चचरी पुल बना आवागमन का एकमात्र साधन
सुप्पीः सरकार द्वारा ग्रामीण सड़क निर्माण पर करोड़ों रुपये खर्च किये जाने के बाद प्रखंड के दर्जनों सड़क व पुल- पुलिया निर्माण का रास्ता देख रही है. नक्सल प्रभावित इस प्रखंड में सड़क व पुल-पुलियों के निर्माण के अभाव में लोग अपने- आप को असुरक्षित महसूस कर रहें है. इसी का परिणाम है कि प्रखंड […]
सुप्पीः सरकार द्वारा ग्रामीण सड़क निर्माण पर करोड़ों रुपये खर्च किये जाने के बाद प्रखंड के दर्जनों सड़क व पुल- पुलिया निर्माण का रास्ता देख रही है. नक्सल प्रभावित इस प्रखंड में सड़क व पुल-पुलियों के निर्माण के अभाव में लोग अपने- आप को असुरक्षित महसूस कर रहें है. इसी का परिणाम है कि प्रखंड क्षेत्र में अपराधियों द्वारा बड़ी से बड़ी घटना को अंजाम देने के बाद भी पुलिस समय से नहीं पहुंच पाती है.
साथ ही प्रखंड क्षेत्र का विकास भी अवरुद्ध है. कंसारा- सिमरदह पथ, जो सोनौल सुब्बा, कंसारा व सिमरह समेत आधा दर्जन गांव को प्रखंड मुख्यालय के मुख्य सड़क से जोड़ती है, वर्ष 1993 के आयी भीषण बाढ़ के समय ही पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया. प्रखंड में दर्जनों सड़कें बनी लेकिन यह सड़क आज भी निर्माण का बाट जोह रही है. आलम यह है कि आज के आधुनिक युग में भी चचरी पुल के सहारे आवागमन को लाचार हैं.
लोग आज भी अपने जान को जोखिम में डाल कर साइकिल, बाइक व पैदल आवागमन के लिए इसी रास्ते आने- जाने को मजबूर हैं. केंद्र व राज्य सरकार की ओर से बार- बार यह घोषणा की जा रही है कि जिले को नक्सल प्रभावित घोषित किया गया है और अब 250 परिवार के आबादी वाले क्षेत्र को भी मुख्य सड़क से जोड़ा जायेगा. लेकिन इस दृश्य को देख कर सरकार की घोषणाएं भी हास्यास्पद जान पड़ने लगी है. इस संबंध में भाजपा नेता वीरेंद्र सिंह व समाजसेवी जटा शंकर आत्रेय कहते हैं कि समस्या को लेकर सभी स्थानीय जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों से मिलने के बावजूद आज तक समाधान को लेकर कोई पहल शुरू नहीं की गयी, इससे क्षेत्र के लोगों में काफी आक्रोश है.
बताया कि इसके अलावे सोनौल सुब्बा, अख्ता बाजार जानेवाली सड़क, मनियारी- जमला सड़क, नरहा- रामपुर सड़क, रामनगर से गम्हरिया जाने वाली सड़क समेत कई ऐसे सड़क है जो 1993 के बाढ़ मे हीं बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गये और उक्त सड़कों पर मौजूद बड़े- बड़े गढ़े खास कर बरसात के दिनों में लोगों के लिए जानलेवा बनी है. लेकिन विकास के इस युग में भी इन सड़कों की ओर न किसी जनप्रतिनिधियों का ध्यान है और नहीं प्रशासनिक अधिकारियों का हीं. आलम यह होता जा रहा है कि इन सड़कों पर न कोई सरकारी वाहन की व्यवस्था है और नहीं प्राइवेट वाहन मालिकों की कोई खास रुचि. इससे क्षेत्र के लोगों को आवागमन की चिंता हमेशा सताती रहती है और काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है.