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महाशिवरात्रिः देकूली धाम में पूर्ण होती है सभी मनोकामनाएं

शिवहरः शिवहर से पांच किलो मीटर पूरब सीतामढ़ी पथ में देकूली स्थित बाबा भुनेश्वर नाथ मंदिर जिले की पौराणिक धरोहर के साथ जिलावासियों कीआस्था के केंद्र हैं. द्वापर काल में निर्मित इस मंदिर में शिवहर के पड़ोसी जिलों के साथ नेपाल तक के लोग पूजा अर्चना एवं जलाभिषेक करने आते हैं. इस मंदिर की धार्मिक […]

शिवहरः शिवहर से पांच किलो मीटर पूरब सीतामढ़ी पथ में देकूली स्थित बाबा भुनेश्वर नाथ मंदिर जिले की पौराणिक धरोहर के साथ जिलावासियों कीआस्था के केंद्र हैं. द्वापर काल में निर्मित इस मंदिर में शिवहर के पड़ोसी जिलों के साथ नेपाल तक के लोग पूजा अर्चना एवं जलाभिषेक करने आते हैं. इस मंदिर की धार्मिक महत्व के बारे में कहा जाता हैं कि यह मंदिर एक ही पत्थर को तराश कर बनाया गया हैं. इसमें स्थापित शिव लिंग भगवान परशुराम की तपस्या से प्रकट शिव की देन हैं. जो आदि काल से बाबा भुनेश्वर नाथ के नाम से प्रचलित हैं.

शिव लिंग के अरघा के नीचे अनंत गहराई हैं जिसे मापा नहीं जा सकता हैं. वहीं मंदिर के गूंबज के नीचे प्रस्तर में श्री यंग स्थापित हैं. मान्यता हैं कि जो कोई जलाभिषेक के बाद श्री यंग को नमस्कार करता हैं. उसकी सारी मनोकामना पूर्ण हो जाती हैं. जानकारों का कहना हैं कि 1956 में प्रकाशित अंग्रेजी गजट में इस धाम की चर्चा करते हुए उल्लेख किया गया था कि नेपाल के पशुपति नाथ एवं भारत के हरिहर क्षेत्र मंदिर के मध्य में देकुली बाबा भुनेश्वर नाथ मंदिर अवस्थित हैं. कोलकाता हाई कोर्ट के एक फैसले में भी ‘ अति प्राचीन बाबा भुवनेश्वर नाथ मंदिर देकुली धाम’’ उल्लेखित हैं. इस्ट इंडिया कंपनी के कार्यकाल में चौकीदारी रसीद पर भी इस मंदिर का उल्लेख मिलता था.

ग्रामीण बताते हैं कि मंदिर के पश्चिम एक तालाब हैं. जिसकी खुदाई 1962 ई में चैतंय अवतार जिले के छतौनी गांव निवासी महान संत प्रेम भिझू जी महाराज ने करायी थी. जिसमें द्वापर काल की दुर्लभ पत्थर एवं धातु की मूर्तियां प्राप्त हुई थी. जिसे मंदिर के प्रांगन में मुख्य द्वार के दाहिने तरफ अति प्राचीन मौलश्री वृक्ष के जड़ के पास स्थापित की गयी हैं.

जमीन के सामान्य स्तर से करीब 15 फिट ऊपर अवस्थित उक्त शिव मंदिर के उतर पश्चिम कोने में माता पार्वती, दक्षिण में भैरोनाथ एवं पूरब दक्षिण के कोण में हनुमान जी का मंदिर हैं. मंदिर के पूरब करीब 12 फिट के नीचे खुदाई करने पर ग्रेनाइट पत्थर से बने अवशेष प्राप्त होते हैं. कहा जाता हैं कि कुछ वर्षो पूर्व इस मंदिर के पश्चिम खुदाई में एक नरक काल प्राप्त हुआ था. जिसके अग्रबाहु की लंबाई करीब 18 इंच से अधिक थी. पुरातात्विक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण इस मंदिर के खुदाई पर फिलहाल रोक लगी हैं. इसके पौराणिक एवं धार्मिक महत्व के बारे में कहा जाता हैं कि भगवती सीता के साथ पाणि ग्रहण संस्कार के उपरांत जिस स्थान पर राम को परशुराम के कोप का शिकार होना पड़ा. वह जगह कोपगढ़ गांव के नाम से जाना जाने लगा. जहां परशुराम का मोह मंग हुआ. वहां मोहारी गांव बसा हुआ हैं. राम एवं परशुराम के आपसी प्रीति के पश्चात परशुराम ने राम को भुनेश्वर नाथ (शिव) के दर्शन कराये जिसके कारण शिव एवं हरि का यह मिलन क्षेत्र शिवहर के नाम से जाना जाने लगा. हालांकि शिव का घर से भी शिवहर नाम प्रचलित होने की बात कही जाती हैं. वही द्वापर काल में कुलदेव को द्रोपदी द्वारा संपूजित किये जाने के कारण इस जगह का नाम देकुली पड़ा.

हालांकि इस बारे में अन्य कई कथा प्रचलित हैं. धाम से सटे उतर में युद्धिष्ठिर के ठहरने के उपरांत 61 तालाब खुदवाये थे. जो विभिन्न नामों से प्रचलित था. जो बागमती नदी के कटाव में अस्तित्व हीन हो गया और पास का गांव धर्मपूर कहलाया. वर्ष 2007 में तत्कालीन डीएम विजय कुमार ने इस मंदिर की महंथों को जाना एवं जीर्ण शीर्ण हो रहे इस मंदिर के विकास एवं सौंदर्यीकरण प्रारूप तैयार की. इसके लिए स्थानीय लोगों की एक समिति बनायी गयी एवं देकुली धाम को पर्यटन स्थल बनाने का निर्णय लिया गया. इसमें व्यय राशि की प्राप्ति की जाने लगी.

डीएम एवं समिति के लोगों ने धार्मिक न्यास बोर्ड बिहार एवं भारत सरकार को प्रार्थना पत्र भेज कर इसके ऐतिहासिक संदर्भो को उजागर करते हुए इस शिव मंदिर को जानकी सर्किट एवं चित्र कुट सर्किट से जोड़ने का प्रयास किया गया. इस दिशा में कई महत्वपूर्ण कार्य संपन्न हुए. जिले के सार्वजनिक आस्था का यह केंद्र फिलहाल महंतों के चुंगल में सिसकिया ले रहा हैं. महंतो ने इसे कुल देवता का दावा कर उलझा दिया. इस सार्वजनिक स्थल को सार्वजनिक करार करने के लिए धार्मिक न्यास बोर्ड बिहार के पास मामला लंबित हैं.

हालांकि भक्तों के लिए श्रद्धा एवं भक्ति के साथ पूजा अर्चना करने में कोई व्यवधान नहीं हैं.शिवरात्रि, वसंत पंचमी, मकर संक्रांति के साथ प्रत्येक रविवार एवं अन्य शुभ अवसरों पर यहां श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती हैं. शादी, मुंडन, उपनयन संस्कार सहित विभिन्न शुभ कार्यक्रम यहां श्रद्धा एवं भक्ति के साथ संपन्न किये जाते हैं. भगवान शिव सभी की मनोकामना पूर्ण करते हैं.

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