डॉ जयंत जिज्ञासु
समाजवाद के प्रखर पक्षधर रहे शरद यादव का जन्म 1 जुलाई 1947 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद (अब नर्मदा पुरम) जिले की बाबई तहसील के एक छोटे-से गांव आंखमऊ के एक किसान नंदकिशोर यादव व सुमित्रा यादव के घर हुआ था. ग्रामीण परिवेश में पले-बढ़े शरद यादव की शिक्षा-दीक्षा मध्य प्रदेश की संस्कारधानी कहे जाने वाले जबलपुर में हुई. उन्होंने जबलपुर के राजकीय इंजीनियरिंग कॉलेज से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की. पढ़ाई में अव्वल रहने वाले शरद यादव गोल्ड मेडल से भी नवाजे गये. उन्होंने जबलपुर से छात्र राजनीति में कदम रखा. वे 1970 में जबलपुर विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष रहे. महान समाजवादी नेता डॉ राममनोहर लोहिया को अपना आदर्श बनाने वाले शरद यादव ने मात्र 27 वर्ष की उम्र में 1974 में पहली बार जबलपुर से लोकसभा का उपचुनाव लड़ा और ऐतिहासिक जीत दर्ज की. उन्हें दादा धर्माधिकारी की सलाह पर लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने जनता प्रत्याशी (पीपल’स कैंडिडेट) बनाया, और चुनाव चिह्न था- हलधर किसान. जब देश में लोकसभा का कार्यकाल बढ़ाया गया, तो विरोधस्वरूप इस्तीफा देने वाले सिर्फ दो सांसद थे- मधु लिमये और शरद यादव. तब शरद यादव की प्रशंसा करते हुए जयप्रकाश नारायण ने उन्हें पत्र लिखा:
प्रिय शरद,
तुमने लोकसभा से त्यागपत्र देकर त्याग का जो साहसपूर्ण उदाहरण प्रस्तुत किया है, उसकी जितनी प्रशंसा की जाए थोड़ी है. देश के नौजवानों ने तुम्हारे इस क़दम का हृदय से स्वागत किया है, जो इस बात का सबूत है कि युवा वर्ग में त्याग, बलिदान के प्रति आदर की भावना कायम है. तुम्हारे इस कदम से लोकतंत्र के लिए संघर्षशील हजारों युवकों को एक नयी प्रेरणा मिली है. मेरा विश्वास है कि इस उदाहरण से उनमें वह सामूहिक विवेक जाग्रत होगा जो लोकतंत्र के ढांचे में पुनः प्राण-प्रतिष्ठा करने के लिए आवश्यक है.
मैं तुम्हें अपनी हार्दिक शुभेच्छाएं और आशीर्वाद भेजता हूं.
तुम्हारा सस्नेह,
जयप्रकाश
शरद यादव पहले नेता, जो आपातकाल के पहले भी मीसा के तहत जेल भेजे गये
शरद यादव का जीवन घटनाओं से भरा है. मीसा में वे दो बार बंद रहे. कुल 18 महीने की सजा भोगी. वे पहले नेता हैं, जो आपातकाल के पहले भी मीसा के तहत जेल भेजे गये. विभिन्न आंदोलनों में वे मध्य प्रदेश के नरसिंहगढ़, जबलपुर, इंदौर, विलासपुर, बालाघाट, सिवनी, भोपाल व रीवा, उत्तर प्रदेश के एटा तथा चंडीगढ़ के जेलों में रहे. जेपी आंदोलन के वे यशस्वी सेनानी रहे. तेजतर्रार भाषणों की शैली ने उन्हें जननायक बना दिया था और वे 1977 में छठवीं लोकसभा के लिए दुबारा जबलपुर से सांसद चुने गये.
शरद यादव साल 1978 में जनता पार्टी के यूथ विंग युवा जनता के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने
साल 1978 में वे जनता पार्टी के यूथ विंग युवा जनता के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने और 1980-84 तक इस पद पर रहे. वर्ष 1985 में वे लोक दल के राष्ट्रीय महासचिव बने. साल 1980 में जबलपुर से पराजय के बाद संजय गांधी के असामयिक निधन के चलते अमेठी उपचुनाव में वे चौधरी चरण सिंह के कहने पर राजीव गांधी के खिलाफ विपक्ष के साझा प्रत्याशी बने. वर्ष 1984 में इंदिरा सहानुभूति लहर में बदायूं से हारने के बाद 1986 में लोकदल की ओर से वे पहली बार राज्यसभा के सदस्य चुने गये.
शरद यादव 1989 से 90 तक विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार में कपड़ा और फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्रीज विभाग के मंत्री बने
वर्ष 1988 में लोकदल, जनमोर्चा व जनता पार्टी के विलय के फलस्वरूप बने जनता दल के गठन में चौधरी देवीलाल, वीपी सिंह, चंद्रशेखर व शरद यादव की अहम भूमिका थी. शरद यादव को जनता दल का महासचिव बनाया गया. साल 1989 में उत्तर प्रदेश के बदायूं से लोकसभा के लिए वे निर्वाचित हुए. वे 1989 से 90 तक विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार में कपड़ा और फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्रीज विभाग के मंत्री बने. यह उनके राजनीतिक जीवन का उत्कर्ष था, जब वे मंडल कमीशन की एक अहम सिफारिश लागू कराने वाले सूत्रधार बने. मधेपुरा के मुरहो से उन्होंने मंडल रथ निकाल कर उत्तर भारत में लोगों की सुषुप्त चेतना को जाग्रत करने का काम किया और मंडल मसीहा कहलाये.
1990 को पटना के गांधी मैदान में शरद यादव ने दिया था ऐतिहासिक भाषण
प्रधानमंत्री वीपी सिंह समेत भारत सरकार के कई मंत्रियों की मौजूदगी में आठ अक्टूबर 1990 को पटना के गांधी मैदान में जनता दल की रैली में शरद यादव ने कहा था, ‘जनता दल ने अपने वायदे के मुताबिक हजारों सालों के शोषित पिछडों को आरक्षण देकर न केवल अवसरों में भागीदारी की है, बल्कि हमने उनकी सुषुप्त चेतना और स्वाभिमान को भी जगाने का काम किया है. जो हाथ अकलियतों के खिलाफ उठे, उन्हें थाम लो. तुम्हारे इस आंदोलन में अकलियतों का साथ कारगर साबित होगा.’ उसी रैली में लालू प्रसाद ने कहा था, ‘चाहे आसमान धरती पर गिर जाए या धरती आसमान में लटक जाए, मंडल कमीशन लागू होकर रहेगा. इस पर हम कोई समझौता करने वाले नहीं.
मैं तो किसान-मजदूर का बेटा हूं
शरद यादव कहते थे, ‘हमारे जैसा आदमी मन में कल्पना करता है कि मरने के बाद नहीं कुछ पाना है, जिंदा रहते सब चीज ठीक करना है. जो लोग मेरे बारे में कहते हैं, जोड़-तोड़, फलाना-ढिमका, ये सब गलत शब्द हैं मेरे बारे में… मैं तो किसान-मजदूर का बेटा हूं, इस जाति व्यवस्था, सामाजिक-आर्थिक जो गैरबराबरी है, उसके खिलाफ संघर्षरत एक संग्रामी सिपाही हूं.’ वर्ष 1991 में शरद यादव जनता दल संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष बने. साल 1991 में बदायूं से आश्चर्यजनक हार के बाद उसी वर्ष वे मधेपुरा से 10वीं लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए. दो साल बाद वे जनता दल का प्रमुख चेहरा बने और जॉर्ज फर्नांडिस को हरा कर जनता दल पार्लियामेंट्री पार्टी के नेता बने. शरद यादव 1995 में जनता दल के कार्यकारी अध्यक्ष बने. उन्होंने अपने जीवन में नैतिक व सैद्धांतिक आग्रह का पालन हमेशा किया. जब 1995 में जैन हवाला मामले में उनका नाम उछला, तो उन्होंने लोकसभा की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया और कहा कि जब तक वे बेदाग नहीं साबित हो जाते, सदन में कदम नहीं रखेंगे. इस वजह से 1996 में गठित यूनाइटेड फ्रंट की सरकार में वे मंत्री भी नहीं बने. पर, उस फ्रंट के आकार लेने में उनकी महती भूमिका रही. वे 1996 में एक बार फिर मधेपुरा से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए और संसद की वित्त समिति के प्रमुख बने.
1999 में लोकसभा के लिए पुनः मधेपुरा निर्वाचित हुए
इस तरह शरद यादव उन चुनिंदा पांच राजनेताओं में रहे, जिनको देश के तीन राज्यों से चुन कर लोकसभा पहुंचने का गौरव हासिल हुआ था. इस सूची में उनके अलावा पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, नरसिम्हा राव और अटल बिहारी वाजपेयी तथा पूर्व स्पीकर मीरा कुमार शामिल हैं. वर्ष 1997 में वे जनता दल के पूर्णकालिक अध्यक्ष बने तथा 1998 में हार के बाद 1999 में लोकसभा के लिए पुनः मधेपुरा निर्वाचित हुए. साल 1999 में जनता दल में एक और टूट हुई. देवेगौड़ा ने जनता दल (सेक्युलर) बना लिया और शरद यादव के नेतृत्व में जनता दल एवं रामकृष्ण हेगड़े की पार्टी लोकशक्ति का विलय हो गया, और जनता दल यूनाइटेड अस्तित्व में आया.
साल 1999 में शरद यादव राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार का हिस्सा बने और अटल सरकार में 1999 से 2001 तक नागरिक उड्डयन विभाग के मंत्री, 2001 से 2002 तक श्रम मंत्री व 2002 से 2004 तक खाद्य, उपभोक्ता मामले एवं सार्वजनिक वितरण विभाग के मंत्री रहे. वर्ष 2003 में जनता दल यूनाइटेड और समता पार्टी के विलय के बाद शरद यादव लगातार 2016 तक जनता दल (यू) के अध्यक्ष बने रहे. वे 2009 में एनडीए के कार्यकारी संयोजक बने और 2010 से 2013 तक संयोजक के रूप में काम करते रहे. साल 2004 में मधेपुरा से हार के बाद वे दूसरी बार राज्यसभा सदस्य बने. साल 2009 में वे सातवीं बार लोकसभा के सदस्य निर्वाचित हुए और संसद की शहरी विकास समिति के चेयरमैन बने. साल 2012 में संसद में उनके बेहतरीन हस्तक्षेप के लिए उन्हें उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार से नवाजा गया. 2014 में वे तीसरी बार और 2016 में चौथी बार राज्यसभा के सदस्य हुए.
क्या उन्हें अपने फैसले पर कभी अफसोस…
एनडीए में शामिल होने के लेकर जब मैं उन्हें कुरेदने की कोशिश करता था कि क्या उन्हें अपने फैसले पर कभी अफसोस होता है, तो वे थोड़ा रुक कर गहरी सांस लेते हुए कहते थे, ‘इतिहास में दुविधा के लिए कोई जगह नहीं हुआ करती. इतिहास बहुत निष्ठुर होता है, निर्मम मूल्यांकन करता है. उस वक्त एनडीए के साथ नहीं जाने का देवेगौड़ा जी का निर्णय सही था, मैं गलत था.’ यह अहसास उनके आत्मनिरीक्षण की प्रकृति का सूचक है. साल 2017 में शरद यादव ने विपक्षी दलों को गोलबंद कर ‘साझा विरासत बचाओ अभियान’ शुरू किया, जिसके सम्मेलन दिल्ली, मुंबई, जयपुर, इंदौर आदि शहरों में आयोजित हुए. वे 2019 का लोकसभा चुनाव हार गये. मार्च 2022 में शरद यादव ने लोकतांत्रिक जनता दल का विलय लालू प्रसाद नीत राष्ट्रीय जनता दल में करते हुए कहा कि अब समाजवादी राजनीति को तेजस्वी यादव आगे ले जायेंगे.
जब वे मंडल रथ लेकर निकले थे…
मंडल आंदोलन के दौरान जब वे मंडल रथ लेकर निकले थे, तो उत्तर भारत के कोने-कोने में उनका दार्शनिक भाषण हुआ. उसकी एक झलक उनकी इस तकरीर में मिलती है, ‘जितने लोग यहां आये हो, अब लड़ाई महाविद्यालय में नहीं, अब लड़ाई ले जाना है हल पर, लड़ाई ले जाना है खेत पर, खलिहान पर. लड़ाई ले जाना है हिंदुस्तान के बाजार में, झुग्गी और झोपड़ी में. वहीं है आपका आदमी, वहीं है इस देश का मालिक.’ राजनीति के माहिर खिलाड़ी होने के साथ वे एक व्यावहारिक व संवेदनशील व्यक्तित्व के धनी थे. राजनीति में सक्रियता की वजह से उन्होंने थोड़ी देर से सही, 40 वर्ष की उम्र में डॉ रेखा यादव से विवाह किया. शरद यादव जिंदा आदमी की इबादत के हामी थे. वे संत प्रवृत्ति के लोगों व समाज सुधारकों को गुनते रहते थे. कबीर उन्हें बेहद प्रिय थे, और संचय व संग्रह की प्रवृत्ति से कोसों दूर शरद यादव अक्सर अपने भाषणों में मार्क्स और कबीर को उद्धृत करते थे. उनका मानना था कि भारत में जातियां सामाजिक कोढ़ है. वे हमेशा जमात बनाने के पक्षधर रहे, जो इंसानियत को सर्वोपरि समझे. दोस्ती निभाने में उनका कोई सानी नहीं था. हर पार्टी में उनके घनिष्ठ मित्र थे. राजनीति के सितारे रहे शरद यादव 12 जनवरी 2023 को देश और दुनिया को अलविदा कह गये.
सचमुच, शरद जी अंतिम सांस तक लड़ते रहे लोगों के लिए. जिस दिन उन्होंने आखिरी सांस ली, उस रोज भी राजस्थान के एक बहुत परेशान आदमी के लिए चिट्ठी लिखी. शरद जी ने राष्ट्र-निर्माण हेतु वंचित समाज के लिए जो कुछ किया, उससे उऋण नहीं हुआ जा सकता. आज उनकी पहली बरसी है. वे हमारे बीच न होकर कहीं ज्यादा हैं.