दूषित पानी पीने को मजबूर हैं लोग

शिक्षा का हाल भी है बेहाल विद्युत आपूर्ति व सड़क सुविधाओं से वंचित चापाकल से िगरता है मटमैला पानी शिवहर : जिले के गोपैया मखतव के समीप बसे अनुसूचित जाति के लोग प्रदूषित पानी पीने को बेबस हैं. आजादी के दशकों बाद भी एक बूंद स्वच्छ पानी पीने का सपना साकार नहीं हो सका है. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 11, 2016 3:25 AM

शिक्षा का हाल भी है बेहाल

विद्युत आपूर्ति व सड़क सुविधाओं से वंचित
चापाकल से िगरता है मटमैला पानी
शिवहर : जिले के गोपैया मखतव के समीप बसे अनुसूचित जाति के लोग प्रदूषित पानी पीने को बेबस हैं. आजादी के दशकों बाद भी एक बूंद स्वच्छ पानी पीने का सपना साकार नहीं हो सका है. आर्थिक तंगहाली से जूझ रहे गांव के लोग अधिक गहराई तक चापाकल का पाइप गड़वा कर स्वच्छ पानी पीने का सपना साकार करने में असमर्थ हैं.
प्लास्टिक का पाइप जैसे तैसे गड़वा कर अपनी प्यास बुझा रहे हैं. ग्रामीण विशुन पासवान, हीयालाल पासवान का कहना है कि चापाकल से गंदा व पीला पानी आता है, लेकिन लाचारी में वही पानी पीने को बेबस हूं.
पंचायती राज गठन के बाद आस जगी कि हम लोगों की समस्या का समाधान होगा, लेकिन चुनाव जीतने के बाद मुखिया सुधि लेने की जरूरत महसूस नहीं की. एक सरकारी कल जैसे तैसे गाड़ा भी गया तो उसमें से बालू आता है. प्लास्टिक के पाइप गाड़कर हीरा लाल पासवान, व जवाहीर पासवान ने नीजी चापाकल गड़वाया है.
उसी के सहारे पीने के पानी का काम चल रहा है. कहा कि बीच गांव से जमीन की कमी के कारण मखतव के समीप आकर बसे हैं. यहां गांव से बाहर निकलने के लिए एक सड़क तक नहीं है. पगडंडी के सहारे ही जिंदगी कट रही है. विद्युत आपूर्ति बराबर बाधित रहता है.
जॉब कार्ड बना है, पर गांव में अनुसूचित जाति के लोगों का कार्ड मुखिया जी के पास जमा हो गया. उसके बाद कार्ड मिलने का इंतजार कर रहे हैं. करीब चार वर्ष तलाब खोदाई के समय काम मिला था. उसके बाद 100 दिन काम का सरकारी वादा महज छलावा बनकर रह गया है.
खिड़की किवाड़ विहीन हैं विद्यालय के कमरे
काम के बदले अनाज योजना से करीब वर्ष 2000 में निर्मित पुराना दो कमरों का विद्यालय भवन खिड़की व किवाड़ विहीन है. जबकि दो कमरों का एक अन्य भवन का छत बरसात में रिसता है. हालांकि पंचायत से छत की मरम्मती का कार्य कुछ दिन पूर्व कराया गया था. प्रभात खबर की टीम जब प्राथमिक विद्यालय गोपैया मखतब में पहुंची तो प्राचार्य अफरोज आलम अपने एक सहायक शिक्षक के साथ छात्रवृत्ति का एडवाइस बनाने में जुटे थे.
एक महिला शिक्षिका वर्ग 1 से पांच तक के विद्यालय पांगण में बैठे छात्रों के पाठन पाठन की खानापूर्ति में जुटी थी. टीम को देखते ही प्राचार्य ने कहा बड़ा कठिन काम है एडवाइस तैयार कर सीडी तैयार कराना है तभी छात्रवृत्ति का भुगतान होगा. छात्र बेतरतीब अपनी पढ़ाई की प्रक्रिया पूरी कर रहे थे. विद्यालय में नामांकित करीब 142 छात्रों को पढ़ाने के लिए इस विद्यालय में तीन शिक्षक पदस्थापित किये गये हैं. काम के बोझ से दबे प्राचार्य अपनी पीड़ा का बखान करते हैं.
ऐसे में शिक्षा व्यवस्था का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है. विद्यालय में वर्ग पांच के छात्र को मुख्यमंत्री का नाम पता था, लेकिन प्रधानमंत्री का नाम नहीं बता सका. विद्यालय से मुख्य पथ तक जाने के लिए सड़क तक नहीं हैं.
ग्रामीण शिक्षकों का हो तबादला
समाजसेवी ग्रामीण मो मकसूद ने कहा कि सरकारी स्कूलों में शिक्षा व्यवस्था चरमरा गयी है. प्राचार्य खिचड़ी से लेकर पोशाक, छात्रवृत्ति, भवन निर्माण का गणित बनाने में लगे हैं. ऐसे में छात्र को कौन गणित पढ़ाएगा. कहा कि गांव के शिक्षक विद्यालयों में पदस्थापित किए गए हैं. अपना गांव अपना स्कूल फिर पढ़ाई काहे का. इसी व्यवस्था से स्कूलों में अनुशासन समाप्त हो गया है. इन ग्रामीण शिक्षकों का अन्यत्र तबादला किया जाना चाहिए. कुछ इसी तरह की समस्या से यह विद्यालय भी जूझ रहा है.
विद्यालय की स्थापना 1964 में की गई थी. दव्वीर अहमद ने दो कट्ठा जमीन दान दिया था. इधर मुखिया विनोद ठाकुर ने कहा कि पेयजल के लिए चापाकल योजना मद् में राशि उपलब्ध नहीं है. वही सड़क की व्यवस्था आसपास निजी लोगों के जमीन होने के कारण नहीं हो सकती है.

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