शिवहर से शैलेंद्र
शिवहर बाजार में सड़क पर पैदल चलते कृष्णदत्त से मुलाकात होती है. वे शिवहर जिले की परिभाषा बताते हैं – एक जिले की सड़क. बोले, शिवहर जिले के साथ हमेशा सौतेला व्यवहार होता रहा है. यहां कोई बड़ा नेता नहीं आता है. चुनाव के दौरान ही इक्का- दुक्का सभाएं होती है. सीतामढ़ी आकर ही नेता मान लेते है कि शिवहर का दौरा हो गया.
पांच प्रखंडों को मिला कर शिवहर जिले का निर्माण छह अक्तूबर, 1994 को हुआ था. रघुनाथ झा की यह मांग थी. जिले का तमगा भले ही शिवहर के पास है, लेकिन बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं. न ये जिला रेल लाइन से जुड़ा है और न ही यहां पर डिग्री कॉलेज है. नवोदय विद्यालय का अपना भवन नहीं है. शिवहर विधानसभा क्षेत्र में चार प्रखंड शिवहर, पिपराही, पुरनहिया व डुमरी-कटसरी आते हैं, जबकि तरियानी का इलाका सीतामढ़ी की बेलसंड सीट में पड़ता है.
जीतेंद्र कुमार व सतीश कुमार शहर की समस्याओं के बारे में बताते हैं. सतीश कहते हैं, क्या कहेंगे सर. शिवहर तो नेतृत्वविहीन जैसा लगता है. यहां पर बाहर से नेता लड़ने आते हैं. सतीश अपनी बात पूरी कर पायें, इससे पहले जीतेंद्र कुमार बोल पड़ते हैं. यहां अफसरों का बोलबाला है. क्या कहेंगे हम चुनाव के बारे में?
इसी बीच बाजार के रहनेवाले राम कुमार से भेंट हो जाती है. वे बोल पड़ते हैं कि शिवहर जिला बना या नहीं. इससे कोई भला नहीं हो रहा है. हम लोग तो परेशान हो रहे हैं. अब शहर से होकर एनएच बन रहा है. रास्ते में पड़नेवाले घरो-झोपड़ियों को तोड़ा जायेगा.
अब हम जीरो माइल चौक पर खड़े हैं. इसे शिवहर का प्रवेश द्वार भी कह सकते हैं. यहीं से एक रास्ता सीतामढ़ी, दूसरा मुजफ्फरपुर और तीसरा मोतिहारी की ओर जाता है. तीनों रास्ते ऐसे हैं, जिनका उपयोग यहां के लोग परदेश जाने के लिए करते हैं. जीरो माइल विस्थापन का मूक गवाह है.
जिला परिषद सदस्य रहे अजब लाल चौधरी को इस बात का अफसोस है कि जिले के नेता अपनी बात नहीं रख पाते हैं. बात पुल-पुलिया व सड़क तक ही रह जाती है, जबकि जिले की सबसे बड़ी समस्या यहां डिग्री कॉलेज का नहीं होना है. बागमती नदी के पानी का उपयोग हो सकता है, लेकिन कोई व्यवस्था नहीं है.