Durga puja: सुपौल की मां वैष्णवी की महिमा है अपरंपार, यहां भक्तों की हर मुरादें होती है पूरी
Shardiya Navratri 2022: सुपौल मुख्यालय स्थित सार्वजनिक दुर्गा मंदिर में स्थापित वैष्णवी मां दुर्गे की महिमा अपरंपार है. मान्यता है कि जो भक्त सच्चे दिल से मां वैष्णवी दुर्गा माता से मन्नत मांगते हैं मां उनकी मुराद पूरा करती है
Bihar durga puja: सुपौल, त्रिवेणीगंज: मुख्यालय स्थित सार्वजनिक दुर्गा मंदिर में स्थापित वैष्णवी मां दुर्गे की महिमा अपरंपार है. मान्यता है कि जो भक्त सच्चे दिल से मां वैष्णवी दुर्गा माता से मन्नत मांगते हैं मां उनकी मुराद पूरा करती है. मां दुर्गा की महिमा की ख्याति दूर-दूर तक फैली है.
1966 की जा रही है पूजासार्वजनिक दुर्गा मंदिर के स्थापना के बाबत उमाशंकर गुप्ता ने बताया कि वर्ष 1966 में कुछ ग्रामीणों ने उनके पिता स्व. लक्ष्मी प्रसाद साह से उनके घर के बगल वाली उनकी जमीन में दुर्गा मंदिर की स्थापना के लिए जमीन देने का आग्रह किया. उनके पिताजी के द्वारा यह कहते हुए इंकार कर दिया गया कि उक्त जमीन में वह स्वयं बजरंगबली मंदिर का स्थापना करेंगे. लेकिन उसी रात माता तारा देवी को मां दुर्गे ने स्वप्न दिया कि तुम हमको जगह दो. सुबह होते हीं उनकी माता ने स्वप्न की बात उनके पिता से बोली और मां दुर्गे के मंदिर स्थापना के लिए जमीन देने का आग्रह किया.
उनके पिता भी संयुक्त परिवार के सदस्यों से दुर्गा मंदिर स्थापना के लिए जमीन देने का प्रस्ताव रखे और सभी जमीन देने को राजी हो गए. तब उनके पिता समेत संयुक्त परिवार के अन्य सदस्य ग्रामीणों के पास पहुंचकर दुर्गा मंदिर के लिए जमीन देने का सहमति प्रदान किया. लेकिन इस शर्त पर कि उसी जमीन में वह स्वयं बजरंगबली के मंदिर का स्थापना करेंगे और दुर्गा माता का स्थापना ग्रामीणों के सहयोग से किया गया. बताया कि स्थापना काल में ईंट और चदरे के मंदिर भवन में मां दुर्गे की पूजा अर्चना प्रारम्भ की गई और समय बीतने के साथ ही वर्ष 1995 में सार्वजनिक सहयोग से भव्य दुर्गा मंदिर का निर्माण कराया गया.
हाथों पर कलश स्थापित कीदुर्गा पूजा को लेकर रविवार को बेल तोड़ी के साथ ही मां दुर्गे के आगमन के साथ मंदिर का पट खोल दिया गया. मां दुर्गे की प्रतिमा के दर्शन और पूजा अर्चना के लिए भीड़ बढ़नी शुरू हो गई है. सार्वजनिक दुर्गा मंदिर प्रांगण में प्रखंड क्षेत्र के महेशुवा गांव निवासी सूर्य नारायण चौधरी मन्नत पूरा होने पर अपने हाथों पर कलश स्थापित कर मां दुर्गे की आराधना में लीन हैं.