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सरकंडे पर वस्त्र चढ़ा कर की जाती थी पूजा-अर्चना

शिवहरः जिले में दुर्गा पूजा की तैयारी में लोग जूट गये हैं. यूं तो भगवती दुर्गा की पूजा की परंपरा अति प्राचीन है, किंतु शिवहर जिले के की जाती रही है. कहा जाता है कि जब शिवहर एवं मधुवन दरबार में भगवती दुर्गा की पूजा अर्चना की जाती थी, उस समय बहुआरा गांव के लोग […]

शिवहरः जिले में दुर्गा पूजा की तैयारी में लोग जूट गये हैं. यूं तो भगवती दुर्गा की पूजा की परंपरा अति प्राचीन है, किंतु शिवहर जिले के की जाती रही है. कहा जाता है कि जब शिवहर एवं मधुवन दरबार में भगवती दुर्गा की पूजा अर्चना की जाती थी, उस समय बहुआरा गांव के लोग सरकंडे के ऊपर वस्त्र आवरण चढ़ा कर भगवती दुर्गा की पूजा करते थे. बहुआरा में पूजा शुरू होने के पीछे एक कहानी है. कहा जाता है कि एक नागा संत ने रामवन के जमींदारों को दुर्गा पूजा करने को कहा. चंदा भी इक्कठा किया गया, किंतु चंदा को लेकर विवाद हो गया. इससे क्षुब्ध बाबा ने गरीबी में जी रहे बहुआरा गांव के लोगों से भगवती दुर्गा की पूजा करने को कहा. फिर गांव के लोगों ने चंदा इक्कठा कर भगवती दुर्गा की पूजा अर्चना की.

डुमरी गांव निवासी तत्कालीन पंडित बिलट झा ने बिना दक्षिणा के भी भगवती की पूजा कराने को तैयार हो गये. फिर निष्ठा से पूजा शुरू हुई. गांव वालों का मानना है कि गांव की आज की खुशहाली भगवती दुर्गा की देन है. पूजा समिति के अध्यक्ष नागेंद्र सिंह बताते हैं कि इस वर्ष का बजट डेढ़ लाख का है. इसका पूरा भार ग्रामीणों पर है. इस गांव के लोग बाहर से दबाव बना कर या जबरदस्ती चंदा वसूली में विश्वास नहीं करते हैं.

ग्रामीण समिति में सभी जाति और वर्ग के लोगों को शामिल किया गया है, ताकि पूजा में शांति एवं सौहार्द कायम है. फिलहाल मंदिर में प्रतिमा का निर्माण पूरा करा लिया गया है. रंग-रोगन का कार्य बाकी है. गांव के भरत सिंह ने मन्नत पूरा होने के कारण 11 वर्ष तक मूर्ति निर्माण एवं पूजा का संकल्प ले रखा है. पिछले वर्ष से उन्हीं के द्वारा मूर्ति निर्माण एवं पूजन का खर्च वहन किया जा रहा है.

सांस्कृतिक कार्यक्रम का दायित्व समिति पर है. मंदिर का पक्का भवन निर्माण गिरिजा नंदन सिंह द्वारा किया गया था. वहीं मंदिर का जीर्णोद्धार डॉ शालीग्राम सिंह द्वारा कराया गया है. विधि विधान व लोक भावनाओं से जुड़े इस मंदिर में पूजा-अर्चना से मनोकामना पूर्ण होती है.

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