काश!कोई विकल्प होता तो घर में ही मिलता रोजगार
बेबसी.पत्थर उद्योग चालू नहीं होने से बेरोजगारी का आलम शेखपुरा : दुनिया भर में आज मजदूर दिवस मनाया जा रहा है. मजदूरों को सामाजिक सुरक्षा से लेकर पलायन रोकने के लिए मंथन और चर्चा और मंथन भी लाजमी है. परंतु आज जो धरातल की स्थिति है वह काफी भयावह है. खास कर दो विधानसभा वाले […]
बेबसी.पत्थर उद्योग चालू नहीं होने से बेरोजगारी का आलम
शेखपुरा : दुनिया भर में आज मजदूर दिवस मनाया जा रहा है. मजदूरों को सामाजिक सुरक्षा से लेकर पलायन रोकने के लिए मंथन और चर्चा और मंथन भी लाजमी है. परंतु आज जो धरातल की स्थिति है वह काफी भयावह है.
खास कर दो विधानसभा वाले शेखपुरा इन दिनों रोजगार के बड़े संकटों से गुजर रहा है. जिले में रोजगार के प्रमुख व्यवस्थाओं पर अगर नजर डालें तब पत्थर उद्योग के लिए बंदोबस्ती के बाद कागजी खानापूर्ति में राज्य सरकार से ब्रेक लगा रखा है. मनरेगा योजना में भी पिछले एक साल से नियमित आवंटन का अभाव है.
सबसे अहम रोजगार के साधन किसानी भी प्राकृतिक आपदा के कारण तबाह हो गया. बची खुची उम्मीद निर्माण कार्य में भूकंप आने के बाद लोग सोचने को विवश है. चारों ओर जब रोजगार के साधनों पर ब्रेक लग चुका है. तब मजदूर एक बार फिर परदेश की राह ताकने को विवश है. सबसे बड़ी विडंबना यह भी है कि हर राजनैतिक दल और चुनावी एजेंडा हाथों को रोजगार देने,घोषणाओं और वादों का गवाह है. परंतु सच्चई है कि आज तक रोजगार की दिशा में क्षेत्र में निर्वाचित जनप्रतिनिधियों ने एक कदम भी नहीं उठा सकी है. पेट की आग बुझाने को लेकर आज मध्यम वर्गीय छोटे किसानों के बड़े कृषक भी पलायन करने को विवश है.
पहले से क्या रहे हैं रोजगार के साधन :जिले में रोजगार के साधनों पर अगर प्रकाश डालें तब कृषि प्रधान जिला होने के नाते खेती-बारी काफी अहम रही है. इसके बाद पत्थर उद्योग, मनरेगा, ईंट-भट्ठा भी गरीब और मजदूरों की जीविका के लिए रोजगार का बड़ा साधन रहा है. जिले में पत्थर उद्योग में लगभग 25 हजार मजदूरों को रोजगार का स्नेत रहा. जबकि खेतीबाड़ी में 30 हजार से अधिक मजदूर मनरेगा में जिले के अंदर 42 हजार सक्रिय जॉब कार्ड धारी है. ऐसे में ईंट भट्ठा भी लगभग तीन हजार मजदूरों को विभिन्न रूपों में रोजगार से जोड़ता रहा है.
क्या है स्थिति : जिले में रोजगार की स्थितियों पर अगर नजर डालें तब स्थितियां विपरीत है. बेमौसम बारिश की आपदा ने किसानों को भारी नुकसान पहुंचाया है. इसके पूर्व बाढ़ की तबाही ने किसानों की कमर तोड़ दी थी. आज बेरोजगारी के रूप में मजदूरों पर व्यापक असर डाल रहा है.
वहीं करीब तीन माह पूर्व जब जिले में पत्थर उद्योग को चालू करने में भूखंडों की नीलामी शुरू हुई तब जिले की अर्थव्यवस्था से लेकर रोजगार के लिए बड़ी उम्मीद जगी थी. परंतु कागजी प्रक्रियाओं के पेंचव में लोगों की उम्मीदें उलझ कर प्रक्रियाओं की पेंच में लोगों की उम्मीदें उलझ कर रह गयी है. जिले में मनरेगा की बदतर हालत तो ऐसी है कि जॉब कार्डधारी को रोजगार तो दूर उनके कमाये हुए लगभग 07 करोड़ का बकाया मजदूरी भुगतान नहीं किया जा सका है.
छिन रही बाजार की रौनक : जिले में रोजगार के अभाव में स्थिति आज ऐसी है कि लोग बड़े पैमाने पर रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों के लिए पलायन कर रहे हैं. महादलित टोलों के साथ-साथ मंझोले किसान के नौजवान भी पलायन करने को विवश है. इन दिनों शादी-विवाह लगन की चारों ओर धूम है. बावजूद इसके बाजारों में रौनक नाम की ची भी नहीं है. व्यवसायियों की मानें तब ऐसी मंडी पिछले 15 सालों में नहीं दिखी थी.
‘‘ जिले में मनरेगा योजना को लेकर पूर्व के बकाये का भुगतान की प्रक्रिया तेज है. योजना का सत्यापन कर जॉब कार्ड धारियों के खाते में सीधे बकाये मजदूरी का भुगतान होगा. इसके बाद निर्देश के आलोक में नयी योजना पंचायतों में खोली जायेगी.’’
ऋषिदेव शर्मा, डीडीसी, शेखपुरा