुपये की बिक्री
चादर, गमछा व सिल्क कपड़ा के कारोबारी रतीश झुनझुनवाला ने बताया कि यहां पर हजारों की संख्या में दूसरे प्रांत ही नहीं, दूसरे देश के श्रद्धालु जल भरकर कांवर उठाते हैं. भागलपुर की सौगात के रूप में डल चादर खरीदना नहीं भूलते और एक गमछा तो हरेक कांवरिया को जरूरत के लिए खरीदना पड़ता है. एक दिन में डेढ़ से दो लाख रुपये की डल की चादर भागलपुर बाजार में बिक जाती है, जबकि गमछा एक से डेढ़ लाख रुपये का. इसके अलावा सिल्क के कपड़े-भागलपुरी तसर की बिक्री होती है. इसमें कुर्ता, साड़ी व सलवार-सूट के कपड़े शामिल हैं.
डल की चादर से गर्मी में मिलती है ठंडक
बुनकर संघर्ष समिति के मो सिकंदर ने बताया कि फरवरी, मार्च और अप्रैल में डल की चादर की अधिक बिक्री होती है. दरअसल, गर्मी में इस चादर को ओढ़ने पर ठंडक व आरामदायक लगता है. इस विशेषता के कारण दूसरे प्रांत के लोग डल की चादर खरीदकर ले जाते हैं. गमछा भी एक दिन में केवल एक से डेढ़ लाख रुपये की बिक्री होती है. सिल्क के कपड़े नहीं के बराबर खरीदते हैं, चूंकि यहां आने पर बाहर के कांवरिया जल भरकर बाबा धाम जाने की धून में रहते हैं.
कांवरिया पथ पर अलग स्टॉल
सिल्क वस्त्रों, डल की चादर व गमछे का स्टॉल हरेक स्टॉपेज पर है. यहां पर बुनकरों के बने कपड़े फेरीवाले बेचते हैं. बुनकरों को किसी न किसी रूप में इसका फायदा जरूर मिलता है. दुकानदार सावन में फायदा कमाने के लिए फरवरी-मार्च में ही अपना माल बुनकर से खरीद लेते हैं. अधिक फायदा कमाने के लिए रास्ते में नकली भी बिकता है. गया से मिलती-जुलती चादर आती है. वह भी डल चादर की तरह दिखती है, लेकिन आरामदायक नहीं होती है.
लूम कम चलने से बुनकरों को होने लगा है रोजगार का संकट
कोराना काल के बाद भागलपुर के बुनकरों के सामने रोजगार का भारी संकट पैदा हो गया था. भागलपुर के नाथनगर, चंपानगर कटौरिया, बेलहर आदि जगहों के बुनकरों की हालत काफी खराब हो चुकी है. उसका एक बड़ा कारण ऑर्डर की कमी रही. आज भी कोरोना काल से पूर्व के मुकाबले उनका लूम चार घंटे कम चल रहा है. चंपानगर के बुनकर संजीव कुमार ने बताया कि धागे की कीमत बढ़ने का असर व्यवसाय पर दिखने लगा है. मांग घटने से अब लूम कम घंटे ही चल रहे हैं. पहले जहां लूम 12 घंटे चलता था. वहीं, अब आठ घंटे ही चल रहा है.
दोगुनी हो चुकी है धागे की कीमत
मलवारी धागा 2700 से बढ़कर 4700 रुपये व लिनन का धागा 1200 से बढ़कर 1900 रुपये किलो हो चुका है. धागे की कीमत बढ़ने के कारण बाहर के व्यापारियों से अभी नया ऑर्डर नहीं लिया जा रहा है. चंपानगर तांती बाजार के बुनकर आलोक कुमार ने बताया कि धागे की कीमत लगभग दोगुनी हो चुकी है. भागलपुर के बुनकर दूसरे राज्यों के व्यापारियों पर धागे को लेकर निर्भर रहते हैं. हाल में धागे की कीमत बढ़ा दी गयी है. 4200 रुपये किलो का तसर धागा अब 9000 रुपये किलो हो गया है.