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मातृभूमि पर जान देने वाले शहीदों को शत-शत नमन

शिवहर : आजादी की लड़ाई में शिवहर के कई स्वतंत्रता सेनानियों की सांसे अंग्रेजी जुल्म से रूक गयी. किंतु साथियों के शहादत के बाद भी आजादी के लिए बढ़ते कदम कभी रूके नहीं बल्कि आगे बढ़ते रहे. जान दे दी किंतु आन-वान शान के साथ अंग्रेजी सत्ता को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए वीरता […]

शिवहर : आजादी की लड़ाई में शिवहर के कई स्वतंत्रता सेनानियों की सांसे अंग्रेजी जुल्म से रूक गयी. किंतु साथियों के शहादत के बाद भी आजादी के लिए बढ़ते कदम कभी रूके नहीं बल्कि आगे बढ़ते रहे. जान दे दी किंतु आन-वान शान के साथ अंग्रेजी सत्ता को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए वीरता के साथ लड़ाई लड़ते रहे. जिसने अंग्रेजी सत्ता की नींव हिला दी. आजादी की अंतिम लड़ाई भारत छोड़ों आंदोलन शिवहर व सीतामढ़ी में उग्र रूप से लड़ी गयी.

इस लड़ाई में शिवहर के छपड़ा गांव में अंग्रेजों के गोली से 10 सेनानी शहीद हो गये, लेकिन कांरवां आगे बढ़ता गया. स्वतंत्रता सेनानियों की मानें तो 7 अगस्त 1942 को मुंबई में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक हुई. जिसमें पंडित जवाहर लाल नेहरू के प्रस्ताव पर निर्णय लिया गया कि स्वराज प्राप्ति के लिए अहिंसात्मक तरीके से आंदोलन किया जाय.

वही 8 अगस्त को रात 11 बजे बैठक के दौरान सदस्यों को अगाह किया गया कि वे गांधी जी के 9 अगस्त को आने वाले आदेश की प्रतीक्षा करें. इसी बीच 9 अगस्त को 5:30 के करीब सुबह में गांधी जी को गिरफ्तार कर लिया गया. किंतु गांधी जी ने करो या मरो का संदेश छोड़ दिया. उसके बाद बंकिम कमेटी के सारे लोग गिरफ्तार कर लिये गये.

इधर शिवहर व सीतामढ़ी भी सुलगने लगा. इसी बीच 10 अगस्त को आंदोलन के प्राण कहे जाने वाले शिवहर के महुअरिया निवासी ठाकुर रामनंदन सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया. इसकी जानकारी रामनंदन सिंह के पिता ठाकुर नवाब सिंह को मिली तो उन्होंने अंग्रेजी हुकुमत का इंट से इंट बजा देने का संकल्प लिया.

इसी बीच 12 अगस्त 1942 को पटना सचिवालय पर झंडा फहराने के दौरान सात नौजवान अंग्रेजों की गोली से शहीद हो गये. इससे लोगों का आक्रोश बढ़ गया. शिवहर तपने लगा. चिनगारी 14 अगस्त 1942 को शिवहर में भी फूट पड़ी. पुलों को तोड़ दिया गया. टेलीफोन के तार काट कर संचार तंत्र को धवस्त कर दिया गया. यह आंदोलन सीतामढ़ी, बेलसंड़, पंथपाकड़, मेजरगंज, बैरगनिया, पुपरी, सोनबरसा में भी उग्र हो गया. ठाकुर नवाब सिंह के नेतृत्व में सेनानियों ने पुपरी थाना के दारोगा को थाना से खदेड़ दिया. जनसेवक के रूप में नंदकिशोर सिंह को थाना संभालने का कमान सौंपा गया. 24 अगस्त से अंग्रेजों ने दमनात्मक कारवाई शुरू किया. मुजप्फरपुर का एडीएम बैन गोरो फौज के साथ सीतामढ़ी पहुंचा.

उसके बाद दमन शुरू किया गया. सीतामढ़ी कांग्रेस कमेटी का कार्यालय, मोहन सिंह व बाबा नरहरिदास का आवास अंग्रेजों ने फूंक दिया. वही 3 सितंबर को एडीएम फौज लेकर शिवहर पहुंचा. गोरी पुलिस ने महुअरिया निवासी ठाकुर नवाब सिंह का पुश्तैनी मकान, गोला को आग के हवाले कर दिया. इसमें लाखों की क्षति हुई. लालगढ़ निवासी कीर्ति नारायण व बाबा रामबहादूर लाल को पकड़ कर काफी यातना दी. इधर रामनंदन सिंह के पुत्र गिरजानंदन सिंह भी आंदोलन में कूद पड़े.

अंदोलन काफी उग्र हो गया. नवाब सिंह नेपाल में जाकर भूमिगत होकर आंदोलन को वहीं से चलाने लगे. किंतु अंदोलनकारियों का उत्साह कम नहीं हुआ. उधर 30 अगस्त 1942 को अंग्रेजों ने तरियानी प्रखंड के छपड़ा गांव में मानवता को तार तार कर देने वाली कारवाई की. अंग्रेजी सिपाही से लोहा लेते हुए इस गांव के दस लोग शहीद हो गये.

किंतु हार नहीं मानी कदम बढ़ते रहे. अंग्रेजों की गोली से जयमंगल सिंह,शुकदेव सिंह, भूपन सिंह, नौजद सिंह, बंशी ततमा,परसत साह,सुंदर महरा, छठू साह,बलदेव, सुकन ठाकुर शहीद हो गये. जबकि बिकाउ कुर्मी,बुधन कुंहार,बुक्षावन राम,मुक्ति सिंह, राजेंद्र धानुक,युगुल बैठा पूजन सिंह, गुलजार सिंह, रामाश्रय सिंह,बंगाली महतो, मौजे सुढ़ी,चुलहाई ठाकुर, रामलोचन सिंह,रामदेव सिंह, रामपुकार ततमा आदि घायल हो गये. वही अंगेजों ने रामदेव सिंह व श्यामनंदन सिंह का घर लुट लिया. औरा के प्रदीप नारायण सिंह,पचड़ा के मुसाफिर सिंह व सरैया के ब्रह्मदेव नारायण का घर लूट कर कंगाल कर दिया. किंतु अंग्रेजों के विरूद्ध लड़ने वाले सेनानी का उत्साह कम नहीं हुआ. उन्होने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिये.

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