Arif Mohammad Khan: तारीख 24 दिसंबर 2024, रात के करीब केरल के राज्यपाल के तौर पर अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद आरिफ मोहम्मद खान को गृह मंत्रालय के सिफारिश पर राष्ट्रपति ने बिहार का नया राज्यपाल नियुक्त किया है. नौ बजे थे. तभी एक खबर आई कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने देश के पांच राज्यों में नए राज्यपालों की नियुक्ति की है. बिहार के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर को केरल का राज्यपाल बनाया गया है .जबकि केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान को बिहार का राज्यपाल बनाया गया. आरिफ मोहम्मद खान का नाम जितना बिहार की मुख्य विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के लिए हैरान करने वाला था. उतना ही प्रदेश की सत्ता पर करीब दो दशक से काबिज जनता दल यूनाइटेड के लिए भी था. क्योंकि अगले साल की आखिर में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले अचानक से बिहार के गवर्नर के बदलने की आखिर क्या जरूरत आन पड़ी और क्यों केंद्र की मोदी सरकार ने बिहार में 26 साल बाद मुस्लिम समाज से आने वाले व्यक्ति को ही राज्यपाल बनाकर भेजा है. ऐसे में आज हम आपको इस तरीके से राज्यपाल के बदलने की अंदर की कहानी बताएंगे. लेकिन उससे पहले जान लेते हैं कि आखिर कौन हैं आरिफ मोहम्मद खान? जिनकी नियुक्ति को लेकर सभी हैरान हैं.
कौन हैं आरिफ मोहम्मद खान?
आरिफ मोहम्मद खान का जन्म 18 नवंबर 1951 को उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में हुआ था. उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से बी.ए. (ऑनर्स) (1972-73) और लखनऊ विश्वविद्यालय, उत्तर प्रदेश से एलएलबी (1977) की डिग्री प्राप्त की. आरिफ मोहम्मद खान की राजनीति में एंट्री 1972-73 के दौरान विश्वविद्यालय के महासचिव और 1973-74 के दौरान अध्यक्ष के रूप में हुई. इसके बाद 1977 में वह बुलंदशहर के सियाना विधानसभा सीट से पहली बार विधायकी का चुनाव जीते और यूपी सरकार में मंत्री बन गए. इसके बाद उनके सियासत का सितारा कभी फीका नहीं हुआ और वह चार बार 1980,1984,1989 और 1998 में लोकसभा सांसद बने. इसी दौरान वह दो बार केन्द्रीय मंत्री भी रहे. पहली बार राजीव गांधी की कैबिनेट में वह कानून राज्यमंत्री ( 1984-1986) तथा दूसरी बार वीपी सिंह की सरकार में 1989-1991 तक कैबिनेट मंत्री रहे.
शाहबानो केस में राजीव गांधी के रवैये से नाराज हो छोड़ा था मंत्री पद
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 में हुए चुनाव में कानपुर से लगातार दूसरी बार चुनाव जीतकर खान राजीव गांधी की कैबिनेट में कानून राज्य मंत्री के रूप में शामिल हुए. इसी दौरान उनकी शाहबानो केस को लेकर केंद्र सरकार से ठन गई और उन्होंने राजीव गांधी की कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया. कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद आरिफ मोहम्मद खान की वापसी 1989 में वीपी सिंह की सरकार में कैबिनेट मंत्री के तौर पर हुई. बता दें कि इस सरकार में बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी मंत्री बने थे. यानी दोनों एक साथ सरकार में मंत्री थे. इसके बाद वह 1998 में आखिरी बार सांसद बने. हालांकि इसके बाद वह धीरे-धीरे नेपथ्य में चले गए. लेकिन उन्होंने कांग्रेस, बसपा से होते हुए 2004 में भाजपा में शामिल हो गए. लेकिन यहां भी वह ज्यादा दिन नहीं टिके और 3 साल बाद ही भाजपा से अलग भी हो गए. इस दौरान वह सक्रिय राजनीति से तो दूर रहे. लेकिन समय समय पर मुस्लिम समाज में व्याप्त कुरीतियों पर खुलकर बोलते रहे. जिसका फायदा उन्हें आगे चलकर मिला.
तीन तलाक के मुद्दे पर किया बीजेपी का समर्थन
हालांकि 2014 के चुनाव में केंद्र की सत्ता में बीजेपी के आने और सुप्रीम कोर्ट से तीन तलाक के गैर कानूनी घोषित होने के बाद खान ने इस मुद्दे पर सरकार का साथ दिया और इसकी झलक 18 अगस्त 2019 को भी दिखी. जब दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में अमित शाह ने कहा कि मैं आरिफ मोहम्मद खान को सभी की तरफ से बधाई देना चाहता हूं, जो मुसलमान होकर भी तीन तलाक के खिलाफ बोलते रहे. एक अकेला बंदा राजीव गांधी सरकार के फैसले के खिलाफ खड़ा रहा. आज भी वो तीन तलाक पर मुखर होकर बोलते रहते हैं और इसके कुछ सप्ताह के अंदर सितंबर 2019 में खान को केरल का राज्यपाल नियुक्त कर दिया गया.
24 दिसंबर 2024 को नियुक्त हुए बिहार के राज्यपाल
अपने बयानों को लेकर चर्चा में रहने वाले खान को बिहार का राज्यपाल बनाने के पीछे भाजपा की सधी हुई रणनीति है. जानकार मानते हैं कि इससे भाजपा की प्रोग्रेसिव राजनीति को फायदा होगा. मुस्लिम तबके में एग्रेसिव वोटिंग को कंट्रोल किया जा सकता है. भाजपा को लगता है कि खान मुस्लिम समाज के एक प्रगतिशील चेहरा हैं और उनके बयान पार्टी की राजनीति के फेवर में जाता है. आरिफ को बिहार भेजकर बीजेपी संदेश देना चाहती है कि वह राष्ट्रवादी और प्रगतिशील मुस्लिम चेहरों को आगे बढ़ाने की पक्षधर है. हालांकि आरिफ से पहले भी बिहार में 5 मुस्लिम राज्यपाल रह चुके हैं. जिनका विवरण कुछ इस प्रकार से है.
बिहार में मुस्लिम राज्यपाल | कब से कब तक |
डॉ जाकिर हुसैन | 06 जुलाई 1957 से 11 मई 1962 तक |
डॉ अखलाक उर-रहमान किदवई | 20 सितंबर 1979 से 15 मार्च 1985 तक |
मोहम्मद यूनुस सलीम | 16 फरवरी 1990 से 13 फरवरी 1991 तक |
मुहम्मद शफी कुरैशी | 19 मार्च 1991 से 13 अगस्त 1993 तक |
डॉ अखलाक उर-रहमान किदवई | 14 अगस्त 1993 से 26 अप्रैल 1998 तक |
आरिफ के सहारे मुसलमानों को रिझाने की कोशिश
आरिफ मुहम्मद खान को बिहार लाने के पीछे सबसे पहला कारण लोग यह बता रहे हैं कि बीजेपी खान को राज्यपाल बनाकर प्रदेश के करीब 17 प्रतिशत मुसलमानों पर डोरे डाल रही है. पर यह तर्क बहुत ही सतही है. क्योंकि देश के मुसलमान आरिफ मोहम्मद खान को प्रगतिशील मुस्लिम मानते हैं जो बीजेपी का समर्थक है. ऐसी दशा में कौन मुस्लिम आरिफ मोहम्मद खान के चलते बीजेपी को वोट देगा. यह कह पाना फिलहाल संभव नहीं है. वही, बीजेपी भी प्रदेश के मुस्लिम समाज के लोगों को यह संदेश देना चाहती है कि वह मुस्लिम विरोधी नहीं है. वह पढ़े लिखे और राष्ट्रवादी मुस्लिमों का न सिर्फ सम्मान करती है. बल्कि उन्हें अहम जिम्मेदारियां भी सौंपती है. खान की नियुक्ति से वह आरजेडी के कोर वोट बैंक में भी सेंध लगाने की कोशिश करेगी.
चुनाव को ध्यान में रखकर हुई नियुक्ति
2025 के विधानसभा चुनावों को लेकर बीजेपी बहुत ज्यादा आश्वस्त तो नहीं ही होगी. दूसरी बात यह भी है कि बिहार में चुनाव बाद गठबंधन के दल इधर उधर हो सकते हैं. इन सबके बीच राज्यपाल की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है. इसके लिए एक ऐसे विशेषज्ञ राज्यपाल की जरूरत थी जिसे संविधान और बिहार की राजनीति की समझ हो . इन सब मामलों में आर्लेकर के मुकाबले आरिफ मोहम्मद खान कहीं बेहतर हैं. आरिफ मोहम्मद खान बुजुर्ग हैं पर इतने एक्टिव हैं जितना युवा लोग नहीं हैं. उन्हें संविधान को अपने अनुसार व्याख्या करने की भी योग्यता है, जो मुश्किल समय में बीजेपी के काम आ सकती है.
RJD पर नकेल कसने की कोशिश
केंद्र की बीजेपी सरकार की यह भी मंशा हो सकती है कि प्रदेश की मुख्य विपक्षी पार्टी आरजेडी की मनमानी को रोकने के लिए कोई खुर्राट आदमी चाहिए. इस काम में आरिफ मोहम्मद खान पारंगत हैं. केरल में रहते हुए पीआर विजयन की नाक में कई बार उन्होंने दम कर रखा था. बीजेपी अब उन्हें बिहार में इस्तेमाल करना चाहेगी.
आरिफ मोहम्मद खान को मिली है Z+ सिक्योरिटी
केरल में इस साल जनवरी में राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान की सुरक्षा को लेकर उस वक्त बड़ी चूक सामने आई जब वह एक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए कार से जा रहे थे. तभी स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया के छात्र बड़ी संख्या में छात्र उनकी कार के सामने आ गए और उन्होंने खान को काला झंडा दिखाया. इस घटना के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने उनकी सुरक्षा की कैटेगरी Y+ से बढ़ाकर ‘जेड प्लस’ कर दी. बता दें कि देश में Z+ सिक्योरिटी अव्वल मानी जाती है. यह सुरक्षा की सर्वोच्च श्रेणी है. Z+ सिक्योरिटी के तहत 10 से ज्यादा एनएसजी कमांडो और पुलिस कर्मी समेत 55 ट्रेंड जवान मिलते हैं. जिस किसी को यह सिक्योरिटी मिलती है, ये सभी कमांडो 24 घंटे उस व्यक्ति के चारों ओर पैनी नजर रखते हैं. सुरक्षा में तैनात हर कमांडो मार्शल आर्ट का स्पेशलिस्ट होता है. ये आधुनिक हथियारों से लैस होते हैं.