बढ़ रही आस्था मिट रहा अस्तित्व

शेखपुरा : एक वक्त था जब ऐतिहासिक दालकुआं का पानी जमींदार और राजे रजवाड़ें की भी खास पसंद थी. मीलों दूरी तय कर बैलगाड़ियों से महलों तक दालकुआं का पानी ले जाया जाता था. पिछले दो दशक पूर्व तक भी शहर की आधी से अधिक आबादी उक्त कुएं का पानी कीमत चूका कर पीने के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 17, 2015 6:41 AM

शेखपुरा : एक वक्त था जब ऐतिहासिक दालकुआं का पानी जमींदार और राजे रजवाड़ें की भी खास पसंद थी. मीलों दूरी तय कर बैलगाड़ियों से महलों तक दालकुआं का पानी ले जाया जाता था. पिछले दो दशक पूर्व तक भी शहर की आधी से अधिक आबादी उक्त कुएं का पानी कीमत चूका कर पीने के आदी थे. शहर के खांडपर स्थित इस दालकुएं की खुदाई शेरशाह सूरी ने अपने सेना की टुकड़ियों से कराया था. इस कुएं के पानी का ऐतिहासिक महत्व के साथ धार्मिक मान्यताएं भी दिन व दिन बढ़ा रहा है.

खास कर छठव्रत के दौरान खरना का प्रसाद बनाने में इसका और भी खास महत्व है. छठव्रत को लेकर लोगों की धार्मिक मान्यताएं लगातार इसकी लोकप्रियता को बढ़ा रहा है. शहर की बड़ी आबादी अहले सूबह से ही तांबे, पीतल और कांसे के बर्तन में पानी लेने को लेकर जमघट लगाये रहते है. अपनी आस्था के अनुरूप कोई अपने सिर पर तो कोई ठेले और बाइक पर दालकुआं का पानी ले जाकर खरना का प्रसाद बनाने में इसका उपयोग करते है.

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