बिहार में पुराने स्वाद वाली दाल-सब्जियों की होगी तलाश, पहले जैसी महक वाले फूलों की भी होगी खोज
बिहार के सभी जिलों में जागरूकता अभियान व प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया जायेगा. जिसमें, किसानों से उनकी फसलों की गुणवत्ता और स्वाद के बारे में पूछा जायेगा. किसानों की ओर से बतायी गयीं फसलों, फूलों व सब्जियों की गुणवत्ता व उनकी प्रजाति की कृषि वैज्ञानिक जांच करेंगे.
मनोज कुमार, पटना. बिहार की सब्जियों में पहले जैसा स्वाद नहीं रह गया है. फूलों में भी अब पुरानी खुशबू नहीं है. दालों में भी अब पहले जैसी बात न के बराबर है. कई औषद्यीय पौधों की गुणवत्ता भी प्रभावित हुई है. गेहूं व धान के स्वाद पर भी व्यापक असर पड़ा है. नयी प्रजाति के बीज से इनकी उपज के कारण सब्जियों, फूलों व दालों में अब वो पुरानी बात नहीं रही. मगर, इन सब के बीच राज्य में कहीं न कहीं सीमित मात्रा में पुराने स्वाद वाली दाल- सब्जियों, फूल व औषद्यीय पौधों की खेती हो रही है. ये खेती कहां और किसके द्वारा की जा रही है, इसकी पड़ताल कृषि विभाग करेगा. पड़ताल के बाद इनका संरक्षण किया जायेगा. भागलपुर कृषि विश्वविद्यालय को इसका जिम्मा दिया गया है. ऐसे होगी पड़ताल
ऐसे होगी पड़ताल
सभी जिलों में जागरुकता अभियान व प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया जायेगा. जिसमें, किसानों से उनकी फसलों की गुणवत्ता और स्वाद के बारे में पूछा जायेगा. किसानों की ओर से बतायी गयीं फसलों, फूलों व सब्जियों की गुणवत्ता व उनकी प्रजाति की कृषि वैज्ञानिक जांच करेंगे. जांच में अगर उनकी गुणवत्ता बाजार में मिल रहीं सब्जियों, फूलों व दालों से अलग तथा स्वाद में वास्तव में पहले जैसे पाये जायेंगे तो, उनका संरक्षण किया जायेगा. प्रशिक्षण व जागरूकता अभियान के लिए कृषि विभाग की ओर से 69 लाख रुपये स्वीकृत किये गये हैं. इनकी गुणवत्ता, स्वाद, खुशबू की होगी पड़ताल
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सब्जियों में कद्दू, लौकी, टिंडा, खीरा, ककड़ी, पेठा, परवल, टमाटर, गोभी व पालक
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मसालों में लहसून, मेथी, धनिया, खाद्यान्नों में गेहूं, धान, मक्का, जवार, राबी, मड़ुवा
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तेल में सरसों, तीसी, तिल, मूंगफली की पड़ताल की जायेगी.
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दाल में मसूर, चना व खेसारी, मटर, उदड़, मूंग में पुराने स्वाद की जांच होगी.
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फूल में गेंदा, गुलाब, कचनार की गुणवत्ता परखी जायेगी.
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औषद्यीय पौधों में तुलसी, भृंगराज, पत्थरचट्टा की नस्लें जांची जायेंगी.
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