दो सौ साल पुरानी है स्वर्णकार दुर्गा समिति

शेखपुरा : करीब दो सौ साल पहले जब शहर की आबादी काफी कम थी तब यहां विशुन शर्राफ नामक आभूषण कारोबारी ने मड़पसौना मुहल्ले में मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की थी. इसके बाद उन्होंने लगभग 1956 में अपने द्वारा दान दी गयी जमीन पर उसी पूजा कमेटी ने स्वर्णकार टोले में प्रतिमा स्थापित की. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 17, 2015 2:21 AM

शेखपुरा : करीब दो सौ साल पहले जब शहर की आबादी काफी कम थी तब यहां विशुन शर्राफ नामक आभूषण कारोबारी ने मड़पसौना मुहल्ले में मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की थी.

इसके बाद उन्होंने लगभग 1956 में अपने द्वारा दान दी गयी जमीन पर उसी पूजा कमेटी ने स्वर्णकार टोले में प्रतिमा स्थापित की. खाली स्थान पर वर्णवाल समाज के लोगों ने मां दुर्गा की दूसरी प्रतिमा स्थापित की. तब से लेकर बड़ी दुर्गा जी को लेकर अपने–अपने दावों पर पूजा समितियों के बीच दोस्ताना संघर्ष कई दशक तक जारी रहा.

एक पक्ष प्रतिमा को लेकर सबसे पुरानी होने का दावा कर रहे है तो दूसरा पक्ष प्रतिमा स्थल को लेकर सबसे पुराने होने का दावा कर रहे है.

बेलभरनी की है परम्परा :स्वर्णकार दुर्गा पूजा समिति अपनी मन्नतों को लेकर बेलभरनी की परम्परा को निर्वाहन करती है. नवरात्र के छठी पूजा के दिन हजारों श्रद्धालु ईकट्ठा होकर ढोल बाजे के साथ शोभा यात्र निकालते है.

वहीं दूसरी ओर मंदिर से लेकर पूरे शहर का भ्रमण कर मड़पसौना के उत्तरी टोला स्थित बेल के पेड़ के समीप पूजा अर्चना कर मां दुर्गा की छोटी बहन के रूप में न्योता दिया जाता है. वहां से एक बेल तोड़कर उसे पालकी में मंदिर ले जाकर माता के प्रतिमा के समीप स्थापित किया जाता है.

कंधे पर विशर्जन जुलूश

स्वर्णकार पूजा समिति के सदस्य लखन स्वर्णकार एवं अर्जून शर्राफ ने बताया कि स्वर्णकार दुर्गा प्रतिमा का निर्माण पष्चिम बंगाल के कारीगर के द्वार किया जाता है. कहार के कांधे पर शोभा यात्र निकालने की परम्परा है. आज भी उस परम्परा का निर्वाहन किया जा रहा है. इस दौरान विशर्जन जुलूश को कांधा देते है. बनीमा और माहुरी दुर्गा पूजा कमिटी की प्रतिमा का विशर्जन जुलूश कांधे पर निकालने की परम्परा है.

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